Guru Gobind Singh help Bahadur Shah: भारत का इतिहास साहस, संघर्ष और बलिदान से भरा पड़ा है। दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, उनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह था जब औरंगजेब ने अपने साहिबजादों को दीवार में चुनवा दिया था। हालांकि, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने संघर्षों में दया और क्षमा का एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी पेश किया, खासकर जब औरंगजेब के बेटे बहादुर शाह ने उनसे मदद मांगी। यह घटना उनके जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती है जो लोगों को आश्चर्यचकित कर सकते हैं।
गुरु गोविंद सिंह का संघर्ष और साहस- Guru Gobind Singh help Bahadur Shah
गुरु गोविंद सिंह का जीवन किसी भी सामान्य व्यक्ति से बहुत अलग था। जब वे केवल 9 साल के थे, तो उनके पिता गुरु तेग बहादुर को शहीद कर दिया गया। इस घटना ने गुरु गोविंद सिंह के जीवन को एक नया मोड़ दिया। खुशवंत सिंह अपनी किताब ‘A History of the Sikhs’ में लिखते हैं कि गुरु गोविंद सिंह ने अपनी शहीदी के बाद अपने जीवन को एक नई दिशा दी। उन्होंने अपनी शिक्षा में संस्कृत और फारसी को शामिल किया और पंजाबी, हिंदी में भी कविता की। गुरु ने अपने समय के सभी धर्मों के शास्त्रों का गहन अध्ययन किया और अपनी भाषा में उन्हें लिखा, ताकि वह अपने संदेश को सही ढंग से व्यक्त कर सकें।
पहाड़ी राजाओं के साथ संघर्ष
गुरु गोविंद सिंह के खिलाफ पहाड़ी राजाओं का संघर्ष लगातार जारी रहा। बिलासपुर के राजा भीम चंद ने उनकी बढ़ती लोकप्रियता से नफरत करते हुए गुरु गोविंद सिंह के खिलाफ साजिशें रचीं। राजा ने औरंगज़ेब से मदद की गुहार लगाई, और इसने एक बड़े युद्ध का रूप लिया। गुरु गोविंद सिंह ने अपनी सेना को छह हिस्सों में बांट दिया और किलों से लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया। मुगलों के पास बहुत अधिक सैनिक होने के बावजूद, गुरु की सेना ने उन्हें हराया और अपनी लड़ाई को जारी रखा।
गुरु गोविंद सिंह और औरंगज़ेब के बेटे बहादुर शाह
औरंगज़ेब की मौत के बाद, उसके बेटों में सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। बहादुर शाह, जो औरंगज़ेब का बड़ा बेटा था, अपनी सत्ता को सुरक्षित करने के लिए गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगने आया। गुरु ने बहादुर शाह की मदद करने का निर्णय लिया, क्योंकि उसने अपने भाई आजम के खिलाफ युद्ध में गुरु गोविंद सिंह से समर्थन मांगा था। गुरु ने बहादुर शाह के पक्ष में सिखों की एक जत्था भेजा, जिसने आजम को मारकर बहादुर शाह को सत्ता दिलाई। इसके बाद, बहादुर शाह ने अपना नाम बदलकर बादशाह बहादुर शाह रखा।
गुरु गोविंद सिंह का बलिदान
गुरु गोविंद सिंह का जीवन बलिदान और संघर्ष से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी शहादत के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिनमें से एक था जब उन्होंने अपने छोटे बेटों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को शहीद होने दिया। ये दोनों मासूम बच्चे इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिए थे, जिसके कारण उन्हें जिंदा दीवार में चुनवाने का आदेश दिया गया। गुरु गोविंद सिंह ने अपने बेटों की शहादत के बाद भी अपने धर्म के लिए संघर्ष जारी रखा।
आखिरी समय और गुरु की शहादत
गुरु गोविंद सिंह के जीवन के अंतिम समय में, 42 वर्ष की उम्र में, उन्हें एक हत्यारे द्वारा खंजर से हमला किया गया। हालांकि, गुरु ने उस हत्यारे को मारकर खुद को बचाया, लेकिन उनकी स्थिति नाजुक हो गई। बहादुर शाह ने अपने चिकित्सक को गुरु गोविंद सिंह का इलाज करने भेजा, लेकिन तब तक गुरु का अंत आ चुका था। 7 अक्टूबर 1708 को गुरु ने अपनी अंतिम सांस ली, और उन्होंने सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु मानने का आदेश दिया।
गुरु गोविंद सिंह का जीवन संघर्ष, बलिदान और दया का प्रतीक था। उन्होंने न केवल सिख धर्म को मजबूती से खड़ा किया, बल्कि अपनी शहादत और साहस से पूरे भारत को प्रेरित किया। उनके योगदान को न केवल सिख समुदाय ने, बल्कि सम्पूर्ण भारत ने सम्मानित किया। उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उनके जीवन के आदर्श आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।