अंग्रेजों की गुलामी से देश को स्वतंत्र करने में दलितों और आदिवासियों ने भी अपनी जान की कुर्बानी दे दी। लेकिन हिस्ट्री में दलित समाज की भूमिका को साजिश रचकर लिपिबद्ध ही नहीं किया गया। दलित चिंतकों इसके अलावा क्रांतिकारियों को हिस्ट्री में किनारा कर दिया गया। ऐसे में आजादी के आंदोलन में क्या भूमिका दलित समाज की रही इससे देश के आम लोग आज भी अनजान है। आज हम जानेंगे एक सत्याग्रह के बारे में जिसे शुरू तो किया था गांधी जी ने, लेकिन उसमें दलितों की भी अहम भूमिका थी जिसके बारे में कभी बात ही नहीं की जाती…
स्वतंत्रता संग्राम के नमक सत्याग्रह में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था दलित वर्ग के लोगों ने। गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को ये आंदोलन साबरमती आश्रम से शुरू किया जिसमें दलित वर्ग से भी कई लोग जुड़े थे जिसमें एक बलदेव प्रसाद कुरील थे जो कि मुख्य तौर पर जुड़े थे। इन्होंने 1932 में कोतवाली में धरना दिया और ऐसा करने पर पुलिस ने उनको गोली मारी और वो शहीद हो गए।
सुचित राम जो कि लाल कुआं लखनऊ के रहने वाले उनको भी धरना देने के कारण पुलिस की गोली खानी पड़ी थी और वो भी शहीद हो गए। नमक आंदोलन में ही 103 दलितों पर सजा और तो और आर्थिक दंड लगा। 8 अगस्त 1942 आया तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया अंग्रेजों भारत छोड़ों का और 9 अगस्त 1942 की सुबह सुबह गांधी जी के साथ ही जवाहर लाल नेहरू, बाबू जगजीवन राम, जय प्रकाश नारायण को अरेस्ट कर लिया गया। अंग्रेजों की ऐसी दमनकारी नीति से जनता गुस्से से भर गई।
आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया और अंग्रेजों ने भी जगह जगह गोलियां और लाठियां बरसाई। वैसे तो इस आंदोलन में कई लोग अमर शहीद हुए, लेकिन इनमें दलित समाज के कई कई लोग शामिल थे बल्कि जान गवांने वालों और आंदोलन में शामिल होने वाले सबसे ज्यादा दलित ही थे। यूपी के कई जिलों से 93 दलित शहीद हुए थे। जिनका नाम सरकारी अभिलेखों में आज भी दर्ज किया गया है।