‘न्याय में देरी होना न्याय से वंचित होने के समान है’, ये प्रचलित कथन शायद हर किसी ने सुना होगा. निर्भया केस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां उनके परिवारवालों को करीब 7 साल बाद न्याय मिल सका. लेकिन सन 1992 यानि 90 के दशक में अजमेर की सोफिया गर्ल्स स्कूल की लगभग 250 से ज्यादा हिंदू लड़कियों से हुआ रेप केस देश के इतिहास में एक गहरे काले धब्बे के समान है. जिसके जिद्दी दागों को लाख धुलने की कोशिशें कर ली जायें लेकिन इस वक़्त के साथ अब वो अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं. करीब 28 साल पहले हुई इस घिनौनी वारदात का सच आज कोर्ट ने सुनाया है. इसका खुलासा एक संतोष गुप्ता नामक पत्रकार ने किया था. जिसके बाद उस दौरान इंटरनेट न होने के बावजूद ये खबर आग की तरह तेजी से फैली थी. आइये जानें ये पूरा मामला जिसने देश दुनिया को हिला कर रख डाला था.
फ़ार्म हाउस में की ये शर्मनाक हरकत
ये कहानी शुरू होती है यूथ कांग्रेस के लीडर फारूक चिश्तीनाम नाम के व्यक्ति से जो अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम (केयरटेकर) का रिश्तेदार और वंशज भी था. उसने सबसे पहले सोफिया गर्ल्स स्कूल की एक लड़की को फंसाया और लड़की की धोखे से बलात्कार कर अश्लील फोटो खींच ली. इन फोटो के जरिये वो लड़की को ब्लेकमेल करने लगा और उसकी सहेलियों को भी फ़ार्म हाउस पर लाने को कहा. जिसके बाद उन सहेलियों के साथ भी यही शर्मनाक कृत्य हुआ. धीरे धीरे ये घटना एक चेन में बदल गई जिसका शिकार करीब 250 लड़कियों को बनाया गया. बताया जाता है कि इन लड़कियों को गाड़ी लेने आया करती थी और कुछ देर बाद घरों पर छोड़ कर भी जाती थी. कहा जाता है कि इस कांड के पीछे राजनीति के कई नामी हस्ती भी शामिल थे. जो धीरे धीरे ब्लैकमेलिंग चेन से जुड़ते गए और आखिरी में कुल 18 लोग इसमें शामिल हो गए.
बयान देने को नहीं थी राजी
इस बलात्कार के मुख्य आरोपियों में फारूक के अलावा दो यूथ कांग्रेस लीडर फारूक चिस्ती, नफीस चिस्ती और अनवर चिस्ती का नाम भी सामने आया था. एक अधिकारी के मुताबिक पॉवर होने के चलते पीड़ितों को बयान देने के लिए प्रेरित करना उस दौरान काफी बड़ी चुनौती बन गया था. कोई भी लड़की बयान देने को राजी ही नहीं थी. केस लड़ने, आरोपितों के ख़िलाफ़ बयान देने और पुलिस-कचहरी के लफड़ों में पड़ने से अच्छा उन्होंने यही समझा कि चुप रहा जाए. इसी कड़ी में समाज में शर्मसार होने के डर से कई पीड़ित लड़कियों ने आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया था. एक समय अंतराल में करीब 6-7 लड़कियां ने आत्महत्या की. इस केस के सामने आने के बाद कई दिनों तक अजमेर बंद रखा गया था. सड़क पर प्रदर्शन चालू हो गए थे. अधिकारियों को डर था कि कहीं ये केस सामने आने के बाद एक हिंदू मुस्लिम दंगे में न तब्दील हो जाए.
मुंह खोलने वाले को मिली धमकियां
इन 28 सालों में केस में क्या कुछ नहीं बदला. जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद कुछ पीड़िताएं अपने बयान से मुकर गयीं. इसके अलावा एक रिपोर्ट के अनुसार ये भी कहा गया कि इस केस में सिर्फ उन्हीं लोगों को पकड़ा गया जिनका BJP से कोई कनेक्शन नहीं था. बाद में एक NGO ने इस केस की रहस्यमयी परतों को खोलने का जिम्मा उठाया और फोटोज और वीडियोज के जरिये 30 लड़कियों को पहचाना गया. उन सभी से जाकर बात की गई लेकिन बदनामी के डर से सिर्फ 12 ही लड़कियां सामने आने को तैयार हुई. बाद में इनमें से सभी को धमकियां मिलने के चलते 10 लड़कियां और केस से पीछे हट गई. बाद में बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया. इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना. जिसमें से ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया.
अब तक केस में क्या हुआ ?
केस खुलने के बाद 18 पहचाने गए आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम नाम के आरोपी ने आत्महत्या कर ली. यूथ कांग्रेस नेता फारूक चिश्ती को मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया गया. 1998 में सेशन कोर्ट ने 8 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया. लेकिन इनमें से 4 को राजस्थान हाई कोर्ट ने बरी कर दिया. इसके बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मोइजुल्लाह उर्फ पट्टन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमशुद्दीन उर्फ मैराडोना की सजा कम करते हुए मात्र 10 सालों के कारावास की सजा सुना दी. 2007 में मानसिक विक्षिप्त घोषित आरोपित फारूक चिश्ती को अजमेर की एक फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने दोषी मान कर सज़ा सुनाई और राजस्थान हाईकोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार भी रखा. इसके बाद 2018 में सुहैल चिश्ती शिकंजे में आया. इस मामले का एक आरोपी अलमास महाराज अभी भी फरार है जिसके खिलाफ CBI ने रेड कार्नर नोटिस जारी कर रखा है. कुछ लोगों का कहना है कि वो अमेरिका में रह रहा है. चिश्तियों में अभी सिर्फ़ सलीम और सुहैल ही जेल में है. बताया जाता है कि इस केस का सबसे बुरा असर लड़कियों की शादी पर पड़ा था. लोग पूरे शहर की लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठाने लगे थे.
पीड़ित लड़कियों और उनके परिवारों से सबने रकम ऐंठे. ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे? इस घूसखोरी सिस्टम और पॉवर ने हर तरीके से सिस्टम को बर्बाद कर दिया जिसके चलते इस फैसले को आने में करीब 28 सालों का वक्त लग गया.