भारत में आजादी से पहले से ही खालिस्तान की मांग उठती रही हैं। सिखों के लिए अलग देश की मांग सबसे पहले 1929 से उठी थी। मास्टर तारा सिंह ने कांग्रेस अधिवेशन में यह मांग उठाई थी। इसके बाद खालिस्तान शब्द का प्रयोग पहली बार 1940 में डॉ। वीर सिंह भट्टी ने किया था। वहीं, आजादी के 76 साल बाद भी यह सिलसिला जारी है। खालिस्तान को सबसे ज्यादा चर्चित बनाने के पीछे जरनैल सिंह भिंडरवाले का बड़ा हाथ है। सिख समुदाय के काफी लोग उससे इतने प्रेरित थे कि उसके एक इशारे पर वह किसी भी हद तक जा सकते थे। आज के लेख में हम आपको उस किस्से के बारे में बताएंगे जब भिंडरावाले की गिरफ्तारी से नाराज सिख ने अमरुद और संतरे के दम पर प्लेन हाईजैक कर लिया था।
और पढ़ें: कौन था ‘खालिस्तानी’ जनरल लाभ सिंह, जिसने पुलिस की नौकरी छोड़ चुनी थी आतंक की राह
कांग्रेस का करीबी था भिंडरावाले
चलिए सबसे पहले संक्षिप्त में भिंडरावाले के बारे में जानते हैं। पंजाब के मोगा में 1947 में एक साधारण किसान परिवार में जनरैल सिंह भिंडरावाले का जन्म हुआ था। महज 7 साल की उम्र में वह दमदमी टकसाल आया और यहीं पढ़ा और बड़ा हुआ। 1977 में उसे दमदमी टकसाल का प्रमुख बनाया गया। दमदमी टकसाल का प्रमुख बनने के बाद से ही उसने खालिस्तान को हवा देना शुरु कर दिया। अपने विरोधियों की हत्याएं करने के साथ साथ उसने अपनी मांग को लेकर सरकार को चुनौती देना शुरु कर दिया। यह भी कहा जाता है कि उस समय राज्य में शिरोमणि अकाली दल के बढ़ते वर्चस्व में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने भिंडरावाले का इस्तेमाल किया लेकिन भिंडरावाले कब कांग्रेस के हाथ से निकल गया, यह उन्हें पता भी नहीं चला।
1980 में निरंकारी नेता बाबा गुरुचरण सिंह की नई दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद सितंबर 1981 में पंजाब केसरी अखबार निकालने वाले हिंद समाचार समूह के प्रमुख लाला जगत नारायण सिंह की हत्या कर दी गई। इन दोनों हत्याओं के आरोप भिंडरावाले पर लगे, जिसके बाद कांग्रेस ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया। भिंडरावाले के आतंक को रोकने के लिए उसे गिरफ्तार कर लिया गया और उसने भी कुछ शर्तों पर अपनी गिरफ्तारी दे दी। इस गिरफ्तारी के दौरान पंजाब में कई जगहों पर दंगे हुए और पुलिस फायरिंग में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई। यहीं से शुरु होता है भिंडरावाले के समर्थकों का नया खेल।
और पढ़ें: क्या थी वो 1973 की मांगे, जिसके बाद खालिस्तान उभरता चला गया…
5 खालिस्तानियों ने कर लिया था हाईजैक
भिंडरावाले की गिरफ्तारी के बाद 29 सितंबर, 1981 को भिंडरावाले के 5 समर्थक तजिंदर पाल सिंह, सतनाम सिंह, गजेंद्र सिंह, करन सिंह और जसबीर सिंह चीमा अमृतसर से श्रीनगर जाने वाली फ्लाइट IC 423 में चढ़े। फ़्लाइट में कौन कहां है, इसकी पूरी जानकारी उनके पास थी। फ़्लाइट के टेक ऑफ़ करते ही गजेंद्र और जसबीर अपनी सीट से उठकर जबरदस्ती कॉकपिट के अंदर घुस गए। दोनों ने अपने कृपाण निकाले और पायलट, को-पायलट की गर्दन पर रख दिए।
पायलट और को-पायलट को गजेंद्र और जसबीर ने अपने कब्जे में ले लिया था। वहीं, तजिंदर, सतनाम और करण अपनी सीटों से उठे और प्लैन के गलियारे की ओर आ गए। इसके बाद, उन तीनों ने अपनी कृपाणें निकाली और सतनाम ने अपनी कलाई पर कृपाण मारकर खून से सना अपना हाथ ऊपर उठाया। वे यात्रियों के सामने यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि स्थिति गंभीर है और हाईजैकर्स को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
इसके बाद तजिंदर ने कपड़े में लपेटकर तीन ग्रेनेड निकाले और विमान को उड़ाने की धमकी दे डाली। फिर हाईजैकर्स ने पायलट से विमान को लाहौर ले जाने को कहा। विमान लाहौर पहुंचा, जहां उसे लैंड करने की इजाजत मिल गई। हाइजैकर्स की 2 प्रमुख मांगें थीं ‘भिंडरावाले’ की रिहाई और 5 लाख डॉलर की फिरौती यानी भारतीय करेंसी में करीब चार करोड़ रुपये की मांग।
ऐसे सुरक्षित निकाले गए थे यात्री
दूसरी ओर प्लेन के हाईजैक होने की खबर ने सरकार को हिला कर रख दिया था। यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने को लिए तत्कालीन सरकार ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन शुरु किया। एसएसजी कमांडो की एक खास टीम बुलाई गई। कमांडोज मेंटेनेंस स्टाफ बनकर विमान के अंदर की स्थिति का निरीक्षण करने पहुंचे। SSG कमांडो ने अपनी जांच में पाया कि हाइजैकर्स जिन कपड़ों में ग्रेनेड रखकर सबको डरा रहे हैं, वे असल में ग्रेनेड नहीं बल्कि अमरूद और संतरे थे। फिर बिना देरी करते हुए कमांडोज ने बाहर खड़ी टीम को हरी झंडी दे दी। इसके बाद SSG की टीम प्लेन में घुसी और उन्होंने पांचों हाइजैकर्स को कब्जे में ले लिया। बाक़ी बचे यात्रियों को आसानी से छुड़ा लिया गया था।
और पढ़ें: क्या है ख़ालिस्तान का पाकिस्तान कनेक्शन? ख़ालिस्तानी अपने नक़्शे में पाक को क्यों नहीं दिखाते ?