दलितों में आत्मविश्वास जगाने के लिए हमेशा ही अपनी आवाज बुलंद करने वाले एक क्रांतिकारी शख्स, जिन्होंने कई मायनों में दलितों के अधिकार दिलवाए उनके बारे में आज हम जानेंगे। कैसे अय्यंकालि ने शिक्षा क्रांति की और कैसे उन्होंने दलितों को एकजुट किया? हम जानेंगे अय्यंकालि के बारे में अनकही जानकारियां, जिससे आप भी उन महान शख्सियत को जान सकें।
1904 में दलित जाति मानी जाने वाली पुलायार जाति के अय्यंकालि ने पुलायार और दूसरे अछूतों के लिए शिक्षा के रास्ते खोलने की कोशिश में वेंगनूर में हला स्कूल खोला। लेकिन ये भी सवर्णों के लिए बर्दाश्त से बाहर की बात थी तो उन्होंने स्कूल पर हमला करवा दिया। स्कूल को पूरा का पूरा उजाड़ दिया गया। हार तो अय्यंकालि ने भी नहीं मानी और तुरंत स्कूल का नया ढांचा तैयार कर दिया। अध्यापक को सेफ्टी से लाने ले जाने की व्यवस्था की और उनके लिए रक्षक लगा दिए।
तनाव और आशंकाओं के बीच ही सही पर स्कूल फिर चलाया जाने लगा। 1 मार्च 1910 आया तब सरकार ने शिक्षा नीति पर काफी कठोर आदेश जारी किए। पहले तो शिक्षा निदेशक मिशेल खुद ही हालात के बारे में जानने के लिए दौरे पर निकले। स्कूल में दलित विद्यार्थियों को एंट्री करते देख सवर्णों की तरफ से जोरदार हंगामा किया गया। मिशेल की जीप को उपद्रवी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया।
स्कूल में उस दिन महज आठ पुलायार छात्रों को एंट्री दी गई, जिसमें 16 साल का एक किशोर भी शामिल था, जो पहली कक्षा में एंट्री ले पाया। साल 1912 आया जब ‘श्री मूलम पॉपुलर असेंबली’ का सदस्य अय्यंकालि को चुना गया। अय्यंकालि ने राजा और दीवान की मौजूदगी में अपना पहला भाषण दिया और इस भाषण में दलितों के लिए उन्होंने कई सारी मांगे रखी थीं। जैसे कि संपत्ति का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, राज्य की नौकरियों में विशेष आरक्षण की मांग, बेगार से मुक्ति की भी उन्होंने इस मांग रखी थी।
अय्यंकालि ने ‘साधु जन परिपालन संघम’ की साल 1907 में स्थापना की जिसके कुछ मुख्य संकल्प थे जैसे कि पर वीक वर्किंग डे 7 से घटाकर 6 कर देना। काम के दौरान मजूदरों को खराब तरीके से ट्रीट न करना। मजदूरी में वृद्धि और कई तरह के सामाजिक सुधार के कार्यक्रम जैसे कि स्पेशल कोर्ट और लाइब्रेरी को स्टैब्लिश करने का संकल्प था। अय्यंकालि दलितों को शिक्षा दिलवाने के लिए कोशिश करते रहे। हालांकि इसे लेकर कानून बन चुका था और सरकार भी साथ खड़ी थी पर सवर्ण विरोध पर अड़े थे।
रूस की बोल्शेविक क्रांति से एक डेकेड पहले की ही घटना है जब साल 1907 में दलित पुलायार जाति को लोगों ने ने ये कहा कि उनके बच्चों को स्कूलों में जब तक एंट्री नहीं करने दिया जाएगा तब तक वो खेतों में काम नहीं करेंगे। तब तो हंसकर जमींदारों ने इस बात को टाला पर हड़ताल देखते ही देखते लंबी होती चली गई। और हड़ताल करने वालों ने मांगे बढ़ा दीं जैसे कि नौकरी को स्थायी करने की मांग, दंड से पहले जांच की मांग, सार्वजनिक रास्ते पर चलने का अधिकार, परती और खाली जमीन को जो उपजाऊ बनाए वो उसे उसका मालिक बनाए जाने की मांग उठाई जाने लगी।
फिर हुआ ऐसा कि चिढ़ चुके सवर्ण पुलायारों को धमकी देने लगे, डराने लगे और फिर मार-पीट की कई घटनाएं होने लगीं। इतने पर भी हड़ताल पर सभी दलित डटे रहे। ऐसे में दलितों के घर खाने की परेशानी आने लगी तो इसका एक उपाय अय्यंकालि ने निकला। मछुआरों के पास जाकर उन्होंने कहा कि एक-एक पुलायार को अपने साथ नाव पर काम दें और दैनिक आय का एक भाग उनको दे दें। इस कदर खुद के लिए रास्ता निकालते देख जमींदारों ने पुलायारों की बस्ती को ही आग के हवाले कर दिया। फिर भी हड़ताल पर बैठे लोगों ने हार नहीं मानी और आखिर में जमींदारों ने हार मान ली और सरकार ने कानून बनाया जिससे पुलायार समेत दूसरे दलित शिक्षा पाने के हकदार हो गए। मजदूरी में वृद्धि हुई, सार्वजनिक रास्ते पर आने-जाने की आजादी मिला और भी बाकी कि मांग मान ली गई।