एक सिचुएशन इमैजिन करिए कि आप कहीं जा रहे हों और रास्ते में आप पर 10 लाख लोग हमला करदें एकदम अचानक ही। आपके हाल होंगे तब? शायद इमैजिन भी नहीं कर सकते कि आपको कैसा लगेगा? लेकिन एक वक्त में ऐसी स्थिति सच में आई थी सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह और उनके दो साहेबजादों के सामने। जिसके बारे में हम आपको बताएंगे पूरे डीटेल में और जिसे जानकर आपके मन में गुरु गोबिंद सिंह और उनके दो साहेबजादों के लिए सम्मान और बढ़ जाएगा। हम जानेंगे चमकौर के युद्ध के बारे में, जिसमें सिखों ने जो दम दिखाया था वो हर किसी को इंस्पायर करने वाला है।
ये युद्ध हुआ 1704 में। तब गुरू गोबिन्द सिंह जी के नेतृत्व में हुए युद्ध में उनके दो साहेबाजादों और 40 सिखों ने 10 लाख सैनिकों की मुगल सेना को नस्तेनाबूत कर दिया। महज 43 लोगों ने मिलकर 10 लाख सैनिक से युद्ध लड़कर एक अलग तरह के शौर्य को दिखाया। सिखों के दसवें गुरू गुरू गोबिन्द सिंह जी की वीरता और बलिदान की हैरानी से भर देने वाली ये चमकौर युद्ध की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
1704 के करीब मुगलों का दमन बढ़ गया और इस दौरान धर्म परिवर्तन जबरन करवाए जा रहे थे जिसके विरोध में थे गुरू गोबिंद सिंह जी। ऐसे में मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोला। दूसरी तरफ गुरूजी को हराने में मुगल हरबार नाकाम रहे थे। हर हाल में मुगल उनको उन्हें जिंदा या मुर्दा धर दबोचना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने आनंदपुर साहिब को घेरा जिससे जब कुछ दिन बाद राशन खत्म होने पर जब गुरू गोबिंद सिंह जी आनंदपुर साहिब से बाहर आएंगे तो वो उन्हें पकड़ लेंगे। लेकिन गुरू जी को पकड़ना इतना आसान नहीं था। गुरुजी तो मुगल सेना को चकमा देकर वहां से कई और लोगों के साथ निकल गए। इससे मुगल काफी गुस्से से भर गए और गुरूजी के पीछे पड़ गए।
गुरू गोबिन्द सिंह जी लोगों को लिए सिरसा नदी पहुंचे जहां से नदी में आए उफान के साथ सभी लोग बह गए और रह गए सिर्फ गुरू गोबिन्द सिंह, उनके दो साहिबजादे और 40 सिख जो आराम के लिए एक सेफ जगह खोज रहे थे। तभी वे चमकौर पहुंचकर कच्ची हवेली में रुक गए और जब नदी का बहाव कम हुआ तो मुगल सेना ने 10 लाख सैनिकों के साथ हवेली को घेर लिया। उन्हें इस बात का बहुत बड़ा भ्रम हुआ कि वो गुरु जी से आत्मसमर्पण करवा लेंगे इतनी बड़ी सेना खड़ी करके, लेकिन गुरू जी तो गुरुजी थे वो कैसे हार मानते। उन्होंने साथियों को छोटे छोटे ग्रूप बनाए और फिर मुगलों ने ललकारा तो गुरू गोबिन्द सिंह ने बनाए गए सिखों के ग्रूप को एक एक करके तलवार, भालों और तीरों से सजाकर भेजा जिससे 10 लाख की संख्या वाली मुगलों की सेना आधी से ज्यादा खत्म कर दी। इस दौरान तमाम सिखों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी और इसी दौरान गुरू जी के दोनों साहिबजादों ने भी लड़ते लड़ते अपनी कुर्बानी दे दी पर कोई भी मुगलों के सामने झुका नहीं।
गुरू गोबिन्द सिंह जी और उनके दो साथी जब आखिर में बच गए तो वहां से दोनों छुपकर जाना नहीं चाहते थे ऐसे में मुगल सैनिकों को ललकारते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी ने आवाज लगाते हुए कहा कि मैं जा रहा हूं, हिम्मत है तो पकड़ो। इस दौरान उन्होंने दुश्मन सेना के मशाल लेकर खड़े सैनिकों को मार गिराया और मशाले भी बुझ गईं और हर तरफ अंधेरा छा गया। ऐसे में सैनिक आपस में ही भिड़कर मारे गए और सुबह वजीर खान ने देखा कि सेना खत्म हो गई तो उसके होश उड़ गए। यहां तक की गुरू गोबिन्द सिंह भी वहां से निकल गए। दूसरा होता तो 10 साख सैनिकों के सामने हिम्मत हार जात। वो गुरु गोबिंद सिंह ही थे जिन्होंने सिखों में दम भर दिया।