14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को न सिर्फ़ आज़ादी मिली बल्कि उसे आज़ादी मिलने के तरीक़े की भयावह यादें भी मिलीं। कई बेगुनाह लोगों ने अपनी जान गंवाई, कई बेगुनाह लोगों ने अपने माता-पिता खो दिए। इस दिन पाकिस्तान के कराची में कई दंगे हुए और इन दंगों की यादें 19 साल के नौजवान की आंखों में इस कदर समा गईं कि वह इन यादों के गम से कभी उबर नहीं पाए। दरअसल, ये 19 साल का नौजवान कोई और नहीं बल्कि लाल कृष्ण आडवाणी थे जिन्होंने कराची की सड़कों पर भयावह मंज़र देखे थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री, माई लाइफ़’ में भी इसका ज़िक्र किया है।
अपनी जीवनी में वे लिखते हैं कि 14 अगस्त 1947 को उन्होंने कराची की सड़कों पर खून से लथपथ लाशें देखीं। यह दृश्य उनके लिए बेहद दर्दनाक था, क्योंकि उन्होंने सड़कों पर ऐसा दृश्य पहली बार देखा था। पाकिस्तान के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान आडवाणी के इस अनुभव ने उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर डाला।
पाकिस्तान का जन्म और दर्दनाक अनुभव
देश का विभाजन 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के जन्म के साथ ही शुरू हो गया था। इस दिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कराची में पाकिस्तान की संविधान सभा को संबोधित किया था और नए देश की स्थापना की घोषणा की थी। उस समय कराची में मौजूद आडवाणी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि आज़ादी के दिन को लेकर उनके दिल में कोई खुशी नहीं थी। कई हिंदू बच्चों ने मिठाई लेने से भी मना कर दिया था, जो उस समय के माहौल को दर्शाता है। आडवाणी ने कहा कि उस दिन कराची में हिंदू मोहल्ले बहुत उदास और सुनसान थे और लोग अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और डर में जी रहे थे। आडवाणी ने मोटरसाइकिल पर कई हिंदू बस्तियों का दौरा किया और हर जगह एक ही चिंता महसूस की – “अब क्या होगा?”
आडवाणी ने छोड़ी कराची
आडवाणी के अनुसार, विभाजन के परिणामस्वरूप कराची के हालात समय के साथ बदतर होते गए। 5 अगस्त 1947 को, उन्होंने उस समय की तनावपूर्ण परिस्थितियों के बीच हिंदू आबादी को खुश करने के प्रयास में कराची में आरएसएस मार्च का आयोजन किया। हालांकि, सितंबर 1947 में कराची में हुए विस्फोट के बाद, स्थिति और भी खराब हो गई। इस घटना के बाद, आडवाणी ने पाकिस्तान में न रहने का फैसला किया और 12 सितंबर 1947 को वे कराची छोड़कर दिल्ली आ गए।
पाकिस्तान के विभाजन के परिणाम
विभाजन के दौरान लाखों लोगों को अपने घर और जीवन को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारत और पाकिस्तान दोनों में, मानवीय पीड़ा का एक अंतहीन चक्र शुरू हो गया। इस आपदा के परिणामस्वरूप पंद्रह मिलियन लोगों ने अपने घर खो दिए, और हज़ारों लोगों का अपहरण कर लिया गया या हिंसा का शिकार होना पड़ा। दुखद विभाजन के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण विभाजन है। लेकिन ऐसी घटनाओं और अनुभवों का आडवाणी और उनके जैसे कई अन्य लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
और पढ़ें: बाबा साहब अंबेडकर के अखबार मूकनायक की कहानी, दलित समाज का स्वाभिमान जगाने के लिए किया गया था प्रकाशन