कहते हैं कि आपातकाल के बाद का दौर ऐसा था कि इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत पर से जनता का विश्वास उठ गया और जब इंदिरा गांधी 1977 का चुनाव हार गई, तो फिर बेलछी की घटना से ही वो अपना और अपनी पार्टी को राजनीतिक जीवनदान दे पाई थीं। ऐसे में ये जानना होगा कि आखिर ये बेलछी गांव नरसंहार कांड क्या था? जिसका वक्त वक्त पर जिक्र होता रहा है। तो आज इसी के बारे में जानेंगे…
11 दलितों की हुई थी बेरहमी से हत्या
बेलछी नरसंहार को जानने के लिए बिहार का रुख करना होगा, जहां बेलछी नरसंहार बिहार का पहला जातीय नरसंहार था। साल 1977 को 27 मई के दिन इसे अंजाम दिया गया, जब बेलछी में ही 11 दलितों की जान ले ली। बिहार के हरनौत विधानसभा एरिया में आने वाले इस गांव में तब दर्दनाक घटना हुई। दरअसल बंदूको और कई तरह के हथियारों से लैस कुर्मियों के बड़े ग्रुप ने गरीबों के घर पर अटैक किया। 11 दलित मजदूरों को घर से बाहर निकाल लाया गया और एक मैदान में घसीटते हुए लेकर जाया गया और फिर बंधक बनाया गया।
जानिए क्या था वो पूरा कांड?
उन 11 लोगों के इर्द गिर्द लकड़ियों और घास-फूस के ढेर लगाए गए थे फिर उनमें आग लगाई गई। इन सभी 11 लोगों को जिंदा ही मौत के हवाले कर जान ले ली गई। बेलछी नरसंहार का जो मुख्य आरोपी था महावीर महतो। ऐसे आरोप लगाए जाते है कि उसका गांव के सार्वजनिक संपत्ति-जमीनों यहां तक की तालाबों पर कब्जा था। अपनी ताकत से वो गांव के रहने वाले अलग अलग जातियों को परेशान किया करता था। इसी दौरान अपने ससुराल बेलछी दुसाध जाति का एक कृषक मजदूर सिंघवा आया और वहां महावीर महतो के किए जा रहे अन्याय का उसने खुलकर विरोध किया। साथ ही इसके खिलाफ गांववालों को एकजुट किया।
महावीर माहतो को ऐसा लगा कि वो सिंधवा का सामना अकेले रहकर नहीं कर पाएगा। ऐसे में उसने निर्दलीय विधायक इन्द्रदेव चौधरी से मदद ली। इंद्रदेव की जीत के पीछे कुर्मी जाति का काफी ज्यादा वोट मिला था। फिर सिंधवी और बाकी लोगों को सबक सिखाने के मकसद से कुर्मी जाति का एक बड़ा गुट एकजुट हुआ और बेलछी नरसंहार को अंजाम दे दिया गया।
घंटों गोलियां चलाई गई जिसमें 11 लोगों को जिंदा जलाया गया। एक 14 साल के लड़के ने कोशिश तो की आग से निकलने की, लेकिन उसके उठते ही उसे फिर से आग में झोंक दिया गया। चीख तो उठी सबकी पर कोई सुनने वाला नहीं था। मरने वालों में 8 पासवान जाति के लोग थे और 3 सुनार थे।
हाथी पर सवार होकर बेलछी गई इंदिरा
इस घटना के बारे में पता चला इंदिरा गांधी को तो वो इसमें शायद अवसर खोजने लगी थीं। 1977 में उनकी हार हुई थी और जनता पार्टी की सरकार बने कुछ वक्त ही बीते थे और इतने पर भयानक कत्लेआम। जनता की नब्ज पकड़ने में तो इंदिरा गांधी का कोई सानी नहीं था, तो हवाई जहाज से वो पटना पहुंच गई और कार के जरिए बिहार शरीफ फिर बेलछी जाने के लिए उनको कई जद्दोजहद करने पड़े। आखिर में नदी पार करके इंदिर गांधी और प्रतिभा पाटिल हाथी पर सवार होते बेलछी गांव रात के वक्त पहुंची, जहां उन्होंने पीड़ितों का हाल जाना था। इंदिरा गांधी बेलछी से पांच दिन बाद लौटी दिल्ली और तब तक ये घटना इंटरनेशनल न्यूज पेपर में सुर्खियों में आ चुकी थी और तब तक इंदिरा गांधी ने इमोशनल तरीके से बेलछी के लोगों के मन को अपनी तरफ कर लिया था।