Guru Nanak Dev Ji Indore Connection: सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी 502 साल पहले 1517 में अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) के दौरान इंदौर और आसपास के इलाकों में आए थे। उनकी इस यात्रा ने इन जगहों को ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व दिया। इंदौर में कान्ह नदी के किनारे इमली के पेड़ के नीचे बैठकर शबद का महत्व बताया गया था। आज इसी जगह पर गुरुद्वारा इमली साहिब स्थित है, जो लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
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इमली के पेड़ का ऐतिहासिक महत्व- Guru Nanak Dev Ji Indore Connection
गुरु नानक देव जी ने इंदौर में इमली के एक पेड़ के नीचे बैठकर शबद पाठ किया, जो उनके प्रवचनों और दिव्य संदेशों का केंद्र बना। यह पेड़ अब तो नहीं रहा, लेकिन इसकी एक शाखा को एक सिख परिवार ने 70 साल से संरक्षित कर रखा है।
इमली की शाखा का संरक्षण
करीब 70 साल पहले, भवन निर्माण के लिए इमली का यह ऐतिहासिक पेड़ हटाना पड़ा। लेकिन, सिख समाज के एक व्यक्ति ने इसकी एक डेढ़ फीट लंबी शाखा को संरक्षित कर लिया।
- वर्तमान में यह शाखा केवल 9-10 इंच की बची है।
- इसे एक सिख परिवार ने अपने घर के देव स्थान में सफेद वस्त्र में लपेटकर सुरक्षित रखा है।
- देशभर से श्रद्धालु इस शाखा के दर्शन के लिए आते हैं।
परिवार के अनुसार, कई लोग इस शाखा का हिस्सा मांगने आते हैं। पहले इस शाखा का कुछ हिस्सा बांटा गया था, लेकिन अब इसे पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है।
देशभर से सिख श्रद्धालु इस शाखा के दर्शन करने आते हैं। हालांकि, इसके बारे में जानकारी केवल कुछ ही लोगों को है, जिससे यह अद्वितीय धरोहर अभी व्यापक रूप से चर्चित नहीं है। गुरुसिंघ सभा ने इस शाखा को गुरुद्वारा इमली साहिब में न रखने का निर्णय लिया। वर्तमान में इस स्थान पर गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया जाता है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
बेटमा साहिब: खारे पानी की बावड़ी का मीठा होना
गुरु नानकदेव जी की यात्रा का एक और प्रमुख स्थल था बेटमा साहिब, जो इंदौर के पास स्थित है। स्थानीय संगत ने गुरुजी को खारे पानी की बावड़ी की समस्या बताई। गुरु नानकदेव जी के तप और आशीर्वाद से खारे पानी की यह बावड़ी मीठे पानी में बदल गई। इस घटना का उल्लेख सिख धर्म के प्राचीन ग्रंथ गुरु खालसा में भी मिलता है। इस चमत्कार के उपरांत यहां गुरुद्वारा बावड़ी साहिब का निर्माण किया गया। यह स्थान आज भी हजारों श्रद्धालुओं को गुरु नानकदेव जी के संदेशों और चमत्कारों की याद दिलाता है।
गुरु नानकदेव जी का संदेश और प्रभाव
गुरु नानकदेव जी का इंदौर और बेटमा में प्रवास उनके शांति, अहिंसा और शबद की महत्ता के संदेशों को प्रसारित करने का प्रतीक था। गुरुजी ने इंदौर में इमली के पेड़ के नीचे बैठकर शबद गाया और भाई मरदाना की रबाब की धुन पर संगत को दिव्यता का अनुभव कराया।
बेटमा में, उन्होंने स्थानीय भीलों को अहिंसा और सत्य का संदेश दिया, जो उस समय आतंक मचा रहे थे। उनके प्रवचनों से प्रेरित होकर वहां की संगत में शांति और सद्भाव की भावना जागी।
गुरुद्वारों का ऐतिहासिक महत्व और प्रबंधन
गुरु नानकदेव जी के आगमन से जुड़े स्थानों पर ऐतिहासिक गुरुद्वारों का निर्माण किया गया, जिनमें इमली साहिब और बावड़ी साहिब प्रमुख हैं। पहले इस स्थान की सेवा उदासी मत के अनुयायियों द्वारा की जाती थी। बाद में, होलकर स्टेट ने पंजाब से फौज बुलाकर इस गुरुद्वारे की व्यवस्था संभाली।
गुरुद्वारों की प्रबंधन व्यवस्था आज गुरुसिंघ सभा द्वारा की जाती है। सभा के अध्यक्ष मनजीत सिंह भाटिया के अनुसार, इन गुरुद्वारों का विस्तार संगत की सुविधा के लिए किया जा रहा है। हर साल गुरु नानकदेव जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर इन स्थानों पर हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और मत्था टेकते हैं।
पुरातन ग्रंथों में उल्लेख
गुरु नानकदेव जी के इंदौर और बेटमा प्रवास का उल्लेख सिख धर्म के प्राचीन ग्रंथ गुरु खालसा में मिलता है। इस ग्रंथ में उनके चमत्कार, प्रवचन, और यात्रा का विस्तृत विवरण दिया गया है।