आज का हमारा सवाल सीधा सा है कि सिख धर्म में कितनी जातियां होती है। जातियां तो अनेक है लेकिन आज हम आपको उन चुनिंदा जातियों के बारे में बताएंगे जिनको सिख धर्म में ज्यादा तवज्जों दी जाती है।
जाति प्रथा को मानना और इसे महत्व देना सिखों के उसूलों के खिलाफ है। लेकिन भारत में जाति प्रथा का होना आम बात है। जाति व्यवस्था सिर्फ समाज से ताल्लुक रखती है और इसका धार्मिकता या ईश्वर से कोई लेना देना नहीं है। सिख धर्म में जाति प्रथा को शुरू से ही myth माना जाता है। क्योंकि सिख धर्म किसी भी प्रकार के सामाजिक स्तरीकरण को मान्यता नहीं देता।
दलित सिख पहले हिंदू थे
आपको एक बात जानकर बहुत हैरानी होगी कि बहुत से लोगों ने धर्म परिवर्तन कर सिख धर्म को अपनाया। हिंदू दलित जातियों ने सिख को अपनाया था। ताकि गरिमा और सामाजिक समानता हासिल कर सके। लेकिन जातिवाद का अभिशाप इतनी आसानी से नहीं छूटा और इसे अब तक दलित सिख झेल भी रहे है।
रिसर्च बताती है कि पंजाब में मजहबी सिखों जो कि वाल्मिकी जाति का एक समूह है जिसने हिंदू धर्म छोड़कर सिख धर्म अपना लिया था का आंकड़ा 26.33 प्रतिशत है। वहीं रामदासिया समाज की आबादी 20.73 प्रतिशत है। हालांकि ऐसा माना जाता है कि जट्ट सिखों के मुकाबले मजहबी, रामदासिया और रंगरेता सिखों को नीचा समझा जाता हैं। ऐसे में जाट सिख और दलित सिखों के बीच का टकराव अक्सर सामने आता रहा है।
सिखों में जातिवाद के लिए कोई जगह नहीं
लेकिन अगर हम जातिवाद की बात करें तो समाज में हिंदू जाति व्यवस्था को spirituality से जोड़ा जाता है। जबकि सिखों में कास्ट सिस्टम का spirituality या आध्यात्मिकता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। सिख ये नही सोचते है कि हम ऊंची कास्ट से है तो हमें मुक्ति मिलेगी या ईश्वर से मिलना होगा और कोई नीची कास्ट से है तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी।
माना जाता है कि सिखों में कास्ट सिस्टम को मान्यता नहीं दी जाती है लेकिन इसके बावजूद ये culturally मौजूद होता है। सिखों में जाति का इस्तेमाल एक समय पर गर्वित महसूस करने के लिए किया जाता था। हालांकि आज के वक्त में कास्ट सिस्टम खत्म होता नजर आ रहा है।
गुरु गोविंद सिंह जी ने जाति-प्रथा को खत्म करने का काम किया
गुरु गोविंद सिंह जी ने खुद ही कहा है कि chaar varan ik varan karaaon, tabei Gobind Singh naam kahaaun जिसका अर्थ है कि जब मैं चारों जातियों को एक कर दूं, तभी मैं गोविंद सिंह कहलाया जाऊं। ये तो जगजाहिर है कि जातिवाद, भेदभाव, छूआछूत को खत्म करने और बराबरी का दर्जा देने में सिखों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वो सिख ही थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता का जमकर विरोध किया। जाहिर है कि पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां जातिवाद प्रथा दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के मुकाबले बेहद कम है। इसके अलावा सिखों के गुरु ने समाज सुधार में बड़ा योगदान दिया है।
जातिवाद और छूआछूत को कम करने के लिए सिखों के गुरुओं ने संगत की शुरुआत की, लंगर की शुरुआत की। जहां सभी एक साथ जमीन पर बैठकर साथ आए। इसका सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि सभी लोग… चाहे वो उंच जाति के हो या नीच जाति के। चाहे वो अमीर हो या गरीब। सभी को साथ में लाने का काम किया। इस पहल को एक नए सुधार आंदोलन के तौर पर भी देखा गया। सिखों की इस पहल ने कास्ट सिस्टम को कम करने और काफी हद तक खत्म करने का काम भी किया। सिखों के कारण ही कास्ट सिस्टम को कम करने का मौका मिला। उनके लंगर और संगत की पहल ने लोगों में एकता और बराबरी का संदेश दिया।
मानवता को सबसे पहले Priority दी जाए
आज की तारीख में समाज में बदलाव आ चुका है। जहां जाति की कोई जगह नहीं बची है। आज हम इन सबसे ऊपर उठकर इंसानियत और मानवता को priority दे रहे है। और गुरू गोबिंद सिंह जी ने भी हमें यही पाठ पढ़ाया और सिखाया है। जिसका हमें पालन करना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को भी यही सिखाना चाहिए।