वैसे तो देश में अंग्रेजों की प्रताड़ना के खिलाफ विद्रोह और आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता संग्राम का आगाज 1857 की क्रांति से हो गया था. ये 1857 की क्रांति भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में से सबसे बड़ी घटना है इस क्रांति में मंगल पांडे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जैसी वीर योद्धाओं के त्याग और बलिदान के बारे में तो बहुत ही सुना और जाना होगा. इनकी शौर्य गाथा बच्चों को कहानी के तौर पर सुनाई जाती है. कि कैसे एक महिला ने अपने राज्य और गोद लिए बच्चे की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस महिला का नाम लक्ष्मीबाई था, जो कि झांसी की रानी थीं. लेकिन झांसी की रानी इस आंदोलन में अकेली महिला नहीं थीं. उनके साथ एक महिला सेनापति भी आजादी की जंग में लड़ी.
इस महिला सैनिक का नाम झलकारीबाई था. वो न तो रानी थी और न ही झांसी की सत्ता उनके हाथ में थी. लेकिन अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए झलकारी बाई ने प्राणों को न्योछावर कर दिया मानों जैसे वो उसी कार्य के लिए इस पृथ्वी पर आई थी. खैर स्वतंत्रता संग्राम की इस महिला आंदोलनकारी झलकारी बाई की जयंती तो बीते दिन 04 अप्रैल को थी . लेकिन मझे लगता है कि वीरांगनाओ की कहानी किसी तारिख की मोहताज नहीं. जो तारिख आने पर बताई जाए. ये ऐसी सच्ची कथाएँ है जिनको जानकर आप के अन्दर भी देश के लिए कुछ कर सकने का भाव जरूर पैदा होगा. तो आइए जानते हैं झलकारी बाई के बारे में.
झलकारी बाई का बचपन
इतिहासकार ऐसा बताते हैं कि झलकारी बाई भोजला गांव की रहने वाली थीं. उनका गांव झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के किले के पास ही था. किले के दक्षिण में उन्नाव गेट था, जहाँ झलकारी बाई के घराने के लोग आज भी निवास करते हैं. झलकारी बाई बचपन से ही साहसी थीं. कम उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया. पिता ने झलकारी बाई को घुड़सवारी और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया.
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कहते हैं कि एक बार बचपन में झलकारी बाई पर एक तेंदुए ने हमला कर दिया. लेकिन झलकारी बाई ने बिना डरे कुल्हाड़ी से तेंदुए को मार डाला. साथ ही एक किस्सा और भी है जब झाकारी गाँव के एक व्यापारी पर कुछ डाकुओं ने हमला कर दिया था. तब भी झलकारी बाई ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया और गांव से खदेड़ दिया था.
झलकारी बाई की शादी
उनके साहस को देख झांसी की सेना में तैनात एक सैनिक पूरन कोरी से उनका विवाह करा दिया गया. शादी के बाद उनकी मुलाकात रानी लक्ष्मी बाई से एक पूजा के दौरान हुई. झलकारी बाई को देख कर रानी लक्ष्मीबाई हैरान रह गईं, क्योंकि वह बिल्कुल लक्ष्मीबाई जैसी दिखती थीं. जब लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई के साहस के किस्से सुने तो उन्हें झांसी की सेना में शामिल कर लिया. यहां उन्होंने बंदूक चलाना, तलवार और तोप चलाना सीखा.
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लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर किया अंग्रेजों का मुकाबला
डलहौजी की नीति के तहत झांसी को हड़पने के लिए ब्रिटिश सेना ने किले पर हमला कर दिया। इस दौरान पूरी झांसी की सेना ने लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया। अप्रैल 1858 में झांसी की रानी ने अपने बहादुर सैनिकों के साथ मिलकर कई दिनों तक अंग्रेजों को किले के भीतर नहीं घुसने दिया। लेकिन सेना के एक सैनिक दूल्हेराव ने महारानी को धोखा दे दिया। उसने अंग्रेजों के लिए किले का एक द्वार खोल कर अंदर घुसने दिया। ऐसे में जब किले पर अंग्रेजों का अधिकार तय हो गया तो झांसी के सेनापतियों ने लक्ष्मीबाई को किले से दूर जाने की सलाह दी। इसके बाद वो कुछ भरोसेमंद सैनिकों के साथ किले से दूर चली गईं।
अंग्रेजों को चमका देने के लिए बनाई थी खास योजना
जब अंग्रेजी सेना ने झांसी के किले पर हमला बोल दिया तो सेनापतियों ने रानी लक्ष्मीबाई के किले से निकल जाने की सलाह दी. युद्ध में झलकारी बाई के पति शहीद हो चुके थे. उन्होंने अंग्रेजों को चकमा देने की योजना बनाई और लक्ष्मीबाई के कपड़े पहनकर सेना का कमान संभाल ली. अंग्रेजों को भनक तक नहीं हुई कि वह झांसी की रानी नहीं, बल्कि झलकारी बाई हैं.
झलकारी बाई भी जनरल रोज के कैंप में पहुंच गईं. इस दौरान मौका पाकर झांसी की रानी वहां से दूर निकल गईं. झलकारी बाई को पता था कि जहां वह जा रहीं, वहां सिवाय मौत के उन्हें कुछ नहीं मिलेगा लेकिन अपनी मातृभूमि, राज्य, रानी और राजकुमार की रक्षा के लिए झलकारी बाई ने जान की परवाह तक न की.
साहित्यकार ने अपनी किताब में किया वर्णन
योजना बनाने की घटना का पूरा जिक्र मशहूर साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास ‘झांसी की रानी-लक्ष्मीबाई’ में भी है। जिसमे उन्होंने बहुत साफ़ और स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि, “झलकारी ने अपना श्रृंगार किया। बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहने, ठीक उसी तरह जैसे लक्ष्मीबाई पहनती थीं। गले के लिए हार न था, परंतु कांच के गुरियों का कण्ठ था। उसको गले में डाल दिया। सुबह होने से पहले ही हाथ मुंह धोकर तैयार हो गईं। पौ फटते ही घोड़े पर बैठीं और ऐठ के साथ अंग्रेजी छावनी की ओर चल दिया।
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साथ में कोई हथियार न लिया। चोली में केवल एक छुरी रख ली। थोड़ी ही दूर पर गोरों का पहरा मिला। टोकी गई। झलकारी को अपने भीतर भाषा और शब्दों की कमी पहले-पहल जान पड़ी। लेकिन झलकारी ये बात भली भांति जानती थी कि गोरों के साथ चाहे जैसा भी बोलने में कोई हानि नहीं होगी। झलकारी ने टोकने के उत्तर में कहा, ‘हम तुम्हारे जडैल के पास जाता है।’ अगर कोई हिन्दुस्तानी इस भाषा को सुनता तो उसकी हंसी बिना आये न रहती। एक गोरा हिन्दी के कुछ शब्द जानता था। बोला, ‘कौन?’
रानी -झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया। गोरों ने उसको घेर लिया। उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, ‘जनरल रोज के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए।’ उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े। शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झांसी की रानी पकड़ ली गई. गोरे सिपाही खुशी में पागल हो गये।
उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी. उसको विश्वास था कि मेरी जांच – पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज उलझेंगे तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी।” झलकारी रोज के करीब पहुंचाई गई। वह घोड़े से नहीं उतरी। रानियों की सी शान, वैसा ही अभिमान, वही हेकड़ी- रोज भी कुछ देर के लिए धोखे में आ गया।”