बचपन में आपने अकबर और बीरबल की कहानियां तो सुनी ही होंगी। हमारा बचपन इनकी ही कहानियों में गुजरता है, यहां तक कि शिक्षा देने के लिए अकबर-बीरबल की कहानी हमारे किताबों में भी पढ़ाई जाती है। कई जानकारों का ये भी कहना है कि अकबर-बीरबल एक काल्पनिक कैरेक्टर है। इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।
लेकिन जब अकबर के नौ रत्नों के बारे में पढ़ा जाता है, तब एक किरदार बीरबल का नाम भी सामने आता है। अकबर के एक और नवरत्न अबुल फजल की किताब अकबर नामा में अकबर की जिंदगी से जुड़े कई किस्से मिले है। इसमें बीरबल का भी जिक्र है, जो ये बताता है कि बीरबल कोई काल्पनिक किरदार नहीं है।
बल्कि असल में अकबर की जिंदगी में बीरबल का बहुत महत्व था, लेकिन अकबर की एक गलती के कारण बीरबर मौत के मुंह में चले गए। क्या थी वो गलती… जिसके बाद अकबर के पास सिवाए पछताने के कुछ नही बचा था।
बीरबल को नहीं थी युद्धकला की जानकारी
बीरबल का जन्म उत्तरप्रदेश के कालपी नामक की जगह पर साल 1528 में हुआ था। बीरबर का असली नाम महेश दास था। बीरबल की उपाधी उन्हें उनकी बहादुरी और चालाकी के कारण अकबर ने ही दी थी। अकबर बीरबर को केवल अपने दरबार का एक सेवक बना कर नहीं रखना चाहते थे, इसके लिए उन्हें अकबर ने पंजाब के कांगड़ा की गद्दी देने की बात की।
लेकिन राजा जय सिंह के समझौते के कारण कांगड़ा पर मुगल पूरी तरह से शासन नहीं कर पाए, इसीलिए अकबर ने कांगड़ा के पास ही बीरबल को एक सूबा दे दिया। साथ ही राज करने के लिए सैनिकों की टुकड़ी, और काफी सारे हीरे जवाहारत दे कर भेज दिया।
जिसके कारण ही बीरबर को उनके सहयोगी राजा बीरबल कहते थे। लेकिन बीरबल जहां अपनी चतुराई से बड़ी से बड़ी चाल समझ जाते थे, उन्हें युद्ध की कला की कोई खास जानकारी नहीं थी। लेकिन सम्राट अकबर की इसी भूल ने अकबर से उनका सबसे करीबी मित्र छीन लिया।
जानें पूरा मामला?
साल 1586 चल रहा था। अफगानिस्तान के कुछ इलाकों में भी तब मुगलो का शासन था। वहां बाजौर में अफगान के कुछ ताकतवर लोगों ने वहां जबरन लोगों को लूटना शुरू कर दिया था। अकबर के कानों में भी ये बात पड़ी, जिसके बाद अकबर ने अपने सिपहसलार जैन खान कोका को सेना के साथ भेजा था।
लेकिन वो अफगान की युसूफजई कबीले की सेना का सामना न कर सका और हारने लगा। हार करीब देखकर अकबर को चिट्ठी लिखी की कुछ और सैना की जरूरत है। सामने थे अबुल फैजल और बीरबल।
अबुल फैजल ने आगे बढ़कर कहा कि वो जाना चाहता है लेकिन अकबर ने बीरबल को 8 हजार सेना के साथ अफगानिस्तान भेज दिया। अकबर का ये फैसला, उसे ताउम्र कचोटता रहा….क्योंकि उसके बाद वो हुआ। जिसकी उम्मीद अकबर ने कभी नहीं की थी।
पत्थर से दबकर मर गए बीरबल
अकबर की बात मान कर बीरबल 8 हजार मुगल सेना के साथ अफगान की तरफ कूच कर गया था। बीरबल ने जैन खान कोका का पूरा साथ दिया और अफगानी सेना के आगे मुगल भारी पड़ने लगे। लेकिन अकबर ने बीरबल के जाते ही हकीम अबुल फतह को भी बीरबर के पीछे सेना लेकर भेज दिया।
हैरानी की बात ये थी कि जैन खान कोका, बीरबल और हकीम अबुल फतह बीच आपसी मतभेद रहा करता था, जो कि इस जंग में भी नजर आया। अफगानी सेना ऊपर पहाड़ो पर थी और पहाड़ चढ़ने में काफी पारंगत थी। लेकिन मुगल सेना को पहाड़ों पर चढ़ने में काफी समस्या हो रही थी। किसी तरह से दोनों सेनाओं के बीच जंग जारी थी लेकिन रात के अंधेरे में बीरबल युद्ध की रणनीति बनाई।
बीरबल की नीतियों से हकीम अबुल फतह और जैन खान कोका सहमत नही हुए और वहीं से तीनों के रास्ते अलग हो गए। बीरबल ने बलंदरी घाटी में जहां पड़ाव डाला था, वहां अफगानी सेना घात लगाए बैठे थे।
और अंधेरे में मौका देख कर अफगानों ने पत्थरों और तीरों से हमला कर दिया। वहां अफरा तफरी मच गई। इस हमले में बीरबल भी पत्थरो की नीचे दबकर मर गए।
नहीं मिली बीरबल की लाश
अकबर को बीरबल की मौत का काफी सदमा लगा था। अकबर खुद अफगानिस्तान जाकर बीरबर की लाश को ढूंढना चाहता था लेकिन ये कभी हो न सका। किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि जिसकी चालाकी के आगे आगे सभी नतमस्तक थे, उसे ऐसी गुमनामी की मौत मिलेगी। बीरबल की लाश तक का पता नहीं चला था और न ही उसका अंतिम संस्कार किया जा सका।