Ambedkar vs Savarkar Full Details in Hindi – एक ओर मनुवादी सावरकर को वीर का तमगा देते हैं. यह बताने का प्रयास करते हैं कि हिंदुओं के लिए जो किया सावरकर ने किया लेकिन जेल से बाहर निकलने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में सावरकर की वीरता के कोई सबूत नहीं हैं. दूसरी ओर बाबा साहेब और सावरकर के बीच मतभेदों की कई कहानियां हैं. दोनों की विचारधारा अलग थी, सोच अलग थी, लड़ाई अलग थी. दोनों के बीच में दूरियां इतनी अधिक थी कि वह एकदूसरे पर कटाक्ष करने से भी बाज नहीं आते थे. एक बार तो बाबा साहेब (Ambedkar vs Savarkar details in Hindi) ने ये तक कह दिया था कि सावरकर के अंदर नफरत बजबजा रही है लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों कहा था आइए जानते हैं.
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मनु स्मृति पर दोनों की राय
हिंदू धर्म में छुआछूत और भेदभाव के कारण बाबा साहेब का मन हमेशा खिन्न रहता. बहुजनों को खाना-पानी के लिए भी तरसना पड़ता, जिसे देखकर बाबा साहेब सिहर उठते थे. हिंदू धर्म में कुप्रथाएं गले तक भरी हुई थी. इसी से आहत होकर उन्होंने हिंदू धर्म का त्याग भी कर दिया था. बहुजनों के लिए आवाज उठाने के क्रम में उन्होंने 1927 में महाड़ में मनु स्मृति का दहन किया था. बाबा साहेब का कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है, वह मनुस्मृति के आधार पर है. यह एक ब्राह्मण, पुरुष सत्तात्मक, भेदभाव वाला कानून है. इसे खत्म किया जाना चाहिए और इसीलिए उन्होंने मनुस्मृति का दहन किया था.
वहीं, दूसरी ओर सावरकर ने मनुस्मृति को लेकर कहा था कि मनुस्मृति एक ऐसा ग्रंथ है जो वेदों के बाद हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए सर्वाधिक पूजनीय है. यह ग्रंथ प्राचीनकाल से ही हमारी संस्कृति और परंपरा तथा आचार-व्यवहार का आधार रहा है. यह पुस्तक सदियों से हमारे देश के आध्यात्मिक जीवन की नियंता रही है. आज भी करोड़ों हिन्दुओं द्वारा अपने जीवन और व्यवहार में जिन नियमों का पालन किया जाता है, वे मनुस्मृति पर ही आधारित हैं. आज भी मनुस्मृति हिन्दू विधि है. यह बुनियादी बात है.
हिंदू कोड बिल पर सावरकर का विरोध
यही नहीं, मंदिरों में अछूतों के प्रवेश पर सावरकर ने 1939 में कहा था कि हम पुराने मंदिरों में अछूतों इत्यादि को आवश्यक रूप से प्रवेश की इजाजत देने से संबंधित किसी कानून का न तो प्रस्ताव करेंगे और ना ही उसका समर्थन करेंगे. अछूतों को वर्तमान परंपरा के अनुरूप उस सीमा तक ही प्रवेश की इजाजत दी जा सकती है,जिस सीमा तक गैर-हिन्दू प्रवेश कर सकते हैं.
वहीं, बाबा साहेब ने जब संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया था, तब सावरकर ने इसका भी विरोध किया था. इस बिल को सावरकर द्वारा कमजोर किए जाने से बाबा साहेब को गहरी चोट पहुंची थी. यहां तक कि कांग्रेस के कुछ लोग भी इसके खिलाफ थे. वहीं, आरएसएस ने भी हिंदू कोड बिल के प्रावधानों को कमजोर और हल्का किया था. बाबा साहेब को इन लोगों के रवैये से काफी दुख हुआ था, जिसके बाद उन्होंने मंत्रिपरिषद से अपना इस्तीफा दे दिया था.
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सावरकर पर बाबा साहेब की टिप्पणी
आपको बता दें कि जब देश (Ambedkar vs Savarkar details in Hindi) में विभाजन की बात चल रही थी तो सावरकर और जिन्ना भी दो ध्रुव में थे….उन्हें लेकर बाबा साहेब ने कहा था कि यह अजीब लग सकता है परंतु सच यही है कि एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के मुद्दें पर एक-दूसरे के विरोधी होते हुए भी मिस्टर सावरकर और मिस्टर जिन्ना इस मुद्दे पर पूर्णतः एकमत हैं. वे न केवल एकमत हैं वरन् जोर देकर कहते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैं – हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र.
वहीं, एक बार सावरकर ने केसरी अखबार में एक लेख लिखा, जिसके जवाब में बाबा साहेब ने कहा था कि ऐसे लापरवाह लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. कुछ लोग कहते हैं कि सावरकर जहर उगलते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि वो उस घृणा का फैलाते हैं जो उनके अंदर बजबजा रही हैं.