बाबा साहब अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हमेशा से ही वैचारिक मतभेद हुआ करते थे। दोनों की सोच बिल्कुल अलग थी। एक तरफ गांधी जी दलितों को हिंदुओं का हिस्सा मानते थे, तो वहीं बाबा साहब का मानना था कि अगर दलितों को बराबरी का हक चाहिए, तो उन्हें हिंदू धर्म से अलग करना होगा। उनके लिए विशेष अधिकार ही उनका उत्थान कर सकते हैं। यहां तक कि ये मतभेद देश की आजादी के बाद भी जारी रहा था।
एक तरफ गांधी जी चाहते थे कि देश के झंडे पर चरखा रहना चाहिए, तो वहीं बाबा साहब ने चरखे के बजाए अशोक चक्र को तिरंगे का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन इस प्रस्ताव के बाद जो हुआ, ऐसा पहली बार हुआ होगा जब गांधी जी की कोरी जिद के आगे बाबा साहब की जीत हुई थी। या ये कहे कि ये पूना पैक्ट में गांधी की जिद का एक करारा जवाब थी। क्या हुआ था ऐसा, जिसके कारण चरखे के बजाए अशोक चक्र को तिरंगे में जगह मिली।
जब पाकिस्तान बना था उसके बाद जिन्ना पाकिस्तान चले गए थे, और उस वक्त गांधी जी भी लाहौर में थे। वहीं पर उन्हें खबर मिली थी कि बाबा साहेब ने तिरंगे पर चरखा हटाकर अशोक चक्र को लगाने का प्रस्ताव रखा है, तो वो काफी बैचेन हो गए थे। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि अगर तिरंगे से चरखे को हटाया गया तो वो तिरंगे को सलाम नहीं करेंगे। गांधी ने कहा कि भारत का एक अपना राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए, ये मैंने सोचा था, और मैं बिना चरखे वाले तिरंगे को स्वीकार नहीं कर सकता हूं।
22 जुलाई 1947 को ही ये इस बात पर मुहर लग गई थी कि तिरंगे पर चरखे के बजाए अशोक चक्र होगा… जिसे जानने के बाद नाराज गांधी 8 अगस्त को लाहौर से सीधा पटना चले गए।
दरअसल 1947 में जब संविधान सभा में तिरंगे को लेकर चर्चा की जा रही थी तब गैर कांग्रेसियो को ये बात स्वीकार नहीं थी कि तिरंगे के सफेद रंग में चरखा हो। वो कहते थे कि चरखे वाला झंडा कांग्रेस जैसी राजनैतिक पार्टी का है तो फिर उसे देश का झंडा कैसे बनाया जा सकता है।
तब अंबेडकर ने संविधान सभा में चर्चा के दौरान कहा कि तिरंगे को वैसे ही रखते हैं, लेकिन चरखे के बजाए 8 तिलियों वाले बौद्ध चक्र को रख देते है, लेकिन बाद में अशोक चक्र पर सहमति बनी, जिसमें 24 तीलियां थी और सभी तिलियों का अपना मतलब है, जो भारत की परंपरा, प्रभुता, संस्कृति, ताकत, विभिन्नता का प्रतीक है। और इसलिए तिरंगे पर अशोक चक्र को ही फाइनल किया गया।
गांधी जी ने लाहौर में रहकर ही इस खबर को सुना था कि अशोक चक्र पर सहमति बनी है, जिसके बाद गांधी जी ने उसे बिना किसी परेशानी के स्वीकार कर लिया था। और फिर तब से भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे पर तीन रंग, केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ साथ सफेद रंग के बीचों बीच गहरे नीले रंग का अशोक चक्र इस्तेमाल किया जाता है।