Ambedkar views on Muslims – फूट डालो और राज करो…भारत पर अंग्रेजों के शासन का यही मूलमंत्र था. इसके लिए अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों को लड़ाया…मुसलमानों के मन में इतनी नफरत भरी कि उन्होंने अलग देश की मांग कर दी…जातीय आधार पर देश के दो टुकड़े हो गए…पाकिस्तान में बसे हिंदुओं पर मुसलमानों का कहर देखने को मिलने लगा…हर ओर मार काट..खून खराबा..अपनी आत्ममुग्धता में मुसलमान इतने अंधे हो गए कि उन्होंने बहुजनों को भड़काना शुरु कर दिया…इसके एक नहीं कई उदाहरण हैं. खुद बाबा साहेब ने इस पर जबरदस्त टिप्पणी की थी. आखिर मुसलमान दलितों को भड़काते क्यों हैं और इसे लेकर बाबा साहेब ने चेतावनी तक दी थी.
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मुस्लिम नेता ने कही थी ये बात
दरअसल, हिंदू मुस्लिम की लड़ाई कोई नई बात नहीं है…आजादी से पहले से ही ऐसी चीजें देखने को मिलती रही है. मुस्लिम समाज हमेशा से इसके प्रयास में रहा है कि दलित उनके साथ हो जाएं और इसके लिए कई मौकों पर उनके कई बयान देखने को मिले हैं. आजादी से पहले मुस्लिम नेता मौलाना मोहम्मद अली ज़ौहर ने कहा था कि “मुस्लिम सामाजिक संगठनों द्वारा दलितों का धर्मांतरण करते ही हिन्दू अखबारों में हो-हल्ला शुरू हो जाता है. दलितों का धर्मान्तरण करने वाली एक प्रभावशाली संस्था से जुड़े एक बड़े व्यक्ति ने मुझे बताया है कि देश को अलग अलग जगहों में बाटकर हिन्दू और मुसलमान सहमति बना कर दलितों के धर्मांतरण का कार्य अलग अलग कर सकते है. जब हिन्दू लोग दलितों को अपने में नहीं मिलायेंगे तो दूसरे इनका धर्म परिवर्तन करेंगे ही और करना ही चाहिए.”
बाबा साहेब की क्या थी चेतावनी
1909 में अंग्रेजों ने भारत में इलेक्शन एक्ट पारित किया, उसके बाद जब देश में पहली बार चुनाव हुआ तो उसमें दलितों को हिंदू बताया गया. इसे लेकर भी मुस्लिम समाज की ओर से आपत्ति जताई गई थी. वहीं, हमारे बाबा साहेब की सोच इस मामले पर बिल्कुल अलग थी. बाबा साहेब ने कहा था कि अगर दलितों को समान अधिकार नहीं मिलेगा तो वे हिंदुओं के खिलाफ हो जाएंगे, जिसका फायदा मुस्लिम उठा लेंगे. वे दलितों का धर्म परिवर्तन कर मुस्लिमों की संख्या बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जो हमारे देश के भविष्य के लिए सही नहीं होगा.
बाबा साहेब ने चेतावनी दी थी कि आगे जाकर जातिवाद का असर बहुत बुरा होगा और वही हो रहा है. पिछले काफी समय से पूरे देश भर से दलितों के धर्म परिवर्तन के मामले सामने आ रहे है, जिनमे से ज्यादातर दलित इस्लाम अपना रहे है. बाबा साहेब ने कहा था कि “दलितों के धर्म परिवर्तन से क्या प्रभाव पड़ेगा यह ध्यान देने लायक है. अगर दलित मुस्लिम या ईसाई बनें तो वे अंतरराष्ट्रीय हो जाएंगे. अगर वो मुस्लिम बने तो मुस्लिमो की संख्या दोगुनी हो जाएगी और ईसाई बने तो उनकी संख्या 4-5 करोड़ हो जाएगी. इसका नतीजा यह होगा की इस देश पर ब्रिटिश हुकूमत का कब्जा और मजबूत हो जायेगा.”
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इसलिए अंबेडकर ने नहीं अपनाया इस्लाम
बाबा साहेब (Ambedkar views on Muslims) भी चाहते तो वह इस्लाम अपना सकते थे. उन्होंने 1935 में हिंदू धर्म का त्याग किया था. उसके बाद 21 वर्षों तक वह सभी धर्मों के बारे में अध्ययन करते रहे. इस दौरान उन्होंने इस्लाम के बारे में भी काफी जानकारी हासिल की..जिसका वर्णन उन्होंने अपनी किताबों में भी किया है. मुसलमानों को लेकर बाबा साहेब क्या सोच रखते थे आई बटन पर क्लिक कर आप वह वीडियो देख सकते हैं. बाबा साहेब बहुजनों पर हो रहे अत्याचार से आहत थे. ऐसे में वह ऐसा धर्म चाहते थे जिसमें कहीं भी ऊंच नीच का कोई भाव नहीं हो. वह देश के लिए खतरा न हो इसलिए उन्होंने हिंदू धर्म त्यागने के 21 वर्षों के बाद 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था.