उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक विश्वविद्यालय स्थित है, जिसकी गिनती होती है एशिया की बड़ी यूनिवर्सिटीज में। इसकी हिस्ट्री रोमांचक हैं। हम बात कर रहे हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की। ये तो सब जानते हैं कि बनारस का एक नाम काशी भी है तो ऐसे में कुछ लोग इसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय कहते हैं तो कुछ लोग इसे सेंट्रल हिंदू कॉलेज के तौर पर भी जानते है…
कब-कैसे हुई BHU की स्थापना?
इस यूनिवर्सिटी को साल 1916 में स्टैब्लिश किया गया। पेशे से प्रमुख वकील मदन मोहन मालवीय ने एनी बेसेंट की हेल्प से इस पूरे यूनिवर्सिटी को खड़ा किया। यहां हर साल 30,000 से ज्यादा छात्र पढ़ने के लिए आते हैं, जिसमें भारत के स्टूडेंट्स तो होते ही हैं इसके साथ ही एशिया के स्टूडेंट्स भी होते हैं। ऐसे में यह पूरे एशिया का एक जानी मानी यूनिवर्सिटी है। इंटरनेश्नल लेवल पर 2019 के क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में बीएचयू ने 801-1000 रैंक पाया था।
भारत में NIRF यानी कि राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क की तरफ से साल 2019 में तीसरे पायदान और ओवर ऑल में 9वां स्थान बीएचयू को रखा था। राष्ट्रीय विश्वविद्यालय होने की वजह से यहां का जो सिलेबस है वो कई सब्जेक्ट्स के स्नातक(UG), स्नातकोत्तर(PG) और डॉक्टरेट लेवल तक का है।
अब करते हैं बीएचयू की हिस्ट्री की बात तो इसे बनाने वाले मालवीय मानते थे कि राष्ट्रीय जागृति के लिए शिक्षा ही एक ऑप्शन है। बनारस में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 21 वां सम्मेलन दिसंबर 1905 में हुआ जिसमें मालवीय ने सार्वजनिक तौर पर वाराणसी में एक यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान किया था। एनी बेसेंट के साथ मिलकर साल 1911 में मालवीय ने एक यूनिवर्सिटी वाराणसी में बनाने की ठानी और फिर उन्होंने अपनी वकालत छोड़कर पूरा फोकस इसी काम में लगाया।
यूनिवर्सिटी की नीव वसंत पंचमी 4 फरवरी 1916 को रखी गयी। बीएचयू के पहले कुलपति सुंदरलाल थे। 1916 में आखिरकार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हो ही गई, जबकि देश में अंग्रेजी सरकार थी। इस काम के लिए मालवीय को 1360 एकड़ जमीन के लिए 11 गांव, 70 हजार वृक्ष, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला दान में मिला ताकि यूनिवर्सिटी खड़ी की जा सके।
क्या आप जानते हैं कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को लेकर पहली सोच दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह की थी। उस समय के दौर में एक करोड़ रुपये सरकार को जमा करने थे। नीयत अच्छी थी तो 1915 में ये रकम को भी पूरा इकट्ठा कर लिया गया। पांच लाख गायत्री मंत्रों का भूमि पूजन पर जाप खुद मालवीय ने किया। इस यूनिवर्सिटी के मालवीय तीसरे कुलपति 1919 में बनने ही जा रहे थे, लेकिन कुछ लोगों ने विरोध जताया था।
BHU से जुड़ी खास बातें…
वाराणसी के दक्षिणी छोर गंगा नदी के किनारे BHU है। काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह ने जो भूमि दान की थी उस पर ही बीएचयू का मुख्य परिसर फैला हुआ है। बीएचयू की इमारतें इंडो-गोथिक वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है जिसके कैंपस में 12,000 से ज्यादा स्टूडेंट के लिए हॉस्टल की भी सुविधा दी गई है ये हॉस्टल 60 से ज्यादा हैं। मेंन लाइब्रेरी के अलावा तीन संस्थान लाइब्रेरी, आठ संकाय लाइब्रेरी और 25 से ज्यादा यहां Departmental library भी है। परिसर में Sir Sunderlal Hospital Institute of Medical Sciences के लिए एक teaching hospital भी है। परिसर के बीच में शिव जी का काफी ज्यादा फेमस मंदिर श्री विश्वनाथ मंदिर भी हैं। भारत कला भवन नाम का एक Art and Archaeological Museum बीएचयू के कैंपस में हैं।