रेडियोएक्टिविटी की खोज और रिसर्च करने वाली दुनिया की पहली महिला ‘श्तेफ़ानिया मॉरेचिनानू’ (Stefania Morechinanu) की Birth Anniversary हैं। स्टेफेनिया मोरिसेनेनु का जन्म 18 जून, 1882 में बुखारेस्ट में हुआ था। स्टेफेनिया मोरिसेनेनु एक रोमानिया भौतिक वैज्ञानिक थी जिन्होंने अपने व्यपक शोध में कृत्रित रोडियोधार्मिता का पहला उदाहरण माना था। Stefania Morechinanu ने अपने करियर की शुरुआत बुखारेस्ट में सेंट्रल स्कूल फॉर गर्ल्स में एक शिक्षक के रूप में की थी। आज उनके जन्मदिन पर गूगल उन्हें श्रद्धांजली दे रहा है।
‘श्तेफ़ानिया मॉरेचिनानू’ का सफर
बुखारेस्ट में सेंट्रल स्कूल फॉर गर्ल्स में पढ़ाते हुए उन्होंने रोमानियाई विज्ञान मंत्रालय से स्कॉलरशिप प्राप्त की और बाद में पेरिस में रेडियम संस्थान में ग्रेजुएट रिसर्च करने का फैसला किया। उस समय संस्थान भौतिक विज्ञानी मैरी क्यूरी के निर्देशन में दुनिया भर में रेडियोएक्टिविटी के अध्ययन का केंद्र बन रहा था। मॉरेचिनानू ने पोलोनियम पर PHd थीसिस पर काम करना शुरू किया, इसकी खोज मैडम क्यूरी ने की थी। फिजिक्स में अपनी Phd पूरी करने के लिए मोरेसिनेनु ने पेरिस में सोरबोन विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। जहाँ आम तौर लोगों को PHd करने में पांच साल या उससे ज्यादा का समय लग जाता है, वहीं मेरिसीनेनु ने मात्र 2 साल में पेरिस के सोरबोन विश्वविद्यालय अपनी डिग्री पूरी कर ली।
डिग्री लेने के बाद मेडॉन में खगोलीय वेधशाला में चार साल तक काम करने के बाद, वह रोमानिया लौट आई और अपनी मातृभूमि पर रेडियोएक्टिविटी के अध्ययन के लिए अपनी पहली प्रयोगशाला बनाई.मेडॉन में Astronomical Observatory में चार साल तक काम करने के बाद वह रोमानिया लौट आई और रेडियोएक्टिविटी के अध्ययन के लिए अपनी पहली प्रयोगशाला की स्थापना की। स्टेफेनिया मोरिसेनेनु की 14 Aug,1944 में कैंसर के कारण मृत्यु हो गयी थी। हालांकि कहा जाता है कि इनकी मृत्यु का कारण कथित तौर पर उनका काम और प्रयोग के दौरान निकलने वाली विकिरण के कारण हुई थी।
आर्टिफिशियल रेडियोएक्टिविटी पर की रिसर्च
एक बार की बात है जब मेरी पोलोनियम की हाफ-लाइफ के बारे में रिसर्च कर रही थी, कि तभी मेरिसीनेनु ने देखा कि आधा जीवन उस धातु के प्रकार पर निर्भर करता था। जिस पर इसे रखा गया था। इससे उसे आश्चर्य हुआ कि क्या पोलोनियम से अल्फा किरणों ने धातु के कुछ परमाणुओं को रेडियोधर्मी समस्थानिकों में स्थानांतरित कर दिया था. उनकी इस रिसर्च को बाद में आर्टिफिशियल रेडियोएक्टिविटी का नाम दिया गया।
आर्टिफिशियल बारिश पर भी किया शोध
मेरिसीनेनु ने अपने जीवन के कई साल आर्टिफिशियल बारिश के शोध के लिए समर्पित कर दिया. जिसके लिए वो काफी वक्त तक अल्जीरिया में भी रहीं. इसके अलावा उन्होंने भूकंप और बारिश के बीच की कड़ी का भी अध्ययन किया। वो मेरिसीनेनु ही थीं, जिन्होंने पहली बार ये बताया कि उपरिकेंद्र में रेडियोएक्टिविटी बढ़ने के कारण ही भूकंप आते हैं।
आर्टिफिशियल रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए नहीं मिली वैश्विक मान्यता
1935 में, मैरी क्यूरी की बेटी इरेन करी और उनके पति को आर्टिफिशियल रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए संयुक्त नोबेल पुरस्कार मिला। हालांकि मेरिसीनेनु इस पुरस्कार के लिए मना कर दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि खोज में उनकी भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए. मेरिसीनेनु के काम को 1936 में रोमानिया की विज्ञान अकादमी द्वारा मान्यता दी गई थी जहाँ उन्हें अनुसंधान निदेशक के रूप में सेवा देने के लिए चुना गया था, हालांकि उन्हें इस खोज के लिए कभी भी वैश्विक मान्यता नहीं मिली। पेरिस में क्यूरी संग्रहालय में रेडियम संस्थान में मूल रासायनिक प्रयोगशाला है, जहां मेरिसीनेनु ने काम किया था।