जब देश के लिए लड़ने वालों की बात होती है, जब कुर्बानी देने की बात होती है, जब हंसते-हंसते समाज के लिए अपनी जान देने की बात होती है, जब रणक्षेत्र में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने की बात होती है तो सबसे पहले जिसका ध्यान आता है, वो है पंजाब… महाराजा रणजीत सिंह हो या भगत सिंह, गुरु गोबिंद सिंह जी हो या उनके चारों साहिबजादें… इन सभी ने मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते हंसते अपनी प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। मगर ये बात तो मर्दो की है…बात अगर देश की हो तो पंजाब की औरतें भी पीछे नहीं है।
आज हम आपको पंजाब की पहली महिला फ्रीडम फाइटर के बारे में बताने जा रहे है..जिसने देश को अपने परिवार के ऊपर रखा, जिसने फिलिपींस की खूबसूरत जिंदगी को छोड़कर भारत को आजाद कराने के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी चुनी। जिन्होंने अपने पति को छोड़ना आसान समझा, लेकिन देशभक्ति नहीं। हम बात कर रहे है गदर की बेटी-गुलाब कौर के बारे में।
गुलाब कौर का जन्म 1890 में पंजाब के संगरूर के बक्शीवाला गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। गुलाब कौर के अंदर बचपन से देश के लिए लड़ने की भावना नहीं थी। वो तो आम लड़कियों की तरह ही अपनी जिंदगी जीती थी। लेकिन उनकी जिंदगी में सब कुछ बदल गया जब गुलाब कौर की शादी हुई। गुलाब कौर की शादी मानसिंह नाम के एक व्यक्ति से हुई थी। शादी के बाद गुलाब कौर अपने पति के साथ अमेरिका जाने के लिए रवाना हुई, लेकिन पैसों की कमी के कारण दोनों फीलि111पींस में ही रह गए ताकि कुछ समय यहां काम करके फिर अमेरिकी के लिए निकल जाएंगे।
उस वक्त में अमेरिका जाने के लिए पानी की यात्रा होती थी। गुलाब कौर और मानसिंह की फीलिपींस में तब सिखों की बनाई गई गदर आंदोलन की बनाई गदर पार्टी संगठन पर नजर पड़ी। ये अमेरिका गए सिखों ने आजादी की लड़ाई के लिए बनाई थी। 1913-14 के दौरान गदर आंदोलन काफी प्रचलित हुआ था, और इसी के साथ पहली बार गुलाब कौर के मन में भारत की आजादी के लिए लड़ने का जज्बा जागा। गदर पार्टी ने फीलिपींस की राजधानी मनीला में सक्रिय होना शुरु कर दिया था। इस दौरान गुलाब कौर को कई जिम्मेदारी दी गई। वो एक प्रिटिंग प्रेस को संभालती थी और उसकी आड़ में आंदोलनकारियों को हथियार मुहैया कराया कराती थी।
लेकिन जब आंदोलन बढ़ा तक प्रथम विश्वयुद्ध का फायदा उठाते हुए गुलाब कौर ने भारत आने का फैसला किया, मगर यहां उनकी जिंदगी में बड़ा मोड़ आया। गुलाब कौर के पति ने देश की आजादी और खुद को चुनने के लिए गुलाब कौर के पास विकल्प रखा। गुलाब कौर फैसला कर चुकी थी और उन्होंने अपनी शादी को तोड़कर देश को चुन लिया। देशभक्ति पति भक्ति के आगे जीत गई थी। गुलाब कौर भारत आ गई।
भारत पहुंच कर वो अंग्रेजी हुकुमत से बचते बचाते पंजाब पहुंची जहां उन्होंने गदर आंदोलन को जारी रखने के लिए जालंधर, कपूरथला और होशियारपुर में अपने आंदोलन को जारी रखा। उनकी बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो कई बार ब्रिटिश पुलिस को उनकी आंखों के सामने चकमा देकर निकल जाया करती थी और पुलिस हाथ मलती रहती। 1929 के आसपास गुलाब कौर को अंग्रेजी हुकुमत ने गिरफ्तार कर लिया और लाहौर जेल भेज दिया गया। जहां गुलाब कौर ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी शुरु कर दी। जिसके कारण अंग्रेजी हुकुमत काफी गुस्सा हो गया और उन लोगों ने गुलाब कौर को प्रताड़ित करना शुरु कर दिया।
करीब 2 साल बाद वो जेल से बाहर आई थी, लेकिन तब तक वो काफी कमजोर और बीमार हो चुकी थी। फिर भी वो लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए जागरूक करती रही, मगर वो ज्यादा दिनों तक ऐसा कर नहीं सकी और 1931 में गुलाब कौर की बीमारी के कारण मौत हो गई।
गुलाब कौर एक देशभक्त की मौत मरी थी। लेकिन उन्हें आज तक वो पहचान नहीं मिली, जिसकी वो हकदार थी। गदर आंदोलन ने पंजाब के लोगों को आजादी के लिए प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाई थी… लेकिन गुलाब कौर ने ये साबित किया कि केवल पंजाब के मर्द ही नहीं औरतें भी शेरनियां है।