Jyotirao Phule – ज्योतिराव फुले 19वीं सदी के एक महान समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे. इन्हें महात्मा फुले एवं ”जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है. इन्होंने अपना पूरा जीवन स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह को बंद कराने में लगा दिया. फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे. 28 नवंबर, 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. आइये उनसे जुड़ी खास बातें जानते हैं.
ज्योतिराव फुले ने लड़ी लड़ाई
महाराष्ट्र में जन्मे इस महान लेखक ने समाज में व्याप्त छुआछूत और जाति आधारित उत्पीड़न को मिटाने के लिए कड़ी मेहनत की. 1848 में, उन्होंने पुणे के भिडे वाडा में लड़कियों के लिए अपना पहला स्कूल शुरू किया. बाद में, उन्होंने निचली जातियों के लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपने अनुयायियों के साथ सत्यशोधक समाज (सोसायटी ऑफ ट्रुथ सीकर्स) का भी गठन किया.
तमाम धर्मों और जातियों के लोगों ने उनका संघ बनाया, और सालों से , उनके काम ने उन्हें पूरे महाराष्ट्र राज्य में पहचान दिलाई, जहाँ आज उन्हें समाज सुधार आंदोलन के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है. साल 1888 में, उन्हें एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वंडेकर द्वारा ‘महात्मा’ (‘महान आत्मा’) की उपाधि दी गई थी.
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फुले (Jyotirao Phule) का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो माली जाति से संबंधित था, जो जीवनयापन के लिए फल और सब्जियां उगाता था. ब्राह्मणवादी जाति पदानुक्रम के अनुसार, उन्हें ‘शूद्र’ के रूप में वर्ण के नीचे रखा गया था.
जब वो पढाई के लिए बड़े हो रहे थे तब उस वक़्त उनकी जाति में शिक्षा को लेकर कोई चर्चा नहीं थी, बहुत कम उम्र में अपनी माँ को खो देने के बाद, माना जाता था कि माली जाति का ही एक व्यक्ति था, जिसने उनके कौशल और हुनर को पहचाना और अपने पिता से अनुमति देने का अनुरोध किया. उन्हें स्थानीय स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल में भाग लेने के लिए, जहाँ से उन्होंने 1847 में अंग्रेजी में स्कूली शिक्षा पूरी की.
इस वाकये ने बदल दिया सब कुछ
मात्र 13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गयी थी, साल 1848 में वो एक दिन था जिसने उन्हें ये एहसास दिलाया की शायद समाज में हमारी जाति के लिए लोगों के भीतर इज्ज़त लानी पड़ेगी. क्योंकि ऐसी प्रताड़ना को झेलते हुए कोई इंसान कब तक जी सकता है. हुआ कुछ यूं था कि वो एक दिन अपने किसी ब्राह्मण दोस्त की शादी में गए थे. जिसकी वजह से उन्हें दांत सुननी पड़ी थी. और इसी घटना से प्रेरित होकर उन्होंने में समाज में जाती आधारित हो रही प्रताड़ना को लेकर परिवर्तन लाने की ठान ली.
ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) ने महिला शिक्षा पर दिया जोर
समय के साथ, उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को महसूस किया और पहले अपनी पत्नी सावित्रीबाई को शिक्षित करके और फिर पुणे में लड़कियों के लिए एक स्वदेशी स्कूल शुरू करके इसे चुनौती दी.
रूढ़िवादी उच्च-जाति समाज ने इसे स्वीकार नहीं किया और शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर उनके रुख के लिए युगल पर नियमित रूप से हमला किया गया. तब उन्हें एक दोस्त उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख ने मदद की, जो उसी कारण के अग्रणी थे, जिन्होंने उन्हें आश्रय प्रदान किया और परिसर में एक स्कूल शुरू करने में उनकी मदद की.
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फुले जाति की भयावहता को देखते थे, जिसमें अछूतों को सड़क पर झाड़ू लगाने के लिए अपनी पीठ पर झाड़ू लगाने के लिए कहा जाता था, ताकि उनकी पटरियों को साफ किया जा सके, विधवाओं को उनके सिर मुंडवाए जाते थे, और अछूत महिलाओं को सड़क पर नग्न घुमाया जाता था.
इससे महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और जाति-आधारित बुराइयों को दूर करने की उनकी इच्छा को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने भ्रूण हत्या को रोकने और विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने के लिए भी संघर्ष किया. सामाजिक अस्पृश्यता के कलंक को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपने घर को निचली जाति के लोगों के लिए खोल दिया और उन्हें अपने कुएं का उपयोग करने की अनुमति दी.
ज्योतिराव फुले के बारे में कुछ खास बातें:-
1. दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
2. अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया.
3. ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली. वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे.
4. उच्च वर्ग के लोगों ने शुरू से ही उनके काम में बाधा टांग अड़ाने की कोशिश की लेकिन जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाव डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया. इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका जरूर लेकिन शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक लड़कियों के तीन स्कूल खोल दिए.
5. शिक्षा के साथ-साथ फुले दंपति ने विधवा के लिए आश्रम, विधवा पुनर्विवाह, नवजात शिशुओं के लिए आश्रम, कन्या शिशु हत्या के खिलाफ भी आवाज बुलंद किया.
6. उनके अपने पहले स्कूल में जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री फुले को लड़कियों को पढ़ने योग्य बनाया.
7. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘ऐग्रिकल्चर ऐक्ट’ पास किया. और यही वो लेखक हैं जिन्होंने सबसे पहले ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया.