भारत के संविधान निर्माता, और दलितों के सम्मान के लिए पूरी जिंदगी लगाने वाले बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर मात्र 64 साल की उम्र में अचानक ही दुनिया को अलविदा कहकर चले गए थे। 6 दिसंबर 1956 की सुबह उनके निधन की खबर ने पूरे देश में शोक में डूबा दिया था। अंबेडकर इस तरह से शांति से हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह जाएंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन इस दिन भारत ने एक दूरदर्शी, विकासवादी, समाजसेवक लीडर खो दिया। उनकी मौत ने सबको झकझोर दिया था, लेकिन उनकी मौत के बाद भी राजनीति होना बाकि थी।
तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तुरंत बाबा साहब के निवास स्थान 26 अलीपुर रोड पहुंच गए। बाबा साहब की मौत के बाद पंडित नेहरू ने उनके पार्थिव शरीर को प्लेन से मुंबई उनके निवास स्थान भेजने का फैसला किया था और बाबा साहब का अंतिम संस्कार दिल्ली के बजाए मुंबई में हुआ था। अब सवाल ये है कि जब बाबा साहब की मौत दिल्ली में हुई थी तो फिर नेहरू ने क्यों उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया? आखिर क्या कारण था कि नेहरू हमेशा से अंबेडकर की विचारधारा को सपोर्ट नहीं करते थे? आज हम इसके बारे में ही जानेंगे…
दरअसल कहा जाता है कि सुबह जैसे ही बाबा साहब की मौत की खबर सरकारी कार्यालय में पहुंची, पंडित नेहरू सबसे पहले उनके निवास स्थान पहुंच गए। नेहरू जानते थे कि अंबेडकर की शख्सियत उनकी और महात्मा गांधी से कई गुणा ज्यादा ऊंची है। अंबेडकर की विचारधारा को पसंद करने वाले भी काफी हैं। वो दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए एक मसीहा थे, जिन्होंने सदैव उनके लिए लड़ाई लड़ी, उनके उत्थान के लिए काम किया।
तो वहीं दूसरी तरफ महात्मा गांधी और नेहरू वर्ण व्यवस्था और ब्राह्णवादी विचारों के कट्टर समर्थक थे, जिसमें से महात्मा गांधी की समाधी दिल्ली में ही बनाई गई थी। लोग महात्मा गांधी को पूजते थे, लेकिन नेहरू जानते थे कि अगर दिल्ली में बाबा साहब की समाधि बनी तो गांधी जी की समाधि का ओहदा कम हो जाएगा और उससे नेहरू जी की पार्टी और गांधी-नेहरू की विचाराधारा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता था।
जब बाबा साहब का शव मुंबई के शांताक्रूज हवाईअड्डे पर पहुंचा था, तब केवल एयरपोर्ट के बाहर करीब 50 हजार लोग बाबा साहब की एक झलक पाने के लिए खड़े थे। वहीं बाबा साहब के दादर में स्थित उनके घर राजगृह के बाहर भी करीब 50 हजार लोगों की भीड़ जमा थी। जो धीरे धीरे और ज्यादा बढ़ती गई।
जब बाबा साहब की अंतिम यात्रा निकली थी तब करीब 4 लाख लोग इस यात्रा में शामिल हुए थे। उत्तर मुंबई का पूरा ट्रैफिक करीब 5 घंटे तक ठप पड़ा था। लोगों ने बाबा साहब की शव यात्रा पर अपने अपने छतों से पुष्पवर्षा की थी। मुंबई के कपड़ा मिल के कर्मचारियों ने काम न करने का फैसला किया था। मिल मालिकों को अवैतनिक अवकाश घोषित करना पड़ा था। स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का फैसला किया गया था।
इतना ही 9 दिसंबर को बाबा साहब की श्रद्धांजलि देने के लिए प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिसमें करीब 2 लाख लोग शामिल हुए थे।
लोगों की ये भीड़ बता रही थी कि बाबा साहब क्या मायने रखते थे और अगर बाबा साहब का अंतिम संस्कार दिल्ली में होता तो गांधी जी और नेहरू का कद कितना छोटा पड़ जाता और शायद यहीं कारण था कि नेहरू जी ने बाबा साहब का अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया था।