आज हम आपको वो किस्सा बताने जा रहे है, जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने कबूतरों को जिंदा किया था। एक बार की बात है सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी अपने शिष्यों के साथ राजस्थान के एक गांव पहुंचे। उस दौरान गांव में जैन धर्म के लोग रहा करते थे जो अहिंसा में अटूट विश्वास रखते थे। वो लोग कबूतर पालते थे और उनका पालन पोषण करते थे। ऐेसे में उन्हें कबूतरों से खूब लगाव था। वहां के लोग कबूतरों को चाना चुगाते उन्हें उड़ते देखकर खुश होते थे।
एक बार उसी जगह गुरु गोबिंद सिंह जी पहुंचे। वहां से गुजरते वक्त एक कबूतर की मौत गुरुजी के घोड़े के नीचे आकर हो गई। ये देखकर गांव वाले गुस्से से लाल हो गए। जिसके बाद कबूतर की मौत का कारण उन्होंने गुरु जी को ठहराना शुरु कर दिया। वे सभी गुरु जी को बुरा-भला कहने लगे। ये देखकर गुरु जी बोले कि जिस कबूतर के लिए आप इतने दुखी हो रहे है, उसका आखिरी पल आ चुका था और इसलिए वो मर गया। हालांकि लोगों ने गुरु जी की बात नहीं मानी और कबूतर के मौत का जिम्मेदा गुरुजी को बताया।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गांव वालो को बताया
गुरु जी बड़े ही सरलता से बोले की जिसकी मौत पहले से ही तय हो, उसकी मृत्यु होना लाजमी है, उसे कोई रोक नहीं सकता। गांव वालो को इतना सब बताने के बावजूद जब वे नहीं माने तो गुरु जी उन्हें एक सबक सिखाने के तौर पर कुछ ऐसा किया। गुरु गोबिंद सिंह जी बोले, तुम सिर्फ एक कबूतर के लिए रो रहे हो, अगर यह सारे ही कबूतर मर जाए तो? इतना कहते ही सारे कबूतर जो भी जैसे था, जहां था सभी मर गए।
गांव वालों ने गुरु जी को ऐसे पहचाना
ये सब देखकर गांव वालों को यकीन हुआ कि जो शख्स ये है वो कोई आम व्यक्ति नहीं है। ऐसे में लोगों ने गुरुजी से हाथ जोड़कर विनती की कि वे उन्हें माफ कर दे कि सभी लोग गुरु जी को पहचान नहीं पाए। गांव वालों ने गुरु जी से हाथ जोड़कर नम्रता पूर्वक निवेदन करते हुए निर्दोष कबूतरों को जिंदा करने की मांग की। उनकी फरियाद सुन कर गुरुजी ने कबूतरों को दाना डालने को कहा। दाना डालते ही गुरु जी ने कबूतरों से दाना चुगने को कहा। गुरुजी की बात सुनकर वो सभी कबूतर उठकर तुरंत जिंदा हो गए और दाना चुगने लगे। फिर गांव वालो ने उस कबूतर को भी जिंदा करने की मांग की जो गुरु जी के घोड़े के नीचे आकर मरा था।
कबूतर को यूं मिली मुक्ति
गुरुजी बोले वह कबूतर अब जिंदा नहीं हो सकता। क्योंकि ये कबूतर पिछले जन्म में हमारा एक सिख था, और इस जन्म में इसकी मुक्ति हमारे ही हाथों होनी थी। हमारे घोड़े के नीचे आकर उसको मुक्ति मिल गई इसलिए अब वह जिंदा नहीं हो सकता। हम इसे मुक्ति देने के लिए ही यहां आए थे। और इस रीति से गुरुजी ने अपने शिष्य को मुक्ति दिलाई। ऐसे में जिस जगह उस कबूतर को मुक्ति मिली थी वहां आज गुरुद्वारा श्री कबूतर साहिब है। ये गुरुद्वारा राजस्थान के तहसील नोहर हनुमानगढ़ में स्थित है।