भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलवाने में यूं तो लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान दी थीं। लेकिन भगत सिंह के व्यक्तित्व का प्रभाव कुछ अलग ही पड़ा। महज़ 23 साल का युवा अपने 2 साथियों के साथ गर्व से मां भारती के लिए फांसी पर झूल गया। इस शहादत का प्रभाव इतना हुआ कि पूरे देश के युवाओं के अंदर भगत सिंह ने जन्म ले लिया। भगत सिंह के बलिदान ने उस वक़्त युवाओं के अंदर ऐसा जोश भर दिया कि वे सीधा अंग्रेज़ी हुकूमत से टक्कर लेने को तैयार रहते थे।
जब हक के लिए लड़ने का रास्ता चुना
ऐसा नहीं है कि भगत सिंह शुरू से ही इस उग्र विचारधारा के इंसान थे। भगत सिंह भी छुटपन से गांधी के विचारों को मानते थे। लेकिन 1921 में जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलने वाले असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया गया, तो एक खास वर्ग गांधी जी के इस फैसले से सहमत नहीं था। इस घटना ने 14 साल के किशोर भगत सिंह पर ज़बरदस्त असर डाला और भगत सिंह ने गांधी के अहिंसा का रास्ता छोड़ कर अपने हक के लिए लड़ने का रास्ता चुना।
ऐसे भारत का देखा था सपना
भगत सिंह का मकसद सिर्फ भारत को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी दिलाने तक ही सीमित नहीं था। भगत सिंह ने जिस भारत की कल्पना की थी उसमें वो भारत का निर्माण एक अशोषित समाज के रूप में करना चाहते थे। जहां ताक़तवर वर्ग कमज़ोरों को ना दबाए, जहां धर्म के नाम पर बंटवारा और मार-काट ना हो। वो हमेशा कहते थे कि सिर्फ अंग्रेज़ो से आज़ादी हमारा मकसद नहीं है, मकसद है देश को एक ऐसा नेतृत्व देना जो इसे एक भ्रष्ट, शोषक और साम्प्रदायिक समाज ना बनने दें।
क्यों हुईं थीं भगत सिंह को फांसी?
1928 में जब भारत में साइमन कमीशन आया तो उसका पूरे भारत मे विरोध हुआ और “साइमन गो बैक” नारे की गूंज ब्रिटिश सरकार को परेशान करने लगी। जिसके चलते हर जगह भारतीय प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया गया, जिसमें शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी लाल लाजपत राय की मौत हो गई। इस घटना में भगत सिंह को भीतर तक झकझोड़ दिया था। उनकी मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को अंग्रेज़ी मुलाज़िम स्कॉट की हत्या का प्लान बना। लेकिन निशाना चूक गया और स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स क्रांतिकारियों का निशाना बन गए, जिसके बाद भगत सिंह और उनके साथियों के साथ अंग्रेज़ी हुकूमत के लुका छुपी का दौर शुरू हो गया।
1929 में अंग्रेज़ी हुकूमत पब्लिक सेफ्टी और डिस्प्यूट्स बिल लाने की तैयारी में, जो भारत के बेहद घातक माना जा रहा था। तय हुआ कि इस बिल का विरोध किया जाएगा और असेंबली में बम फेंका जाएगा। मकसद किसी को चोट पहुंचना नहीं सिर्फ अंग्रेज़ी हुकूमत को नींद से जगाना था। इस बार निशाना नहीं चूका, जो मकसद था पूरा हुआ। भगत सिंह में अपनी गिरफ्तारी अपनी सहमति से दी। वो चाहते भी यही थे कि जेल जाएं और युवाओं को संदेश दे कि सिर्फ अहिंसा के रास्ते पर चल कर ही अपना हक नहीं मिलता। हक मांग कर नहीं छीन कर लिया जाता है। आज़ादी कुर्बानी मांगती है, जिसे देने के लिए वो हमेशा कतार में सबसे आगे खड़े रहे।
भगत सिंह सिर्फ एक स्वतंत्र सेनानी नहीं, वो एक विचारधारा है। युवाओं के लिए प्रेरणा।