जाति-व्यवस्था के खिलाफ एक से एक आंदोलन हुए हैं। कई तो कामयाब हुए और कई काफी प्रभावी आंदोलन रहे । ऐसे ही प्रभावी आंदोलनों में से प्रमुख रहा साल 1925 में हुआ आत्म-सम्मान या फिर द्रविड़ आंदोलन जो कि तमिलनाडु में हुआ। पेरियार ई.वी. रामास्वामी के नेतृत्व में इस आंदोलन की शुरुआत की गई। जब भारत खुद की आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। इस द्रविड़ आंदोलन के बारे में हम पूरे डीटेल से जानेंगे…
भेदभाव और छुआछूत के अगेंट्स ये ‘द्रविड़ आंदोलन शुरू हुआ जब साल केरल के त्रावणकोर के राजा के मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते पर 1924 में दलितों की एंट्री बैन करने का विरोध किया गया और ऐसा हुआ कि जिन लोगों ने विरोध किया उनको अरेस्ट कर लिया गया था। इसी के बाद आंदोलन के नेतृत्व के लिए मद्रास राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष पेरियार को नेताओं ने बुलावा भेज दिया।
फिर क्या था पेरियार ने इस्तीफा दिया और फिर केरल आ गए। इतने पर उनको भी अरेस्ट कर लिया गया वो भी महीनों तक के लिए। इसी दौरान ऐसी खबर आई कि कांग्रेस के अनुदान से चेरनमादेवी शहर में चल रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में जब भोजन परोसा जाता है तो ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ अलग व्यवहार होता है। इस पर कांग्रेस को पेरियार ने इस स्कूल का अनुदान बंद करने के लिए कहा जिस पर कांग्रेस मानी नहीं। दूसरी तरफ सुब्रह्मण्यम अय्यर से सभी छात्रों से एक जैसे बिहेव करने के लिए पेरियार ने रिक्वेस्ट किया पर उस पर भी पेरियार को मना ही कर दिया गया। इस पर पेरियार ने पहले तो कांग्रेस छोड़ दिया और फिर आत्म-सम्मान आंदोलन शरू कर दिया जिसको द्रविड़ आंदोलन के तौर पर पहचाना गया।
पेरियार को यकीन था कि इंसान अपना आत्मसम्मान अगर डेवलप करे तो वो खुद की पर्सनैलिटी को डेवलप करेगा और किसी की भी गुलामी को खुद ही नकार देगा। पेरियार के अनुसार गैर-ब्राह्मणों को वो द्रविड़ कहते थे। छूत-अछूत, असमानता, धार्मिक विश्वास इसके अलावा ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीति पर चोट के लिए इस आंदोलन को शुरू किया गया था। जिसका पहला चरण गैर-ब्राह्मण आंदोलन था और इसमें दो उद्देश्य रखे गए थे –पहला था शिक्षा और सामाजिक हालातो में ब्राह्मणों और बाकि की जातियों के बीच भेद को कम करना और इसके लिए पिछड़ी जातियों को और ज्यादा विशेष तरह के अधिकारों और रियायतों की मांग पूरी करवाना। दूसरा ये कि पिछड़ी जातियों के आत्मसम्मान को हासिल करना मतलब की पिछड़ी जातियों को समान मानवाधिकारों का हक देना।
भारत में ब्राह्मणवाद के अगेंट्स ये एक हिस्टोरिकल आंदोलन था जो देखते ही देखते लोकप्रिय हो गया था और एक राजनीतिक मंच बन गया। क्या तमिलनाडु, क्या मलेशिया, क्या सिंगापुर ऐसा बड़ी तमिल आबादी वाले देशों में इस आंदोलन ने अपना गहरा असर छोड़ा। सिंगापुर के भारतीयों के बीच तो इस आंदोलन के प्रभाव से तमिल सुधार संघ जैसे समूह को शुरू कर दिया गया और ऐसे ही रामास्वामी नाइकर ने द्रविड़ कषगम की साल 1945 में स्थापना की और साल 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानी की डीएमके की सी अन्नादुराई ने स्थापना की। जिसने तमिलनाडु में पूरी तरह से ब्राह्मणों के वर्चस्व को मिटा डाला। आज भी इस द्रविड़ आंदोलन का प्रभाव कई कई संस्थाओं पर रहा ही है।