हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर एक डिस्ट्रिक्ट है जो यमुना नदी के किनारे पर ही है और इस डिस्ट्रिकट का नाम है सिरमौर। यहां के पांवटा साहिब के बारे में हम जानेंगे, जो सिखों के लिए एक बेहद अहम जगह है। जानेंगे इस गुरुद्वारे से जुड़ी पूरी स्टोरी…
पांवटा साहिब के नाम का मतलब
पांवटा साहिब को स्थापित किया था सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने। इस जगह के बारे में कहते हैं कि इसका नाम पहले पाओंटिका था। पौंटा का मतलब है पैर, इस जगह का नाम इसके अर्थ के मुताबिक देखें तो बेहद अहम हैं। माना जाता है कि अपने घोडे़ से सिख गुरु गोबिंद सिंह जी जा रहे थे और इसी जगह पर आकर उनके घोड़े ने अपने पैर जमा लिए। तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने पाओं और टीके को जोड़कर पांवटा का नाम दिया। गुरु जी ने इसी जगह गुरुद्वारा स्थापित करवाया और अपने जीवन के साढ़े 4 साल यही रहे।
गुरुद्वारे के भीतर श्रीतालाब स्थान है जहां से गुरु जी वेतन बंटा करते थे और गुरुद्वारे में श्रीदस्तर जगह है जहां गुरु जी पगड़ी बांधने के कॉप्टिशन में जज हुआ करते थे। गुरुद्वारा में एक संग्रहालय भी है जहां गुरु जी के इस्तेमाल में लाई कलम और तब के वक्त वाले हथियारों को देखा जा सकता है।
कैसे रखी गई थीं पांवटा साहिब की नींव?
क्या आप जानते हैं कि इस पूरी धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा शहर है जिसका नाम गुरु गोबिंद सिंह ने खुद रखा? गुरु गोबिंद सिंह जी ने 17 वैशाख संवत 1742 को साल 1685 में नाहन गए और पांवटा साहिब की नींव रखी। साढ़े 4 साल पांवटा साहिब में रहते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई साहित्य रचनाएं की, कई गुरुवाणी लिखी। पुराने साहित्य और ज्ञान की रचनाओं को सरल भाषा में लेखकों से लिखावाया। यहां पर एक कवि दरबार की भी गुरू ने स्थापना करवाई थी जिसमें 52 भाषाओं के अलग अलग कवि थे। कवि दरबार स्थान पर पूर्णमासी की रात गुरु जी एक खास तरह के कवि दरबार को भी सजवाया करते थे।
दरअसल, बाइस धार के राजाओं में युद्ध होते रहते थे। ऐसे में हुआ ये कि नाहन रियासत के तब के जो राजा थे मेदनी प्रकाश उनका कुछ एरिया पर श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपना कब्जा कायम कर लिया था पर राजा मेदनी प्रकाश अपने एरिया को आजाद कराना चाहते थे पर कामयाब नहीं हो पा रहे थे। तो ऐसे में राजा ने तपस्वी ऋषि काल्पी से मशविरा की तो ऋषि ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी को अपनी रियासत में बुलाकर राजा अपनी परेशानी दूर कर सकते हैं तो राजा ने गुरु गोबिंद सिंह जी को नाहन आने का रिक्वेस्ट किया जिस पर गुरुजी नाहन पहुंचे। जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। वहां पहुंचकर गुरू जी ने पूरे एरिया का दौरा किया।
उन्होंने 1686 में अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। गुरु गोबिंद सिंह ने यह लड़ाई 20 की कम उम्र में लड़ी, जिसमें उन्होंने राजा फतेह साहिब को मात दी और बिना किसी ट्रेनिंग के फौज को बाइसधार के राजाओं के मुकाबले में खड़ा किया और उनकी 25 हजार फौज को हरा दिया। इसी युद्ध से गुरु जी ने अन्याय के खिलाफ जैसे युद्ध ही छेड़ दिया और एक के बाद एक 13 युद्ध किए। पांवटा साहिब गुरुद्वारा में एक पालकी है जो कि शुद्ध सोने से बनी है। जिसे किसी भक्त ने दिन किया है। ऐसी कथा है कि पास में बहती यमुना नदी शोर कते हुए बह रही थी पर गुरु गोबिंद सिंह जी के कहने पर वो शांत हो गया जिसके बाद गुरु जी यमुना किनारे बैठकर दसम् ग्रंथ लिख पाए और आज भी यहां यमुना बिलकुल शांत हैं।