13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के मौके पर जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुई भीड़ को बिना फायरिंग के तितर बितर किया जा सकता था। लेकिन सोचा कि ये सभा में मौजूद लोग जब वापस आएंगे, तो हंसेंगे और मूर्ख समझेंगे। ये मानना था जनरल डायर का, जिसके एक आदेश पर ही जलियावालां बाग में इकट्ठा हुए लोगों पर गोलियों की बरसात कर दी। जनरल डायर के इस एक आदेश ने त्योहार की खुशियों को मातम में तब्दील करके रख दिया।
जलियावालां बाग नरसंहार इतिहास के सबसे भयंकर गोलीकांड में से एक है। सरकारी आंकड़ों तो ये बताते है कि इस नरसंहार में 379 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 1500 लोग घायल हुए। लेकिन Unofficial आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा माना जाता है। कई लोग ऐसा मानते हैं कि एक हजार से भी ऊपर लोगों की मौत जलियांवाला बाग नरसंहार में हुई थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड वो बदनुमा पन्ना है, जो ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों को दर्शाता है।
13 अप्रैल 1919 को जब जलियावालां बाग नरसंहार हुआ, तो वो दिन रविवार का था। आसपास के गांव के लोग भी बैसाखी मनाने अमृतसर आए थे। अमृतसर में एक दिन पहले ही अंग्रेजी हुकुमत ने कर्फ्यू लगा दिया। ऐलान किया गया कि लोग इकट्ठा नहीं हो सकते। लोगों ने पहले गोल्डन टेंपल में दर्शन किए और फिर वो धीरे-धीरे जलियांवाला बाग में जुटने लगे थे। कुछ देर में हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंच गए।
बाग चारों ओर से घिरा था और यहां अंदर जाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था। जनरल डायर ने उसी रास्ते पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया। उसे पहले से पता था कि लोग यहां इकट्ठा होने वाले हैं। जलियांवाला बाग के गेट का रास्ता सिपाहियों से भर चुका था। जनरल डायर ने वहां मौजूद भीड़ को कोई चेतावनी नहीं दी। उसने बस एक शख्द कहा FIRE और उसके सैनिकों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया। क्या महिला, क्या बच्चे, क्या बूढ़े…किसी को भी नहीं बख्शा गया।
10 से 15 मिनट के अंदर 1650 राउंड गोलियां चलवा दी गई। इस दौरान अपनी जान बचाने के लिए लोग इधर-उधर भागे। गोलियों से बचने के लिए महिलाएं बाग में मौजूद कुएं में कूद पड़ी। कुछ ही मिनटों के अंदर सैकड़ों जिंदगियां वहां खामोश हो गई। लाशों का ढेर वहां लग चुका था।
अपनी इस कार्रवाई को सही ठहराने के लिए जनरल डायर ने कई तर्क दिए थे। Disorders Inquiry Committee (1919-1920) की रिपोर्ट की मानें तो जनरल डायर ने अपनी सफाई में कहा था कि कैसे उसने कर्तव्य का पालन किया। हालांकि इस दौरान डायर ने ये बात भी मानी थी कि ये काफी हद तक संभव था कि वो जलियांवाला बाग में बिना फायरिंग के सभा को तितर-बितर कर सकता था। लेकिन उसने ये सोचा कि जब सभा में मौजूद लोग वापस आएंगे, तो उस पर हंसेंगे और उसे मूर्ख समझेंगे। यही सोचकर क्रूर डायर ने बिना वॉर्निंग सभा में मौजूद लोगों पर तुरंत गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि इस दौरान जनरल डायर ने तब तक गोलियां चलवाई थीं, जब तक गोलियां खत्म नहीं हो गई थीं।