बाबा साहेब को भारतीय इतिहास में बहुत ही सख्त प्रवृति का इंसान बताया गया है लेकिन अगर उनके जीवन को ध्यान से देखा जाए तो उनके जैसा नरम दिल इंसान कभी हुआ ही नहीं और न ही कभी होगा..बहुजनों के साथ हो रहे भेदभाव, उनके दिल को छलनी करते थे. बचपन से ही संघर्ष की भट्टी से तपकर निकले बाबा साहेब का युवा अवस्था भी संघर्षों से ही भरा रहा. उनके भीतर इतनी करुणा थी कि उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. बाबा साहेब की यही करुणा सविता अंबेडकर को लिखे एक पत्र में दिखती है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि मैं कमजोर नहीं हूं. आज के लेख में हम आपको बाबा साहेब का सविता अंबेडकर को लिखे उस पत्र के बारे में बताऊंगा, जो उन्हें एक नरम दिल इंसान बताती है.
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बाबा साहेब का पत्र
दरअसल, यह कहानी है बाबा साहेब और शारदा कबीर की शादी के चंद महीने पहले की. शादी की डेट निकल चुकी है..दोनों पक्ष तैयारियों में जुटा हुआ है. बाबा साहेब और शारदा कबीर की मुलाकातें होने लगी हैं. इसी बीच बाबा साहेब ने अपने मंगेतर शारदा कबीर को एक पत्र लिखा, जिसमें उनकी भावुकता झलकती है.
बाबा साहेब लिखते हैं, “अच्छा हुआ आप स्टेशन नहीं आईं, मैं आपने आप को रोक नहीं पाता. मुझे ताजुब्ब है कि आप अपने आप को संभाल कैसे पाई? मैं तो बहुत कमजोर, बेहद नाजुक और भावुकता से भरा व्यक्ति हूं. लोगों को मेरे बारे में बहुत गलत धारणा है. वे समझते है कि मैं एक कठोर, क्रूर, खरी कहने वाला , ठंडा और तार्किक आदमी हूं. जिसके पास सिर्फ़ दिमाग है और जैसे दिल है ही नहीं. पर मेरे भीतर भी एक कोमलता है…एक नजाकत है जो मुझे कमजोर बनाती है. मुझे उम्मीद है कि आप मेरे आंसू बहाने पर मुझे एक कमजोर दिल का आदमी नहीं मानेंगी.”
उन्होंने 12 मार्च 1948 को यह पत्र लिखा था. बाबा साहेब ने अपने पत्र में लिखा था कि वह उन्हें भावुक होने पर कमजोर न समझें. हालांकि, 15 अप्रैल 1948 को दोनों की शादी हो गई. शारदा कबीर अब सविता अंबेडकर हो गई थीं. शादी के बाद पेशे से डॉक्टर सविता अंबेडकर का पूरा ध्यान बाबा साहेब के स्वास्थ्य पर हो गया था. इसके अलावा वह उनकी पसंद, नापसंद सबका ध्यान रखने लगी थीं. वह बाबा साहेब के राजनीतिक जीवन को भी काफी बेहतर समझती थीं. बाबा साहेब के साथ उनका आत्मीय मिलन ही था, जो उन्होंने अपने जीवन के इस हिस्से को सविता के सामने रखा था.
सविता अंबेडकर ने अपनी किताब में किया है जिक्र
ध्यान देने वाली बात है कि बाबा साहेब और सविता की पहली मुलाकात 1947 में हुई थी. 1948 में दोनों ने शादी कर ली. अपनी किताब माय लाइफ विथ डॉ अंबेडकर में सविता अंबेडकर ने बाबा साहेब से जुड़ी हर एक बात का जिक्र किया है. इसमें उन्होंने बताया है कि जब बाबा साहेब से उनकी पहली बार मुलाकात हुई थी तो वह बहुत सारी बीमारियों से जूझ रहे थे.
वह लिखती हैं कि बाबा साहेब ने उन्हें डॉक्टर बनने पर बधाई भी दी थी क्योंकि उस समय किसी महिला का डॉक्टर बनना साधारण बात नहीं थी. बाबा साहेब का जब इलाज चल रहा था तो सविता ही उनकी देखभाल कर रही थीं. वह अपने किताब में बाबा साहेब द्वारा दिए गए शादी के प्रोपोजल के बारे में बताती हैं.
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