देश के सबसे पुराने इंसान हैं आदिवासी
“ये धनुष बाण कोई पुराने युग का संदेश तो नहीं दे रहे, जिसे आज का इंसान शायद भूल चूका है।” दिन था 16 नवंबर 2018 का जब John Allen Chau नामक एक अमेरिकन क्रिस्चियन भारत के The North Sentinel Island के करीब पहुँचता है। जैसे ही ये अमेरिकन टापू के नजदीक पहुँचता है उस पर कुछ आदिवासी तीर धनुष से हमला कर देते हैं और बाद में उसे मार कर वहीं रेत में दफना देते हैं। इससे पहले 1991 में इन North sentinelese ट्राइब से आखरी बार कांटेक्ट किया गया था। इस ट्राइब या फिर कह ले आदिवासियों के बारे में कहा जाता है की ये लोग अभी तक के सबसे पुराने आदिवासी समूह हैं और ये किसी भी दूसरे इंसान से नहीं मिलना चाहते। इनके बारे में ये भी कहा जाता है की ये अफ्रीका से भारत आएं है। इनके बारे में बताया जाता है की ये 10000 साल से भी पहले से यहां रह रहे हैं ये और अभी भी ये लोग स्टोन एज में जीते हैं।। ये कहानी हमने आपको इस लिए बताया की कन्फर्म हो जाये की देश के सबसे पुराने इंसान आदिवासी हैं ना की स्वर्ण और द्रविड़।
Also read-देश का मूल निवासी कौन? अंबेडकर की नीतियों से जाने अंग्रेजों की चाल, कैसे किया भारत पे राज
राखीगढ़ी में मिला पैंतालीस सौ साल पुराण कंकाल
अब बात करते हैं आर्यों और द्रविड़ो के उस लड़ाई के बारे में जो ना जाने कितने दशक से चली आ रही है। ये दोनों बिरादरी हमेशा से एक दुसरो को ये साबित करने में लगे रहते है की ‘हम पहले-हम पहले’ यानि की हम इस देश के तुमसे पुराने नागरिक हैं। इसके लिए हम सबसे पहले एक रिपोर्ट के बारे में आपको बताना चाहते हैं जो कुछ समय पहले आई थी। हरियाणा का राखीगढ़ी में पैंतालीस सौ साल पुराण कंकाल मिला था, जब इस कंकाल की जाँच हुई और रिपोर्ट सामने आये तो इससे बहुत कुछ ऐसा पता चला जो आज के हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेताओं के पैरों तले जमीन खिसका देगा।
जांच के दौरान तीन चीजे हुईं साफ़
रिपोर्ट में सबसे पहले ये चीज साफ़ हुई की हड़प्पा सभ्यता के लोग हिन्दू संस्कृति के मूल लोग नहीं थे। दूसरी बात ये सामने आई की आज के भारतियों का और हड़प्पा सभ्यता के लोगों का जेनेटिक सम्बन्ध है। इस जांच की रिपोर्ट में जो तीसरी बात सामने आयी है वो आर्यों के लिए थोड़ा दुखद हो सकता है। जाँच में आई तीसरी चीज ये बताती है कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों का जेनेटिक संबंध द्रविड़ों और साउथ इंडियन के ज्यादा करीब है आर्यों की तुलना में।
इंडो आर्य के संबंध है आर्यों से
आर्यों के बारे में जब जानने की कोशिश करते हैं तो हमे ये पता चलता है की तक़रीबन चार हजार साल पहले इंडो आर्य नाम की प्रजाति की एंट्री एशिया में होती है। तब इंडो आर्य प्रजाति की लड़ाई यहां पहले से रह रहे लोगों से हुआ । राखीगढ़ी में मिले कंकालों को अगर तथ्य मान कर चले तो साउथ इंडियन जो की अपने आप को दर्विड भी बुलाते हैं वो यहाँ पहले से रह रहे थे। इंडो आर्य और हड़प्पा सभ्यता के लोगों यानी की द्रविड़ों में लड़ाई हुई और द्रविड़ों को धीरे-धीरे साउथ की तरफ धकेल दिया गया। यही बात आज के हिन्दू राष्ट्रवादियों को खटकती है।
science की बात करे तो वैज्ञानिक अभी तक कुछ स्पष्ट रूप से नहीं कह पाए हैं। उन्होंने अभी इस बात की पुष्टि की है की जो जीन राखीगढ़ी के पैंतालीस सौ साल पहले के कंकाल में हैं वो R1a1 जीन जिसे आर्य जीन भी कहते हैं उससे मैच नहीं करता। आपको यहां पे एक बात और क्लियर कर दे की आज जो जातियां उत्तर भारत में रहती हैं उनमें लगभग सतरह फीसदी R1a1 जीन पाया जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता नहीं है हिन्दू संस्कृति की शुरुआत
इन बातों से आपको ये चीज तो साफ़ हो गया होगा की सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने हिन्दू संस्कृति की शुरुआत नहीं की थी और वेद लगभग डेढ़ हजार इसा पहले के हैं, तब तक सिंधु घाटी सभ्यता या फिर कह ले हड़प्पा civilisation (harppa civilisation) के शहर नष्ट हो चुके थे।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती (Swami Dayanand Sarswati) का मानना था की आर्य दुनिया के आरम्भ से ही थे और वो भारत में तिब्बत से आये थे। कुछ समाज सेवियों की सुने तो उन्होंने कहा की पहले आर्यवर्त यानि की भारत बहुत बड़ा था इसलिए आर्य पहले से ही यहाँ दूसरे क्षेत्रों में रहते थे और धीरे-धीरे वो फैलने लगे और दूसरी जन-जातीय भारत के किसी कोने में सिमटती गयीं।
वैज्ञानिक और इतिहासकार अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं
अगर सभी तथ्यों को देखा जाये तो आपको वैज्ञानिक और इतिहासकार भी इस मुद्दे पर पूरी तरह स्पष्ट नहीं कहते मिलेंगे। जो चीजें पहले से स्पष्ट थी वो भी मुगलों और अंग्रेजों के आने के बाद धुंधली हो गईं। मुगलों ने इतिहास को अपने तरीके से बदल दिया तो दूसरी तरफ अंग्रजी सियासत ने इसे और भी बांट दिया। इंग्लिश हुकूमत ने अपने devide and rule policy से ऐसे बांटा की आज हम एक दूसरे से इस बात पर भी लड़ते है की हम यहां तुमसे पहले से रह रहे हैं, जबकि आज तक वैज्ञानिक भी पुरे तरीके से इस मुद्दे पर साक्ष्य इकट्ठा नहीं कर पाएं हैं।
हमने आपको अपने मूल निवासी वाले वीडियो में बताया था की कैसे अंग्रेजों ने हमारे समाज में ये जाती का जहर घोल दिया और हमारे समाज में जातिगत जनगणना के जरिए इस खाई को और गहरा कर दिया और नेताओं ने इसे भारत की नियति बना दी।