Holocaust Memorial Day: हर साल 27 जनवरी को दुनिया भर में होलोकॉस्ट मेमोरियल डे मनाया जाता है। यह दिन लाखों यहूदियों और अन्य निर्दोष लोगों की याद में समर्पित है, जिन्हें नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर की सनक और क्रूरता का शिकार होना पड़ा। यह दिन विशेष रूप से ऑश्वित्ज जेल में हुए अत्याचारों की भयावहता को याद करने का अवसर है, जहां अकेले 11 लाख से अधिक यहूदियों की हत्या कर दी गई थी।
पोप फ्रांसिस की चेतावनी- Holocaust Memorial Day
होलोकॉस्ट मेमोरियल डे की पूर्व संध्या पर पोप फ्रांसिस ने यहूदियों के खिलाफ बढ़ती नफरत पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने आगाह किया कि यह प्रवृत्ति मानवता के लिए बेहद खतरनाक हो सकती है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि नाजी यातना शिविरों में न केवल यहूदियों बल्कि बड़ी संख्या में ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों को भी बेरहमी से मारा गया।
हिटलर की सत्ता और यहूदी नरसंहार
1933 में जर्मनी की सत्ता संभालने के बाद एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों के प्रति अपनी नफरत को न केवल बढ़ावा दिया, बल्कि उसे अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बना लिया। 1941 से 1945 के बीच, यूरोप में करीब 60 लाख यहूदियों को systematically हत्या कर दी गई। हंगरी जैसे देशों में, जहां पहले 9 लाख यहूदी रहते थे, नाजी अत्याचारों के बाद उनकी संख्या लगभग शून्य हो गई।
यहूदियों से हिटलर की नफरत के कारण
हिटलर को एक सनकी तानाशाह के रूप में देखा जाता है। उसके विचारों के अनुसार, वह खुद को आर्य नस्ल का मानता था और यहूदियों को “नस्लीय अशुद्धता” का प्रतीक समझता था। वह मानता था कि यहूदी दुनिया की सत्ता और राजनीति को नियंत्रित कर सकते हैं। उसने यहूदियों पर प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार और उसके बाद की आर्थिक कठिनाइयों के लिए दोष मढ़ा। हिटलर की व्यक्तिगत जिंदगी में, यहूदियों के साथ बुरा व्यवहार भी उसकी मानसिकता पर गहरा प्रभाव छोड़ गया था।
ऑश्वित्ज: यातना और मृत्यु का सबसे बड़ा केंद्र
पोलैंड में स्थित ऑश्वित्ज जेल हिटलर के अत्याचारों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां पूरे यूरोप से यहूदियों को पकड़कर लाया जाता था। ज्यादातर कैदियों को गैस चेंबर में मार दिया जाता था। जो लोग जिंदा बचते, उन्हें दिन-रात कठोर श्रम करने पर मजबूर किया जाता था। उन्हें केवल इतना भोजन दिया जाता था, जिससे वे काम कर सकें। कमजोर या बीमार पड़ने पर उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाता था।
कैदियों की व्यक्तिगत पहचान खत्म कर दी जाती थी। उन्हें नंबर दिए जाते, सिर मुंडवा दिए जाते, और चीथड़े जैसे कपड़े पहनाए जाते थे। ऑश्वित्ज को इस तरह से बनाया गया था कि यहां हजारों शवों को रोज जलाया जा सके।
बच्चों और महिलाओं की दुर्दशा
होलोकॉस्ट के दौरान, लगभग 15 लाख यहूदी बच्चों को मारा गया। महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से गैस चेंबरों में ले जाया जाता था। बहुत से लोग भुखमरी और ठंड से मर गए।
होलोकॉस्ट के अंत का दिन
27 जनवरी 1945 को सोवियत सेना ने ऑश्वित्ज जेल के करीब 7,000 कैदियों को मुक्त कराया। इस दिन को मानवता के लिए एक ऐतिहासिक क्षण माना गया और तभी से होलोकॉस्ट मेमोरियल डे के रूप में इसे याद किया जाने लगा। बाद में, पोलिश संसद ने इस जेल को एक म्यूजियम में बदल दिया।
हिटलर का सिद्धांत और मानवता पर प्रभाव
हिटलर का मानना था कि यहूदियों का पूरी तरह मिट जाना ही इंसानियत के लिए अच्छा है। उसकी विचारधारा ने यूरोप और दुनिया भर में लाखों परिवारों को तबाह कर दिया। होलोकॉस्ट केवल यहूदियों की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे मानव इतिहास में नफरत और कट्टरता का सबसे बड़ा उदाहरण है।
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