बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर समाज के हर तबके के लिए प्रेरणा है। वैसे तो अंबेडकर के विचारों, उनकी विचारधारा को आज भी लाखों युवा फॉलो करते हैं। लेकिन उनकी कुछ बातें ऐसी रही जिनका काफी विरोध भी हुआ। ऐसे ही थीं अंबेडकर की लिखी गई किताब, जिनके महज एक अंश को लेकर एक तबका इस कदर आगबबूला हो गया कि वो सड़कों पर उतर आया। किताब के उस अंश के विरोध में 25 हजार लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। वहीं इसके जवाब में बाबा साहेब को मानने वाले लोगों ने इससे भी बड़ा प्रदर्शन कर करारा जवाब दिया। सिर्फ इतना ही नहीं धमकी तो ये तक दे डाली कि अगर किताब का एक अंश क्या एक शब्द भी हटाया गया, तो 10 लाख लोग सड़कों पर आ जाएंगे।
बाबा साहेब की ये किताब थीं Riddles in Hinduism। अंबेडकर की ये किताब उनके जीवनकाल में पब्लिश नहीं हो पाई थीं। बाबा साहेब की मृत्यु के बाद उनकी अप्रकाशित रचानाओं को लेकर भी परिवार में कलह हुई। जिसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया और अंबेडकर की इस किताब को सीलबंद यानी तालाबंद कर दिया गया।
फिर आया साल 1987। जब अदालत की कैद से उनकी ये किताब आजाद हुई और महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा विभाग ने इस किताब को अंग्रेंजी भाषा में प्रकाशित कराया। इसके बाद शुरू हुआ अंबेडकर की इस किताब को लेकर असल वर्ग। महाराष्ट्र का एक वर्ग इस किताब की कुछ बातें पढ़कर एक वर्ग भड़क गया और खुलकर इसके विरोध में सामने आया। मांग उठी कि किताब से Riddles of Rama & Krishna वाले भाग को निकाल दिया जाए।
विरोध की शुरुआत एक कॉलम से हुई, जिसे माधव गडकरी ने लिखा । गडकरी ने कहा था कि इस किताब में एक अलग से जो अंश जोड़ा गया, वो प्रमाणित यानी Certified नहीं लगता। बाबा साहेब के हाथों से इतना गंदा लेखन किया ही नहीं जा सकता। गडकरी ने इस अंश को किताब से उस तरह हटाने की मांग की जैसे पेट में तेज दर्द होने पर Appendix का ऑपरेशन कराकर उसे निकाल दिया जाता है।
माधव गडकरी के इस लेख ने आग में घी डालने जैसा काम किया। इस पूरे मुद्दे को लेकर राजनीति भी शुरू हुई और शिवसेना इस विवाद में कूदी और उसकी तरफ से इसे बड़ा मुद्दा बना दिया गया। शिवसेना ने कहा कि वो अपने देवी-देवताओं का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगी। इसके बाद शिवसेना की अगुवाई में 25 हजार लोग सड़कों पर आए और महाराष्ट्र विधानसभा के सामने प्रदर्शन किया।
वहीं दूसरी ओर बाबा साहेब का समर्थन करने वाले लोगों ने इसे अंबेडकर के सम्मान से जोड़ दिया। अंबेडकर का समर्थन करने वाले 50 हजार से भी ज्यादा लोगों ने प्रदर्शन किया। दोनों ओर से प्रदर्शन बढ़ता चला गया और ये बढ़ते-बढ़ते 5 लाख की संख्या तक पहुंच गया।
किताब के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को जवाब देने के लिए अंबेडकर की रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया यानी RPI के सभी गुट एक हो गए और 5 लाख की बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया । एक किताब को लेकर हुआ ये काफी बड़ा प्रदर्शन था। इसके चलते मुंबई की रफ्तार पर ब्रेक लग गया । सड़कों पर हर ओर सिर्फ भीम सैनिक ही थे। सरकार को चेतावनी दी गई कि किताब पर बैन तो दूर की बात है, इससे एक कौमा तक हटाना मंजूर नहीं है। हमारी भावनाओं का सम्मान नहीं किया गया, तो हम 10 लाख की संख्या में प्रदर्शन करेंगे। भीम सैनिकों ने इसे जीने और मरने वाला आंदोलन बना दिया था। प्रदर्शन ने हिंसक रूप तक ले लिया। कई भीम सैनिक जख्मी हुए और एक की मौत तक हो गई।
इस प्रदर्शन ने अंबेडकर विरोधी ताकतों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। इतना बड़ा प्रदर्शन देखकर राजनीतिक पार्टियां ने मैदान छोड़ना शुरू कर दिया। आंदोलन को लेकर मध्यस्थता की बात कही जाने लगी। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने भी भीम सैनिकों की ताकत लोहा माना और अंत में ये तय किया गया कि किताब में एक फुट नोट लिखकर ये साफ किया गया कि इसमें लिखी सारी साम्रगी से सरकार सहमत नहीं है। इसके बाद आंदोलन वापस लिया गया। एक किताब को लेकर किया गया ये आंदोलन ऐतिहासिक साबित हुआ।