Bhai Jaita Ji Story in Hindi – जिन्होंने गुरु तेगबहादुर जी के लिए अपने पिता का सर धड़ से अलग कर दिया…जिन्होंने औरंगजेब को चकमा देकर उसकी नाक के नीचे से गुरु तेगबहादुर जी का कटा हुआ सर आनंदपुर साहिब पहुंचाया…जिन्होने भंगानी की लड़ाई, नादौन की लड़ाई, चमकौर की लड़ाई समेत कई युद्धों में गुरु जी का साथ दिया….उस गुरुभक्त का नाम था भाई जैता जी. आज के लेख में हम आपको वीर योद्धा भाई जैता जी से जुड़ी हर एक बात विस्तार से बताएंगे.
मूलरुप से पटना के रहने और मेहतर जाति से संबंध रखने वाले भाई जैता जी के योगदान को सिख इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में उकेरा गया है. खुद गुरु तेगबहादुर जी ने इनका नाम जैता रखा था…ये एक निशानेबाज के रुप में प्रसिद्ध हुए और इन्हें गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों बड़े बेटों को युद्ध कला में प्रशिक्षित किया था. इनकी पिछली कई पीढ़ियां गुरुओं की सेवा में अपना जीवन अपर्ण कर चुकी थी.
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भाई जैता जी के बलिदान की कहानी
कहानी की शुरुआत होती है 1675 से. औरंगजेब की क्रूरता से पूरा भारत त्राहिमाम कर रहा था. जबरन धर्मांतरण, हिंदू लड़कियों से रेप और जबरन वसूली ने लोगों का जीना हराम कर दिया था. इसी बीच पंडित किरपा राम के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल गुरुजी से मिला. उनके ऊपर हो रही क्रूरता को सुनकर गुरु तेगबहादुर जी असमंजस में पड़ गए. बाद में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने खुद को शहीद करना उत्तम समझा.
20 जुलाई 1675 को गुरुजी ने अपने 5 प्रियजनों के साथ आनंदपुर साहिब छोड़ दिया. 15 सितंबर, 1675 ई. को गुरु जी और उनके पांच प्रियजनों को आगरा में गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली में कैद कर लिया गया. इन्हीं 5 प्रियजनों में से एक थे भाई जैता जी. दिल्ली में कैद के दौरान गुरुजी ने 57 छंद लिख डाले थे. भाई जैता जी कुछ लोगों की मदद से जेल से भाग निकले और गुरु पद के लिए अभिषेक सामग्री,नौवें गुरु के हुक्मनामे और जेल में गुरु जी द्वारा लिखे गए 57 छंदों के साथ आनंदपुर साहिब पहुंचे.
भाई जैता जी ने इन सामग्रियों को गुरु गोविंद सिंह जी को सौंप दी और दिल्ली की स्थिति से अवगत कराया. गोबिंद राय जी ने मण्डली के खुले सत्र में मांग की कि दिल्ली में उनकी शहादत के बाद उनके का सिर और धड़ वापस लाने की जिम्मेदारी लेने के लिए किसी वीर निडर व्यक्ति को आगे आना चाहिए. गोविंद सिंह जी के ऐलान के साथ ही पूरी सभा में सन्नाटा छा गया. फिर भाई जैता जी ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और वेश बदलकर दिल्ली के लिए निकल पड़े. वह पहले अपने पिता भाई सदानंद जी और चाचा, भाई आज्ञाराम जी के पास पहुंचे और वहीं पर पूरी प्लानिंग तैयार की गई.
अपने पिता का सिर धड़ से अलग कर दिया
11 नवंबर 1675 के सुबह सुबह गुरु तेगबहादुर जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे दी. उनके सिर और धड़ को ले जाने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए मौत की सजा की घोषणा की गई थी. लेकिन भाई जैता जी तो सिर में कफन बांधकर निकले थे. रात के पहले पहर के दौरान मूसलाधार बारिश शुरु हुई और भाई जैता जी अपने पिता और चाचा की मदद से गुरुजी के शव के पास पहुंचने में सफल हो गए. पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार, भाई जैता जी ने अपने पिता भाई सदानंद जी का सिर धड़ से अलग कर दिया ताकि उनका धड़ औऱ सिर गुरुजी से बदला जा सके.
उन्होंने (Bhai Jaita Ji Story in Hindi) अपने चाचा, भाई आज्ञाराम जी की मदद से जल्दी से गुरु जी का सिर और धड़ हटा दिया और भाई सदानंद जी का धड़ और सिर उस स्थान पर रख कर दबे पांव गायब हो गए. शाही सेना को धोखा देते हुए वह 15 नवंबर 1675 को कीरतपुर पहुंचे और वहां गुरुजी के सिर को पालकी में सजाया गया. पालकी भाई जैता सिंह के साथ आनंदपुर साहिब पहुंची. वहां गुरु प्रतिष्ठान की परंपरा के अनुसार सम्मानपूर्वक उसका अंतिम संस्कार किया गया.
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भाई जैता जी के जीवन की प्रमुख लड़ाईयां
गोविंद देव जी ने उन्हें अपने गले से लगाया और “रंगहरेते गुरु के बेटे” (गुरु का पुत्र) की उपाधि प्रदान की. उसके बाद वह गुरु गोविंद सिंह के साथ साये की भांति रहने लगे. उन्होंने अपने जीवनकाल में गुरु गोविंद सिंह के साथ कई युद्धों में हिस्सा लिया…जिनमें से ये प्रमुख हैं…
- भंगानी की लड़ाई
- नादौन की लड़ाई
- आनंदपुर साहिब की लड़ाई
- बजरूर की लड़ाई
- लड़ाई निर्मोहगढ़ की
- आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई
- आनंदपुर साहिब पर अचानक हमला
- आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई
- आनंदपुर साहिब की तीसरी लड़ाई
- आनंदपुर साहिब की चौथी लड़ाई
- बंसाली/कलमोट की लड़ाई
- अचानक हमला -चमकौर साहिब के निकट एक युद्ध
- बस्सी कलां में एक ब्राह्मण महिला को मुक्त कराना
- सिरसा का युद्ध
- चमकौर का युद्ध
चमकौर का युद्ध ही भाई जैता जी के जीवन का अंतिम युद्ध साबित हुआ…23 दिसंबर 1704 को वह शहादत को प्राप्त कर गए.