कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती भी थोड़ी हिलती है… ये शब्द थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के, जो उन्होंने 1984 सिख दंगों को लेकर कहे थे। इतिहास के पन्ने पलटकर देखें, तो कई कई घटनाएं ऐसी है, जिन्हें याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ये घटनाएं रूंह कंपा देती हैं। ऐसी ही एक घटना है 1984 सिख दंगों की, जब सैकड़ों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। उनका कसूर सिर्फ इतना ही था कि वो सिख थे। बदले के नाम पर देश के अलग अलग शहरों में तीन दिनों तक खूनी खेल चला, जिसमें बड़ी संख्या में जानें गई और ना जाने कितने परिवार इसमें उजड़ गए।
इंदिरा गांधी की हत्या
वो दिन 31 अक्टूबर 1984 का था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रोज की ही तरह उस दिन भी अपने कामों में व्यस्त थीं। इंदिरा तब अकबर रोड दफ्तर जाने के लिए बाहर निकलीं। वो उसी रास्ते से रोज जाया करती थीं, तब इंदिरा गांधी को कहां मालूम था कि उस रास्ते पर मौत उनका इंतेजार कर रही है।
जैसे ही इंदिरा गेट के पास पहुंचीं, सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह उनके पास ही था। बेअंत सिंह 9 साल से इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों में से एक था। बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने मिलकर इंदिरा गांधी का शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। बताया जाता है कि बेअंत सिंह ने पांच गोलियां इंदिरा को मारी और सतवंत ने अपनी ऑटोमैटिक स्टेन गन से 25 बुलेट्स उनके शरीर में दाग दीं। खून से लथपथ इंदिरा गिर पड़ी और फिर आनन-फानन में उन्हें अस्पताल लेकर जाया गया, लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका।
अब इस बीच सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर क्यों इंदिरा गांधी की रक्षा करने वाले अंगरक्षक की उनकी जान के दुश्मन बन गए? क्या थीं वो वजह, जिसके चलते उन्होंने इंदिरा के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया?
क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार?
इंदिरा गांधी की मौत के पीछे की वजह था ऑपरेशन ब्लू स्टार। ये घटना भी साल 1984 की ही है। जून का महीना था, जब इंदिरा गांधी की सरकार ने अमृतसर के गोल्डन टेंपल में अभियान चलाया गया। 3 जून से 6 जून 1984 तक चलाए गए मिशन का मकसद हरिमंदिर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से छुड़ाना था। इस ऑपरेशन में भिंडरावाले मारा गया। इसके साथ ही पूरे मिशन में स्वर्ण मंदिर में 492 लोगों की भी जान गई। सेना के 83 जवान शहीद हुए।
ऑपरेशन ब्लू स्टार ने सिखों की भावनाओं को ठेंस पहुंचाई। सिखों ने स्वर्ण मंदिर पर हमले को बेअदबी माना और इसकी कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
भड़के थे सिख दंगे
इंदिरा गांधी की मौत के बाद देश में जगह-जगह पर सिखों के खिलाफ दंगे भड़के। देशभर में बड़ी संख्या में लोग दंगों से प्रभावित हुए। कई लोगों ने अपने घर, परिवार, परिजनों को खो दिया। दंगों से सबसे ज्यादा प्रभावित राजधानी दिल्ली हुई। अकेले दिल्ली में ही 2500 लोग मारे गए थे। देशभर की बात करें तो ये आंकड़ा 3500 के करीब का बताया जाता है। सिख दंगों को 37 साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन आज भी इन दंगों के जख्म ताजा हैं।