Gurudwaras in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश, जिसे हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों के लिए जाना जाता है, सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह राज्य कई ऐतिहासिक गुरुद्वारों का घर है, जो गुरु नानक देव, गुरु तेग बहादुर और अन्य गुरु साहिबानों की यात्राओं और उपदेशों से जुड़े हुए हैं। इन गुरुद्वारों में धर्म, इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। ये गुरुद्वारे न केवल सिख धर्म की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं बल्कि देश के अलग-अलग कोनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शांति का केंद्र भी हैं। आइए जानते हैं उत्तर प्रदेश के शीर्ष 10 प्रसिद्ध गुरुद्वारों के बारे में।
गुरुद्वारा नजरबाग, अयोध्या– Gurudwaras in Uttar Pradesh
अयोध्या स्थित गुरुद्वारा नजरबाग सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक विशेष स्थान रखता है। गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार से जगन्नाथपुरी जाते हुए यहां कुछ समय बिताया और प्रवचन दिए। माना जाता है कि इस स्थान का नाम तब पड़ा, जब गुरुजी ने यहां ध्यान लगाया। यह स्थान सिर्फ सिखों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
गुरुद्वारा यहियागंज, लखनऊ
इसी तरह लखनऊ का गुरुद्वारा यहियागंज गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में बनाया गया है। 1670 में यहां तीन दिन बिताने वाले गुरुजी ने तप और साधना का विशेष महत्व बताया। यहां के लंगर और नियमित धार्मिक अनुष्ठान इस गुरुद्वारे को सिख समुदाय के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल करते हैं।
गुरुद्वारा गुरु का ताल, आगरा
आगरा का गुरुद्वारा गुरु का ताल, दिल्ली-आगरा हाईवे पर स्थित, एक ऐतिहासिक स्थान है। यह गुरुद्वारा उस जगह पर बना है, जहां गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के सामने अपनी गिरफ्तारी दी थी। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी संगमरमर से बनी भव्य वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है।
गुरुद्वारा तप अस्थान पक्की संगत साहिब, इलाहाबाद
गुरुद्वारा तप अस्थान पक्की संगत साहिब, इलाहाबाद में स्थित है, जहां श्री गुरु तेग बहादुर जी और उनका परिवार पूर्व की ओर यात्रा करते समय रुके थे। गुरु तेग बहादुर माता गुजरी, माता नानकी, मामा कृपाल दास और अन्य सिखों के साथ यहां आए थे। स्थानीय संगत ने गुरु तेग बहादुर से कुछ समय के लिए यहां रहने के लिए कहा। गुरु तेग बहादुर यहां लगभग 6 महीने तक रहे। माता नानकी (गुरु तेग बहादुर की माँ) को एक पोते की उम्मीद थी और यहीं पर माता गुजरी ने गुरु गोबिंद सिंह को गर्भ में धारण किया था।
गुरुद्वारा श्री पातशाही चेविन साहिब, पीलीभीत
पीलीभीत स्थित गुरुद्वारा श्री पातशाही चेविन साहिब सिख धर्म के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब की यात्रा से जुड़ा है। बाबा अलमस्त जी के निमंत्रण पर यहां आए गुरुजी ने धर्म और भाईचारे का संदेश दिया। यह गुरुद्वारा अपनी लंगर सेवा के लिए भी प्रसिद्ध है।
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, झांसी
झांसी का गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने यहां चरण धरे थे। यह स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों के लिए भी आश्रय स्थल बना।
गुरुद्वारा नानकपुरी, बरेली
गुरुद्वारा नानकपुरी, बरेलीबरेली में स्थित गुरुद्वारा नानकपुरी गुरु नानक देव जी की दया और सद्भावना का प्रतीक है। यहां उन्होंने स्थानीय लोगों को गुलामी प्रथा और अत्याचार के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा दी। इसी जिले में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर नौवें गुरु की स्मृति में बनाया गया है, जहां उनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार होता है।
गुरुद्वारा बड़ी संगत श्री गुरु तेग बहादुर, वाराणसी
संगत गुरुद्वारा बारी प्राचीन हुक्मनामा और अन्य कलाकृतियों के अनुसार, नीची बाग मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर बनारस की सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण संगत है। गुरु तेग बहादुर की यात्रा के समय संगत का नेतृत्व भाई जवाहर लाल, मसंद कर रहे थे। गुरु भाई कल्याण मल के घर में रुके थे। इसकी वर्तमान तीन मंजिला इमारत, जिसने 1854 में पटियाला के महाराजा नरिंदर सिंह द्वारा निर्मित एक इमारत की जगह ली थी, का निर्माण 1950 के दशक में हुआ था।
गुरुद्वारा नानकसर, मेरठ
मेरठ का गुरुद्वारा नानकसर गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और उपदेशों के प्रचार के लिए बनाया गया है। यहां आयोजित धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव सिख समुदाय में बेहद लोकप्रिय हैं।
गुरुद्वारा श्री संकट हरण दुख निवारण, कानपुर
नौवें सिख गुरु तेग बहादुर साहिब 1665 में पंजाब से असम की यात्रा के दौरान कानपुर आए थे। उन्होंने यहां सरसैया घाट पर विश्राम किया था। इसी वजह से कानपुर का गुरुद्वारा श्री संकट हरण दुख निवारण गुरु तेग बहादुर जी के सरसैया घाट पर विश्राम की स्मृति में स्थापित किया गया। यह गुरुद्वारा कानपुर का पहला सिख धार्मिक स्थल है और यहां के लंगर और धार्मिक कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।
और पढ़ें: मसूरी में मौजूद है गुरु नानक देव जी की कुंडली, इतिहासकार ने की संरक्षित करने की मांग