पंज प्यारे का महान इतिहास क्या है, पंज प्यारों को कैसे चुना गया, इसके पीछे की क्या है पूरी कहानी। आइए विस्तार से बताते है।
ऐसा माना जाता है कि मुगलों के शासन काल के समय औरंगजेब का अत्याचार बढ़ते ही जा रहा था। उस समय सिखों के गुरु.. गरु गोविंद सिंह जी ने 1699 को बैसाखी के त्यौहार के दिन सभा बुलाई थी। वहीं पर गुरु जी ने एक तख्त बिछाया और उसी के पीछे एक तंबू खड़ा किया।
गुरु गोविंद सिंह जी ने क्यों की थी सिर की मांग
इस दौरान गुरु जी के हाथ में एक धारदार तलवार भी थी। गुरुजी ने सिख समुदाय से कहा मुझे किसी एक शख्स का सिर चाहिए। क्या कोई है जो अपना सिर दे सकता है। ये सुनकर सभी सिख हैरान परेशान हो गए। लोगों के बीच सन्नाटा छा गया। तभी भीड़ में से लाहौर का रहने वाला दयासिंह नाम का एक शख्स आया और उसने गुरुजी से अपना सिर लेने की गुजारिश की। फिर गुरु गोबिंद सिंह जी उस शख्स को तंबू में ले गए। जिसके बाद तंबू में से खून की धारा बहती दिखी और भीड़ में सन्नाटा छा गया।
अब गुरु गोविंद सिंह जी दूसरी बार सिर की मांग करने आए। और बोले की अभी मेरी तलवार प्यासी है। इस बार मेरठ के धर्मदास नामक शख्स जो यूपी के क्षत्रीय जाट थे अपना सिर देने के लिए आए। और फिर गुरु जी उस शख्स को अंदर ले गए। फिर तंबू से खून की धारा निकली।
गुरुजी ने फिर मांगा सिर
तीसरी बार फिर गुरु गोविंद सिंह जी आए और बोले की मेरी तलवार अब भी प्यासी है.. और एक सिर चाहिए। क्या कोई है जो अपना सिर देगा। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय आये। उन्हें भी तंबू में ले जाने के बाद खून की धारा बहने लगी।
एक बार फिर गुरु जी ने सिर की मांग की। इस बार द्वारका के मोहकम चंद सामने आए। और फिर तंबू में ले जाने के बाद वहीं हुआ। अब आखिरी बार फिर गुरु जी ने एक सिर की मांग की। तभी भीड़ में से एक शख्स बिदर के रहने वाले साहिब चंद सिर देने आए।
पांच लोग तंबू से आए बाहर
इतनी बड़ी भीड़ और सिख समुदाय के हुजुम के बावजूद वहां लोगों के मन में सवालों का अंबार था। तभी गुरु गोविंद सिंह जी केसरिया बाणा पहने अपने पांच सिख खालसा के साथ तंबू से बाहर आए। ये वहीं पांचों लोग थे जिनका सिर मांगकर गुरु जी उन्हें तंबू के अंदर ले गए थे।
पांचों नौजवानों ने सभा को बताया
इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी अपने पांचों नौजवानों के साथ मंच पर पहुंचे और गुरुजी तख्त पर बैठ गए। पांचों नौजवानों ने बताया कि गुरु जी हमारा सिर काटने के लिए तंबू में नहीं ले गए थे बल्कि हमारी परीक्षा ले रहे थे।
ऐसे मिले सिखों को पंज प्यारे
तभी गुरु जी ने कहा कि आज से ये मेरे पंज प्यारे है। और यही से सिखों को पंज प्यारे मिले। गुरु गोविंद सिंह जी ने बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया और तभी उन पांच प्यारों के हाथों से खुद भी अमृतपान किया और इसी तरह से खालसा पंथ की स्थापना हुई।