गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े कई किस्से हमने आपके साथ साझा किए। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े उस बरगद पेड़ की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है, जिसकी पवित्रता और महत्वता की खूब मान्यता है। साथ ही श्रद्धालु इस बरगद के पेड़ की कई राज्यों में पूजा भी करते है। तो आइए बताते है कि क्यों इस बरगद के पेड़ से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। क्यों इस पेड़ की इतनी मान्यता है। और साथ ही बरगद के पेड़ से जुड़ी हर अहम बात आज हम आपको बताने जा रहे है।
दरअसल, धार्मिक स्थल कपालमोचन के पवित्र सरोवर पर बरगद के पेड़ की श्रद्धालुओं के बीच बड़ी मान्यता है। इस बरगद के पेड़ से लोगों की आस्था समेत पुरानी यादें जुड़ी हुई है। जिसके कारण आज भी लोग इसके पूजते है। इसके दर्शन करने जात है। हालांकि ये पेड़ कितने साल पुराना है इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। माना जाता है कि सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह महाराज सेवकों और सैनिकों के साथ भांगानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन गए थे। तकरीबन 52 दिन तक उन्होंने यहां पर तपस्या की थी।
बरगद के पेड़ से जुड़ी लोगों की आस्था
ऐसा माना जाता है कि कपालमोचन का विकास होने से पहले बरगद के पेड़ के नीचे धार्मिक पूजा अर्चना के साथ-साथ आसपास के ग्रामीण अपने गांवों के झगड़े सलझाया करते थे। इसके साथ ही इसी पेड़ के नीचे बाकी समस्याओं का समाधान हुआ करता था। ये पेड़ काफी पुराना है और इस पेड़ के प्रति लोगों में गहरी आस्था है।
गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ा है इतिहास
इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी, गुरु गोबिंद सिंह सहित कई और महान गुरुओं ने कपालमोचन पहुंच कर इस धार्मिक स्थल की महत्ता को अधिक बढ़ाया है। कपालमोचन में आते ही सुकून और शांति का अहसास होने लगता है। सरोवर के पास आम, पीपल, बरगद जैसे कई और पेड़ भी है लेकिन सरोवर पर बरगद का सबसे पुराना पेड़ है। यहां पर हर पेड़ और धार्मिक स्थलों का अपना एक विशेष महत्व हैं।