क्या आप जानते हैं कि 102 साल पहले पंजाब (Punjab) में ऐसा कुछ हुआ कि 8 लाख से ज्यादा लोगों (8 lakhs people killed in Punjab) ने अपनी जान गंवा दी थी? कुछ ऐसा हुआ कि अकेले ही जालंधर (Jalandar) में 32 हजार मौतें हुईं थी। उस दर्दनाक दौर को जब जब याद किया जाता है तब तब रूह कांप जाती है।
दरअसल, बात अंग्रेजों के जमाने की साल 1918 की है, जब पहले विश्वयुद्ध के वक्त स्पैनिश फ्लू (Spanish Flu 1918) फैल गया। इस संक्रमण ने देखते ही देखते भारत को भी अपनी चपेट में ले लिया, जिसमें 2 करोड़ के करीब करीब लोगों की जान गई थी। जिनमें से पंजाब में अकेले 8 लाख लोगों ने जान गवां दी। तब पंजाब का एरिया बहुत बड़ा था जिसें आज का पंजाब, हरियाणा राज्य, हिमाचल प्रदेश इसके साथ ही पाकिस्तान पंजाब एक साथ आता था। अकेले के बात करें तो जालंधर जिले में 32 हजार लोगों की मौत हुई थीं।
स्पैनिश फ्लू क्या था और कहां से आया, कैसे लोगों को अपनी चपेट में लेता जा रहा था ये रोग। ये सारी डीटेल पर हम गौर करेंगे। स्पैनिश फ्लू से जुड़ी बड़ी बातें पॉइंट दर पॉइंट आइए जानते हैं।
पंजाब के तत्कालीन सेनेटरी कमिश्नर के हिसाब से यह एक तरह का बुखार था जिसकी वजह से मरीज के शरीर का टेंप्रेचर 104 डिग्री पहुंच जाता था और पल्स 80 से 90 के बीच चली जाती थी। इससे सिर, पीठ और शरीर के दूसरे पार्ट्स में काफी दर्द होता था। सांस की नाली में सूजन की शिकायत हो जाती थी और नाक और फेफड़ों से खून का रिसाव होता था और फिर तीन दिन के अंदर ही मरीज की जान चली जाती थी।
मई 1918 में प्रथम विश्वयुद्ध से लौटकर आए कुछ सैनिकों में सबसे पहले एक खास तरह का फ्लू देखा गया और फिर उत्तरी भारत के दिल्ली इसके अलावा मेरठ डिस्ट्रिक में फैल गया।
ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के हिसाब से गौर करें तो पंजाब में ये संक्रमण तब शुरू हुआ जब 1 अगस्त 1918 को एक सैनिक को शिमला छावनी में संक्रमित पाया गया। फिर तो हिमाचल की जतोग, डगशाई, सोलन इसके अलावा कोटगढ़ की छावनी में भी संक्रमित लोग पाए गए। अलग अलग शहरों में भी फ्लू फैल गया जैसे कि अंबाला, लाहौर, अमृतसर, फतेहगढ़ की छावनी में संक्रमित पाए जाने लगे। शिमला में इस बीमारी की चपेट में वो सभी आए जो कि यूरोपियन थे और पंजाब के साथ ही मैदानी एरिया में रहने वाले इंडियंस चपेट में आए।
अक्टूबर में इस फ्लू की चपेट में कुछ इस कदर पंजाब आया कि 15 अक्टूबर से 10 नवंबर 1918 के थोड़े से वक्त में ही पंजाब की 4 फीसदी आबादी इसी फ्लू से कम हो गई। तब कुल 1 करोड़ 93 लाख 7 हजार 145 की जनसंख्या में से 816317 लोग की इस संक्रमण की चपेट में आने से जान चली गई। जालंधर में मरने वालों का आंकड़ा 31803 थी।
2011 में रूबी बाला की एक किताब द स्प्रैड ऑफ इन्फ्लूएंजा एपिडैमिक इन द पंजाब (1918-1919) प्रकाशित हुई जिसमें इस फ्लू के बारे में जिक्र किया गया है और कुछ लिखने वालों ने तो ये भी लिखा कि कब्रिस्तान और श्मशान छोटे पड़ने लगे थे और ऐसा ही चलता रहता तो पंजाब के 60 फीसदी लोग सालभर में मौत का शिकार हो जाते।