75 सालों से भारतवासी अपने खून से चुका रहे हैं जवाहरलाल नेहरु की 5 गलतियों का खामियाजा
27 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। वहीं इसकी 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देश के कानून मंत्री किरन रिजिजू ने भारत देश के पहले प्रधानमंत्री की कश्मीर नीति की आलोचना की है और इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की पांच गलतियां गिनाई हैं। साथ ही ये भी बताया कि इन गलतियों का खामियाजा 75 सालों से भारतवासी अपने खून से चुका रहे हैं।
ये हैं प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की 5 गलतियां
पहली गलती
भारत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने 1947 में जम्मू और कश्मीर के एकीकरण का मामला सरदार पटेल को सौंपने के बजाय खुद संभालने का फैसला किया। जिसकी वजह से भारत में पूर्ण विलय रुक गया साथ ही कई तरह के सुरक्षा खतरों के साथ भारत में आतंकवाद का भी जन्म हुआ उनके इन फैसलों की वजह से कश्मीर में रहने वाले लोग कई दशकों से इसका अंजाम भुगत रहे हैं।
दूसरी गलती
जम्मू-कश्मीर के विलय को ‘स्पेशल केस’ बताया गया। जब पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तो महराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद का अनुरोध किया। जिसके बाद कैबिनेट समिति की बैठक हुई और इसमें यह तय किया गया कि महाराजा भारत में शामिल होंगे। इसके बाद भी केंद्र सरकार इस विलय को अंतिम नहीं मानेगी। नेहरू ने यह भी तय किया था कि विलय को लोगों की इच्छा के मुताबिक अंतिम रूप दिया जाएगा और ये नेहरु जी द्वार की गयी दूसरी बड़ी गलती थी.
तीसरी गलती
1 जनवरी 1948 को, नेहरू ने कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र चार्टर (UN Charter) के तहत यूएनएससी (UNSC) से संपर्क करने का फैसला किया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप करते हुए भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (UN Commission for India and Pakistan) का गठन किया। पिछले कुछ दशकों में जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों ने भारत की स्थिति को कमजोर कर दिया है। नेहरू ने UN में अनुच्छेद 51 के बजाए अनुच्छेद 35 के तहत जाने का फैसला किया, जो कि विवादित भूमि से संबंधित है। जबकि आर्टिकल 51 ने भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तान के अवैध कब्जे को उजागर किया है। इसके साथ ही अगर नेहरू ने भारतीय सैनिकों पर भरोसा किया होता और मिलिट्री एक्शन जारी रखने की परमिशन दी होती, तो भारत पाकिस्तानी सैनिकों को और पीछे धकेलने में कामयाब होता और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) बनने से रुक जाता.
चौथी गलती
यूएनसीआईपी का जनमत संग्रह कराने का सुझाव भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है। UNCIP ने खुद इस बात को स्वीकार किया है। 13 अगस्त 1948 को, UNCIP ने तीन भागों के साथ एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसे हर हाल में पूरा किया जाना था।
1 जनवरी, 1949 को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम किया गया था। हालांकि, पाकिस्तान ने पूरी तरह से अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाया, जिसका मतलब था कि पार्ट II यानी ‘समझौता और पाकिस्तानी सैनिकों की वापसी’ कभी पूरा ही नहीं हुआ। UNCIP ने 23 दिसंबर, 1948 को इस बात का उल्लेख किया था कि अगर पाकिस्तान पार्ट 1 और 2 को लागू करने में विफल रहता है, तो जरूरी नहीं कि भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार करे। इस मामले पर UNCIP की स्पष्ट शर्तों के बावजूद इस झूठ का प्रचार किया गया कि भारत कश्मीर मसले पर जनमत संग्रह कराने के लिए बाध्य है। जनमत संग्रह का तो सवाल ही नहीं उठना चाहिए था क्योंकि पाकिस्तान ने UNCIP के प्रस्तावों का पालन ही नहीं किया और अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाया।
पांचवी गलती
नेहरू की पांचवी गलती आर्टिकल 370 जो कि पहले आर्टिकल 306A था और बाद में 370 बन गया। अनुच्छेद 306A (अनुच्छेद 370) के अलग-अलग प्रारूप एन गोपालस्वामी अय्यंगर और शेख अब्दुल्ला के बीच कई दौर की बातचीत के बाद तैयार किए गए थे। इस आर्टिकल के अंतिम मसौदे में शेख अब्दुल्ला की विभिन्न मांगों और छूट का जिक्र था। आर्टिकल 370 पर एक चर्चा में संयुक्त प्रांत के एक मुस्लिम प्रतिनिधि मौलाना हसरत मोहानी ने जम्मू-कश्मीर को विशेष रियायतों के विस्तार पर सवाल उठाते हुए इसे भेदभावपूर्ण भी बताया था।