Ambedkar love letter Story – डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर! जब भी ये नाम जुबां पर आता है, हम भारतवासियों को गर्व की अनुभूति होती है…है ना! भारत को उसका संविधान देने वाले युग पुरूष के बारे में बहुत सारी बातें हम जानते हैं पर उनकी लव लाइफ के बारे में जरा कम ही लिखा गया. ऐसा शायद इसलिए भी था क्योंकि बाबा साहेब ने जीवन के इस हिस्से को खुद तक समेंटकर रखा. या फिर ऐसा हो सकता है कि जिस संवैधानिक पद पर वो थे समाज में जो उनका सम्मान था उसके बीच ये इस तरह के मामलों को कभी ऊपर नहीं लाना चाहते थे.
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पर एक दिन जब बाबा साहेब हमें छोड़कर चले गए, तब उनके लिखे ‘लव लेटर’ सामने आए. वो पत्र जो उन्होंने अपनी पत्नि रमा के लिए लिखे थे. इन खतों में लिखी बातें बताती हैं कि बाबा साहेब के लिए रमा ने कितना त्याग किया, उनका सहारा बनी, मार्गदर्शक बनीं, और जीवन के हर मुश्किल वक्त में उनका हाथ थामें रखने वाली संगिनी भी! तो चलिए ‘लवस्टोरी’ में आज हम बाबा साहेब की नजरों से रमा को जानते हैं.
बचपन से निभाया था साथ
बाबा साहेब की शादी 4 अप्रैल 1906 में नौ साल की रामी से हुई थी… जिन्हें कुछ लोग रमाबाई भी कहते थे. लेकिन साहेब के लिए वो पहले दिन से रामू थीं! नौ साल की उम्र में रमा ने घर ग्राहस्त्थी संभाल ली. कम उम्र में शादी होने की वजह से रमा पढ़ाई नहीं कर पाईं. असल में वो दौर ही कुछ ऐसा था. बाबा साहेब ने भी अपने बचपन में कम परेशानियां नहीं झेलीं! स्कूल में शिक्षा हो या समाज में सम्मान… बाबा साहेब के लिए हर चीज हासिल करना मुश्किल रहा. पर ये सब रमा बाई के आने से आसान होने लगा.
रमा के लिए भीमराव अंबेडकर हमेशा उनके साहेब ही रहे. साहेब ने अपनी रामू को घर ही पढ़ाया-लिखाया! कम से कम इतना, कि वो कागजों को लिखने में उनकी मदद कर सकें. जब तक अंबेडकर भारत में थे, उन्होंने रमा के भरोसे घरबार छोड़ रखा था और पूरा ध्यान इस बात पर रखा कि कैसे दलितों को समाज में उचित स्थान दिलाया जाए?
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Ambedkar love letter Story in Hindi – जब अंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए तब पीछे से रमा ने उनके हिस्से की सारी जिम्मेदारी उठा लीं. वो लोगों के घरों में काम करतीं, उपले बनाती और बाजार में बेचतीं.. इन सबसे जो पैसे मिलते उनसे घर का खर्च चलाती और एक हिस्सा मनीआर्डर करके साहेब तक पहुंचातीं. जब तक साहेब विदेश में रहे, उनकी रमा से बात नहीं हुई… उनके बीच संवाद का एक ही माध्यम था.. पत्र.
अगर तुम न होती तो…?
विदेश में रहते हुए 30 दिसम्बर 1930 को बाबा साहेब ने रमा के नाम खत लिखा था. जिसका एक हिस्सा आपको भी पढ़ना चाहिए…
रमा! कैसी हो रमा तुम?…तुम्हारी और यशवंत की आज मुझे बहुत याद आई. तुम्हारी यादों से मन बहुत ही उदास हो गया है. शायद मन में बहुत सारी बातें उमड़ रही हैं. मन बहुत ही विचलित हो गया है और घर की, तुम सबकी बहुत याद आ रही है. मुझे तुम जहाज पर छोड़ने आयी थी. हर तरफ मेरी जय-जयकार गूंज रही थी और ये सब तुम देख रही थी. तुम्हारा मन भर आया था, कृतार्थता से तुम उमड़ गयी थी. तुम्हारी आंखें, जो शब्दों से बयां नहीं हो पा रहा था, सब बोल रही थीं.
अब यहां लंदन में इस सुबह ये बातें मन में उठ रही हैं. दिल कोमल हो गया है. जी में घबराहट सी हो रही है. रमा दरिद्रता, गरीबी के सिवाय हमारा कोई साथी नहीं. मुश्किलें और दिक्कतें हमें छोड़ती नहीं हैं. सिर्फ अंधेरा ही है. दुख का समंदर ही है. हमारा सूर्योदय हमको ही होना होगा रमा. इसलिए कहता हूं कि यशवंत को खूब पढ़ाना. मैं समझता नहीं हूं, ऐसा नहीं है रमा, मैं समझता हूं कि तुम इस आग में जल रही हो. पत्ते टूटकर गिर रहे हैं और जान सूखती जाए ऐसी ही तू होने लगी है. पर रमा, मैं क्या करूं?
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रमा, तुम मेरी जिंदगी में न आती तो? तुम मन-साथी के रूप में न मिली होती तो? तो क्या होता? मात्र संसार सुख को ध्येय समझने वाली स्त्री मुझे छोड़ के चली गई होती. आधे पेट रहना, उपला (गोइठा) चुनने जाना या गोबर ढूंढकर उसका उपला थापना या उपला थापने के काम पर जाना किसे पसंद होगा? चूल्हे के लिए ईंधन जुटाकर लाना, मुम्बई में कौन पसंद करेगा?
घर के चिथडे़ हुए कपड़ों को सीते रहना. इतना ही नहीं, ‘एक माचिस में पूरा माह निकालना है, इतने ही तेल में और अनाज, नमक से महीने भर का काम चलाना चाहिए’, मेरा ऐसा कहना. गरीबी के ये आदेश तुम्हें मीठे नहीं लगते तो? तो मेरा मन टुकड़े-टुकड़े हो गया होता. मेरी जिद में दरारें पड़ गई होतीं. मुझे ज्वार आ जाता और उसी समय तुरन्त भाटा भी आ जाता. मेरे सपनों का खेल पूरी तरह से तहस-नहस हो जाता.
Ambedkar love letter Story in Hindi
जब अंबेडकर ने नौकरी शुरू की तो वे अपनी कमाई रमा को देने लगे. जब जरूरत होती वे रमा से पैसे मांग लेते. इस बीच वे अधिकांश समय अपने घर से दूर रहते. रमा उनकी कमी पूरी करने की कोशिश करतीं. शादीशुदा जीवन में उन्हें 5 बार मां बनने का सुख मिला पर उनमें से केवल 1 संतान जीवित रही.
अम्बेडर चाहते थे कि उनका इकलौता बेटा यशवंत उच्च शिक्षा हासिल करे, जिसके लिए रमा ने खूब मेहनत की. उन्होंने अपने बेटे को काबिल बनाने की हर कोशिश की पर एक दिन वे बीमारी से हार गईं. उचित पालन-पोषण और चिकित्सा के अभाव में केवल 38 साल की उम्र में रमा की मृत्यु हो गई और अंबेडकर अकेले रह गए.
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पर जाने से पहले रमा ने अंबेडकर (Ambedkar love letter Story in Hindi) को उस मुकाम तक पहुंचने में अपना पूरा सहयोग किया, जहां से उन्हें सम्मान के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा. बाबा साहेब ने थॉट्स ऑफ़ पाकिस्तान नाम से एक किताब लिखी थी, उन्होंने कहा, “रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं…”
जाहिर है कि बाबा साहेब के पीछे रमा उनका वो टिकौना बनी रहीं, जिस पर टिक कर उन्होंने संघर्ष के बाद आराम किया, उन्हें विचार आए, उन्होंने भारत को उसका पहला संविधान दिया….!