आज के दिन को कोई कभी नहीं भुला सकता. 19 साल पहले आज ही के दिन आतंकियों ने लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन को निशाना बनाया था. 13 दिसंबर 2001 को 5 आतंकी संसद को दहलाने के मकसद से अंदर घुस आए थे. उस दौरान संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था. विपक्ष के हंगामे की वजह से दोनों सदनों को स्थगित कर दिया था, फिर भी वहां पर कई बड़े नेता मौजूद थे. संसद में मौजूद सभी लोगों को कहां पता था कि सबसे महफूज जगह मानी जाने वाली संसद भवन को ही आतंकवादी अपना निशाना बना लेंगे.
सफेद एंबेस्डर कार में घुसे थे आतंकी
समय सुबह करीब 11.40 बजे का था. एक सफेद रंग की एंबेस्डर कार में सवार 5 आतंकवादी संसद भवन में दाखिल हुए. उस कार के एक तरफ रेड लाइट लगी हुई थी, जबकि दूसरी तरफ गृह मंत्रालय का फर्जी स्टीकर लगा था. जब कार संसद भवन के अंदर दाखिल हुई, तो गाड़ी की रफ्तार बहुत तेज थी. इस दौरान संसद की सुरक्षा में लगे एक अधिकारी को शक हुआ. वो गाड़ी को रुकवाने के लिए तेजी से दौड़ा.
उस गाड़ी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत की गाड़ी पर टक्कर मार दी. इससे पहले वहां मौजूद लोग कुछ समझ पाते कि आखिर हो क्या रहा है, इतने में ही पांचों आतंकवादी अपनी गाड़ी से उतरे और ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी. गोलियों के आवाज से संसद भवन में मौजूद सभी लोग दहशत के आ गए. सुरक्षाकर्मी तुरंत ही हरकत में आए और सदन के अंदर जाने वाले सभी दरवाजों को बंद कर दिया.
पांचों आतंकवादी हुए थे ढेर
करीब 45 मिनटों तक लोकतंत्र के मंदिर में खूनी खेल चला था. सुरक्षाकर्मियों ने पांचों आतंकियों को ढेर कर दिया, जबकि सुरक्षाकर्मी समेत कुल 9 लोग इस हमले में शहीद और कई घायल भी हुए. संसद भवन में हुए आतंकी हमले की खबर हर जगह आग की तरह फैल गई. हर कोई इस खबर को सुन कर चौंक गया. ऐसा पहली बार हुआ था जब आतंक ने संसद की दहलीज को पार किया हो.
इस हमले के पीछे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था. अटैक के बाद दिल्ली पुलिस ने चार लोगों को अपनी गिरफ्त में लिया था. जिसमें इस हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, शौकत हुसैन और शौकत की पत्नी अफसान गुरु शामिल थे. ट्रायल कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अफजल गुरु, शौकत हसन और एसएआर गिलानी को सजा-ए-मौत सुनाई, जबकि अफजसान गुरु को बरी कर दिया.
अफजल गुरु को 9 साल बाद दी गई थी फांसी
2003 में गिलानी को भी बरी कर दिया गया. साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने शाकिब की मौत की सजा को बदल दिया और उसे 10 साल सश्रम कारावास कर दिया. हमले के 9 साल बाद 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई. सरकार ने अफजल गुरु के शव को उसके परिवार को नहीं सौंपने का फैसला लिया और उसे तिहाड़ जेल में ही दफना दिया.