कहते है कि इतिहास में आज भी बहुत कुछ है, जिसकी कहानियां कहने के लिए सबूत तो है, लेकिन उनके बारे में ज्यादा कुछ लिखा या कहा नहीं गया है। जो वैसे तो हमारे इतिहास के लिए एक मुख्य भूमिका निभा गए लेकिन आज उनकी धरोहर तक को कोई संभालने की फिक्र नहीं करता है। आज हम आपको इतिहास के एक ऐसे ही किस्से से रूबरू कराने जा रहेहै, जिसने अंग्रेजी के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अपनी जान तक की बाजी लगा दी,लेकिन उन्हें याद करने वाला कोई नहीं। आज हम बात करेंगे एक ऐसे पेड़ की, जहां अंग्रेजी हुकुमत ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था।
ये पेड़ है फांसी इमली पेड़। ये फांसी इमली का पेड़ उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले पारादान में स्थित है। इसी के पास बिंदकी के अटैया रसूलपुर में रहते थे एक जाबांज ठाकुर जोधा सिंह अटैया। 1857 के युद्ध में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की बहादुरी और अंग्रेजों के खिलाफ उनका लड़ाई से जोधा सिंह काफी प्रभावित थे, और उन्होंने भी आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक देने का फैसला किया। और अपने साथियों के साथ मिलकर गोरिल्ला लड़ाई का अभ्यास शुरु कर दिया।
जोधा सिंह का नाम पहली बार तब सामने आया जब 27 अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव के एक दारोगा और 1 अंग्रेज सिपाही को घेरकर मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके बाद फिर से एक और अंग्रेज अफसर की हत्या की गई, और 9 दिसंबर के दिन जहानाबाद के तहसीलदार को बंदी बनाकर उसका सारा खजाना लूटा गया, जिसके कारण अंग्रेजी हुकुमत नेउन्हें डाकू घोषित कर दिया। लेकिन 4 फरवरी 1858 के दिन जब जोधा सिंह ने ब्रिगेडियर करथ्यू को असफल मारने की कोशिश की तब जोधा सिंह के खिलाफ अंग्रेजी हुकुमत ने खोजबीन तेज कर दी।
इसी बीच 28 अप्रैल 1858 को जब जोधा सिंह अपने 51 साथियों के साथ खजुआ लौट रहे थे तब किसी गद्दार ने उनकी मुखबिरी कर दी और सभी को कर्नल क्रिस्टाइन की सेना ने पकड़ लिया और बिना किसी सुनवाई के सभी को इस इमली के ही पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था। कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकुमत ने लाशों को भी पेड़ से नहीं उतारा था ताकि उनकी मौत बाकि के बागियों के लिए सबक हो।
52 लोगों को एक साथ फांसी देने के कारण ही इस पेड़ को फांसी इमली का पेड़ कहा जाता है। बाद में महाराज सिंह बावनी ने आकर सभी मृतक को उतारा और शिवराजपुर के गंगा घाट उनका अंतिम संस्कार करवाया था। हर साल 28 अप्रैल को इन 52 क्रांतिकारियों को याद करके यहां के लोग इसे शहीद दिवस के रूप में मनाते है। आज ये पेड़ बेहद बुरी अवस्था में है। सरकार की तरफ सेभी इसके रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं है। जो कही न कही इन वीरों की वीरता कोअपमानित करता सा नजर आता है।