इतिहास के पन्नों में ऐसी कई ऐसी कहानियां सुनने में आती है, जो कि नरसंहार की खूनी दांसता को बयां करती हैं। कई तरह की ऐसी कहानियां है जो हमको पढ़ने और जानने को मिलती है, लेकिन दूर देश की एक ऐसी कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो भुलाए नहीं भूली जा सकती है। एक नरसंहार हुआ था अफ्रीकी देश रवांडा में जिसके बारे में ऐसी ऐसी बातें कही जाती हैं जिससे जानने के बाद इंसानियत से विश्वास उठने लगाता है। क्या है ये पूरी कहानी आज हम इसी के बारे में जानेंगे…
100 दिनों तक चलता रहा एक भीषण नरसंहार, जिसमें एक-दो जानें नहीं गई बल्कि लगभग आठ लाख लोगों ने अपनी जान गवां दी थी। इस तरह से इतिहास में ये एक सबसे बड़ा नरसंहार कहा गया।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि 8 लाख लोग मारे गए?
दरअसल, साल 1994 था जब रवांडा देश के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना साथ ही बुरुंडी के राष्ट्रपति सिप्रेन का मर्डर हो जाने की वजह से नरसंहार शुरू हुआ। प्लेन क्रैश की वजह से इन दोनों की मौत हुई। वैसे अब तक ये नहीं साबित हुआ कि हवाई जहाज को क्रैश कराने में हाथ किसका रहा, लेकिन इसके लिए रवांडा के हूतू चरमपंथियों को कुछ एक लोग जिम्मेदार ठहराते हैं। तो वहीं कुछ एक का कहना है कि रवांडा पैट्रिएक फ्रंट ने इस काम को अंजाम दिया था और ऐसा करने का कारण बताया जाता है ये कि हूतू समुदाय से दोनों ही राष्ट्रपति संबंधित थे। ऐसे में हूतू चरमपंथियों ने इस हत्या के लिए रवांडा पैट्रिएक फ्रंट यानि कि आरपीएफ को जिम्मेदार ठहराया। वहीं आरपीएफ की तरफ से ये आरोप जडे गए कि जहाज को हूतू चरमपंथियों ने उड़ा डाला जिसे कि उनको एक तरह का बहाना मिल जाए नरसंहार करने का।
दो समुदायों में शुरू हुआ संघर्ष और…
असल में तुत्सी और हुतू समुदाय से जुड़े लोगों के बीच ये नरसंहार हुआ था, जो कि एक जातीय संघर्ष के तौर पर देखा जाता रहा है। इतिहासकारों के अनुसार, 7 अप्रैल 1994 से आगे के 100 दिनों तक चले इस संघर्ष में तुत्सी समुदाय के अपने पड़ोसियों, संबंधियों और अपनी ही पत्नियों को हूतू समुदाय के लोगों ने मारना शुरू किया। तुत्सी समुदाय से संबंधित अपनी पत्नियों को हूतू समुदाय के लोगों ने बस इस वजह से मौत के घाट उतार डाला, क्योंकि वो ऐसा नहीं करते तो उनको ही मार डाला जाता। और तो और तुत्सी समुदाय के लोगों को मारने के अलावा इस समुदाय से संबंध रखने वाली औरतों के साथ तो वो किया गया जिसके बारे में शायद ही कोई सोच पाए। उन मासूम औरतों को सेक्स स्लेव बनाया गया यानि कि यौनक्रिया के लिए उन औरतों को गुलाम के तौर पर रखा गया।
हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि एक समुदाय के लोग मारते रहे और दूसरे समुदाय के लोग मरते रहे। बल्कि इस नरसंहार में तुत्सी समुदाय के अलावा हूतू समुदाय के हजारों लोगों की भी हत्या कर दी गई। कुछ मानवाधिकार संस्थाओं की मानें तो रवांडा की सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद हूतू समुदाय के हजारों लोगों को आरपीएफ लड़ाकों ने मौत के घाट उतारा। रवांडा के लाखों लोगों ने नरसंहार से बचने के लिए एक रास्ता निकाला। ये लोग भागकर दूसरे देशों में शरणार्थी बन गए।
क्या किसी को सजा भी हुई?
रवांडा नरसंहार के करीब सात साल बीत जाने के बाद कार्रवाई की बारी आई और 2002 में एक International crime court बनाया गया, जिससे कि इन मर्डर के जिम्मेदारों को सजा दी जा सके। वैसे इन हत्यारों को सजा मिल नहीं पाई फिर एक इंटरनेशनल क्रिमिलन ट्रिब्यूनल बनाया संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने। ये परिषद तंजानिया में बनाया गया जहां पर कइयों को इस नरसंहार के लिए दोषी करार दिया गया और उनको सजा भी सुना दी गई। और दूसरी तरफ रवांडा में भी सोशल कोर्ट्स का गठन किया गया जिससे कि जिम्मेदारों पर केस चल सके। कहा जाता है कि केस चलाने से पहले ही लगभग 10 हजार लोग जेल में ही मर गए।
जातीय संघर्ष में जो ये नरसंहार हुआ उसके बाद रवांडा में जनजातीयता को लेकर बोलना पूरी तरह से गैरकानूनी और बैन कर दिया गया और सरकार के मुताबिक ऐसा इस कारण किया गया ताकि नफरत न फैले लोगों में और फिर आने वाले वक्त में इस तरह की घटना न हो।