दलितों के अधिकारों की लड़ाई की बात करें तो सबसे पहला नाम बाबा साहेब अंबेडकर का आता है। बाबा साहब ने भले ही दलित समाज को उनके हक़ दिया हो, लेकिन बाबा साहब की तरह ही कई ऐसी शख्सियतें भी रहीं जिन्होंने दलितों के हक के लिए लड़ाई लड़ी और समाज में उनके लिए एक अच्छी जगह भी बनाई। ऐसी ही महान शख्सियतों में से एक थीं दलित समाज की महान समाज सुधारक और लेखिका “जय बाई चौधरी” (Jai Bai Chaudhary)। हो सकता है कि आपने उनका नाम पहली बार सुना हो। क्योंकि उनके द्वारा किए गए काम इतिहास तक सीमित थे, लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि कैसे उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया और दलित महिलाओं को उनके अधिकार दिलाए।
कौन थी जय बाई चौधरी? – Who is Jai Bai Chaudhary
दलित समाज की महान समाज सुधारक और लेखिका “जय बाई चौधरी” का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। उनका जन्म 1892 में नागपुर शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर उमरेर में “महार” जाति में हुआ था। 1896 में अकाल के कारण उनका परिवार नागपुर आ गया और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं पूरी की। 1901 में छोटी सी उम्र में ही उनकी शादी बापूजी चौधरी से कर दी गई। उसके बाद आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के कारण उन्होंने कुली का काम भी किया। लेकिन एक दिन मिशनरी नन ग्रेगरी की नज़र जयबाई चौधरी पर पड़ी जब वह उनका एक भारी बैग उठा रही थीं।
इसके बाद उन्होंने जय बाई को 4 रुपये प्रति माह के वेतन पर अपने स्कूल में शिक्षिका के रूप में पढ़ाने की पेशकश की और जय बाई ने भी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
कुली से बन गयी टीचर
जय बाई एक “अछूत” जाति से थी, इसलिए जब हिंदुओं को पता चला कि उनके बच्चों को एक अछूत महिला (Dalit teacher Jai Bai Chaudhary) पढ़ा रही है, तो उन्होंने स्कूल का बहिष्कार कर दिया। इस वजह से जय बाई को स्कूल छोड़ना पड़ा।
इस घटना का जैबाई पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने छुआछूत और जाति प्रथा के खिलाफ लड़ने और अछूत लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित करने का संकल्प लिया और 1922 में उन्होंने “संत चोखोमेला गर्ल्स स्कूल” की नींव रखी।
8 से 10 अगस्त 1930 को नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय दलित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में दलित महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए जयबाई चौधरी ने कहा, “लड़कियों को लड़कों की तरह पढ़ने के पूरे अवसर प्रदान किये जाने चाहिए। एक लड़की की शिक्षा से पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है।”
जब जय बाई का सार्वजनिक रूप से अपमान किया गया
1937 में “अखिल भारतीय महिला सम्मेलन” के दौरान उन्हें एक बार उच्च जाति की महिलाओं से जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस सम्मेलन में उन्हें भोजन क्षेत्र से अलग बैठने के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद, 1 जनवरी, 1938 को, जैबाई ने दलित महिलाओं की एक बड़ी सभा बुलाई और उच्च जाति की महिलाओं के द्वेषपूर्ण कार्यों और अस्पृश्यता पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की।
जुलाई 1942 में आयोजित “अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन” की सदस्य जैबाई भी थीं। सम्मेलन में स्वयं बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर भी मौजूद थे। इस सम्मेलन में महिलाओं की जागरूकता देखकर बाबा साहब ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा- इस परिषद में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी देखकर मुझे संतोष और खुशी हो रही है कि हमने प्रगति की है।
जयबाई का स्कूल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में हुआ तबदील
1922 में जयबाई ने जिस स्कूल की शुरुआत की थी, वह अब हायर सेकेंडरी स्कूल बन चुका है। अब इस स्कूल का नाम बदलकर जयबाई चौधरी ज्ञानपीठ कर दिया गया है।
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