‘दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में उनकी गूंज की कोई सीमा नहीं’
मदर टेरेसा के कहे गए ये कथन अगर कोई आज के समय में आत्मसात कर ले, तो वास्तव में मनुष्य को ज़िन्दगी के मायने भली भांति समझ में आ जाएंगे। वे एक ऐसी शख्सियत थीं जिनके व्यक्तित्व में एक अनोखा आकर्षण था। सरल स्वभाव, गरीबों की सेवा के प्रति आत्मसमर्पण, और चेहरे पर हमेशा रहने वाली एक सहज मुस्कान जैसे गुणों को अपने अंदर समाहित रखती थीं मदर टेरेसा। भले ही 26 अगस्त, 1910 में वे अल्बेनियाई परिवार में जन्मी हों, लेकिन दिल से वो हिंदुस्तानी थी। 1929 में जब उनके कदम भारत में पड़े, तो वो कभी लौटे नहीं। इसके बाद वो हमेशा यहीं की होकर रह गईं। आइये जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें जिनसे अभी तक काफी लोग अनभिज्ञ हैं।
रफू होती थी साड़ी
नोबल पुरुस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा पर कई जीवनियां लिखी जा चुकी हैं। जिनमें उनकी जीवनशैली से जुड़े कई रहस्य सामने आये हैं। उनकी एक जीवनी में इस बात का उल्लेख है कि मदर टेरेसा की साड़ी कहीं से फटी हुई तो नहीं रहती थी, लेकिन उस में जगह जगह रफू हुआ करती थी। ताकि ये न दिख सके कि वो फटी हुई है। हालांकि ऐसा इसलिए नहीं हैं कि उनके ऊपर कोई मज़बूरी का भार हो। टेरेसा बताती थीं कि ये उनके नियम के अधीन था। उनके नियम के मुताबिक उनके पास महज तीन साड़ियां ही होती थीं। एक रोज़ पहनने के लिए, एक धोने के लिए और तीसरी ख़ास मौकों पर पहनने के लिए।
चुटकुले सुनाने में एक्सपर्ट
ये मदर टेरेसा के चेहरे पर एक हमेशा विराजमान रहने वाली मुस्कान ही थी, जो उन्हें औरों से अलग बनाती थी। उनकी मुस्कान देखकर अच्छे अच्छों की टेंशन छूमंतर हो जाया करती थी। उनके कई नज़दीकी बताते हैं कि संतों की तरह उनका स्वभाव हमेशा शांत नहीं था। माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए वो कई बार मज़ाकिया अंदाज़ में चुटकुले भी सुनाया करती थीं। कई बार तो वो कोई फनी चीज़ सुनकर कमर पर हाथ रखतीं और हंसते हंसते दोहरी हो जातीं। उनका मानना था कि मैं ग़रीबों के पास उदास चेहरा लेकर नहीं जा सकती। मुझे उनके पास ख़ुशगवार चेहरे के साथ जाना होता है।
नहीं पीतीं थी एक बूंद पानी
बताया जाता है कि चाहे अमीर हो या गरीब, मदर टेरेसा किसी के घर न एक खाने का निवाला चखतीं थी और न ही एक बूंद पानी पीती थीं। इसके पीछे की वजह वो बताती थीं, “जब हम ग़रीबों के यहाँ जाते हैं तो उन्हें एक प्याला चाय या कोल्ड ड्रिंक पिलाने में भी दिक़्क़त होती है। इसलिए अब हमने नियम बना लिया है कि हम कहीं एक बूंद पानी भी नहीं पीते।” उनके भोजन में खिचड़ी, दाल जैसा साधारण खाना था। उनका ज्यादातर समय कोलकाता में व्यतीत हुआ था, इसलिए 20 दिन में एक बार मछली भी वो खा लेती थीं। मछली कोलकातावासियों का मुख्य भोजन है। इसके अलावा चॉकलेट भी उनकी पसंदीदा हुआ करती थी।
पटना से जुड़ा है ख़ास कनेक्शन
ये बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि कोलकाता के अलावा टेरेसा का बिहार के पटना से भी ख़ास कनेक्शन है। बताते हैं कि गरीबों की सेवा करने से पहले उन्होंने साल 1948 में पटना सिटी में होली फैमिली अस्पताल में मेडिकल ट्रेनिंग ली थी। इस दौरान वो एक तहखाने जैसे छोटे से कमरे में रहा करती थीं। वो कमरा अभी तक पटना में जीवित है। और लोगों ने इसे मदर टेरेसा की निशानी के तौर पर सहेज कर रखा है। पटना से ट्रेनिंग के बाद वो कोलकाता रवाना हो गई। और गरीबों की मसीहा बनकर उनकी सेवा करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। साल 1980 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था।