धर्म से नफरत करने वाले ओशो को सिखों से क्यों था लगाव? जानिए सिख धर्म पर ओशो के विचार

Why was Osho, who hated religion, fond of Sikhs? Know Osho's views on Sikhism
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20वीं सदी के महान विचारक और आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश ने अपने जीवनकाल में सभी प्रचलित धर्मों के पाखंड को उजागर करके दुनिया भर के लोगों की दुश्मनी मोल ले ली थी। भारतीय गुरु ओशो ने पूरी दुनिया को बिल्कुल नए विचारों से झकझोर दिया और बौद्धिक जगत में तहलका मचा दिया। उन्होंने आस्तिक और अनीश्वरवादी दोनों विचारधाराओं का विरोध किया। आस्तिक लोग मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों, आराधनालयों आदि में जाकर ईश्वर से चूक गए और ईश्वर-विरोधी उनसे लड़कर ईश्वर से चूक गए। ईश्वर कोई बाहरी वास्तविकता नहीं है। वह स्वयं के परिष्कार की चेतना की चरम अवस्था है।  ओशो का मानना था कि कोई भी पंडित-पुजारी या तथाकथित धर्म नहीं चाहता कि लोग खुद तक पहुंचें, क्योंकि जैसे ही लोग खुद को खोजने निकलते हैं, लोग सभी तथाकथित धर्मों – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – के बंधन से बाहर आ जाते हैं।  और अंततः व्यक्ति को अपना सत्य मिल जाता है। एक बार तो ओशो ने ये तक कह दिया था कि धर्म आपको डराकर विश्वास करना सिखाता है ताकि आप उनके धर्मग्रंथों पर सवाल न उठाएं। भविष्यवक्ताओं पर प्रश्न न उठाएं। सदियों से धर्मों ने यही किया है। अब दुनिया में धर्मों की कोई जरूरत नहीं है। धर्म का कोई भविष्य नहीं है। हालांकि, आश्चर्य की बात यह है कि धर्म के प्रति ऐसे विवादास्पद बयान देने वाले ओशो ने कभी भी सिख धर्म के बारे में ऐसी बातें नहीं कहीं। सिख धर्म के संबंध में उनकी अपनी अनूठी राय थी जिसे आज भी झुठलाया नहीं जा सकता।

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सिख धर्म पर ओशो के विचार

सिख धर्म पर ओशो के विचार ने जो सबसे महत्वपूर्ण काम किया वह था धर्म को दुख और उदासी से मुक्त करना। उन्होंने धर्म को उत्सव और मुक्ति का रूप दिया। ओशो कहते हैं, “सिख धर्म के संस्थापक नानक उन खूबसूरत लोगों में से एक हैं जिनके लिए मेरे मन में असीम प्यार है।” यह प्यार ओशो के सबसे प्रशंसित प्रवचनों, जपुजी साहेब पर एक ओंकार सतनाम में सुनने और पढ़ने के लिए है , जो हिंदी में प्रकाशित हुए हैं, गुरुमुखी और अंग्रेजी में अनुवादित हैं और ऑडियो और किताबों दोनों के रूप में उनके बेस्टसेलर शीर्षकों की सूची में सबसे ऊपर हैं।

ओशो हमें किसी विशेष धर्म के बारे में नहीं, बल्कि बिना विशेषण के “धार्मिकता” के बारे में सिखाते हैं। उनका कहना है कि जीवन को इतने कलात्मक, सचेत और प्रेमपूर्ण तरीके से जीना चाहिए कि व्यक्ति परमानंद का अनुभव कर सके। जीवन का सम्मान करना चाहिए, अस्तित्व को उसकी पूर्णता में स्वीकार करना चाहिए। अतीत और भविष्य से मुक्त वर्तमान का यह क्षण मंगलमय हो।

ओशो ने कहा सिख होना कठिन है

जब एक बार किसी ने ओशो से सिख धर्म के बारे में सवाल पूछा तो उन्होंने ये कहा, ‘सिख होना बड़ा कठिन है। गृहस्थ होना आसान है। संन्यासी होना आसान है, छोड़कर चले जाओ जंगल में रहो, कितना आसान है। लेकिन, सिख होना कठिन है क्योंकि सिख का अर्थ है- संन्यासी, गृहस्थ एक साथ। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे नहीं हो। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे हिमालय में हो। करना दुकान, लेकिन याद परमात्मा की रखना। गिनना रुपए, नाम उसका लेना।’ कुछ इस तरह से ओशो ने बड़े ही सरल शब्दों में सिख धर्म को सबसे अच्छा और कठिन धर्म बताया था।

गुरु नानक पर ओशो के विचार

सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव के बारे में भी ओशो के यही विचार थे। ओशो ने कहा था कि नानक ने एक अनोखे धर्म को जन्म दिया है, जिसमें गृहस्थ और संन्यासी एक हैं। और केवल उसी व्यक्ति को अपने आप को सिख कहलाने का अधिकार है, जो गृहस्थ होते हुए भी संन्यासी है, जो संन्यासी होते हुए भी गृहस्थ है।

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