क्या आप जानते कि दलित महिलाओं ने बीते वक्त में अपने शौर्य का किस कदर प्रदर्शन किया है। स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर देश के लिए कोई और करनामा करना हो दलित महिलाएं किसी से भी कम नहीं हैं। आज हम बात उन्हीं विरांगनाओं के बारे में करेंगे और दलित महिलाओं के इतिहास के बारे में जानेंगे।
उत्तर प्रदेश की सीएम रह चुकी मायावती जैसी महिलाएं आज भी दलित समाज की महिलाओं को इंस्पायर करती हैं लेकिन हैरानी ये जानकर होगी कि देश की आजादी के वक्त भी दलित महिलाओं ने बिना डरे अंग्रेजों से दो दो हाथ किए थे।
ऐसी ही एक वीरांगना हुई झलकारी बाई जो कि बेहद हिम्मत वाली महिला थी और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी थीं। वो चमार जाति में आने वाली उपजाति कोरी से नाता रखती थी और युद्ध कौशल में उन्हें पारांगत थीं। वो लक्ष्मी बाई की तरह दिखती। वो इस कदर लक्ष्मी बाई की तरह लगती थीं कि अंग्रेज़ भी धोखा खा जाते थे। झलकारी बाई रानी की सेना में भी थी। झलकारी बाई की हेल्प से ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई प्रतापगढ़ हो या फिर नेपाल वहां तक जा पाने में कामयाब हो पायी थीं।
अगला नाम आता है उदा देवी का। कहते हैं कि बेगम हजरत महल का पलटन था जिसका नाम था पासी पलटन जिसकी एक कमांडर उदा देवी भी थी। दरअसल, हुआ ये कि लखनऊ के उजेरियन गांव की वीरांगना उदा देवी के पति मक्का पासी अग्रेज़ों के हाथों चिनहट बाराबंकी में मारे गए और पति के शव पर रोते हुए उदा देवी ने बदला लेने की कसम खाई और फिर बेगम हजरत महल की आर्मी को ज्वॉइन कर लिया। 35 अंग्रेजों को मार गिराया था उदा ने पर फिर वो भी मारी गयी। हुआ ये कि जब अंग्रेज गर्मी में पीपल के पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे तब कई अंग्रेजों को उदा ने मार डाला और इस बाता अंदेशा जनरल डावसन को हुआ तो वो मुआयना करने लगा तो उसने जो देखा उसके बाद तो उसके होश उड़ गए। उसने देखा कि गोलियों से अंग्रेज सिपाहियों को भून दिया गया है। उसने मुआयने में पाया कि गोली ऊपर से मारी गयी है। अपने सहयोगी वैलेक को बुलाया और दोनों ने पेड़ पर किसी के होने का एहसास किया और गोली चला दी वहां कोई और नहीं वीरांगना ’उदा देवी’ थी जो गोली लगते ही नीचे आ गिरी। गोली लगने से उनकी निधन हो गया पर पहले ही उन्होंने कई अंग्रेजों को मार डाला।
अगला नाम महावीरी देवी का है जो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर की थीं जिन्होंने देश की आजादी के लिए खुद की जान की भी परवाह नहीं की। उनके हिम्मत को आज भी बखाना जाता है। उनके कारनामें यहां लोक गीतों में बार बार दोहराए जाते हैं।