ज़्यादातर सिख पुरुष पगड़ी पहनते हैं, लेकिन आपने बहुत कम ही देखा होगा कि महिलाएं भी पगड़ी पहने हुए हो। पुरुषों का पगड़ी पहनना आम बात लगती है पर महिला सिख के पगड़ी पहनने पर ये जानने का मन होता है कि आखिर इसके नियम क्या है? और इस बारे में क्या कुछ कहा गया है?
साल 1699 में अपने पंज प्यारों को सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने अमृत और बाणा दिया जिसमें उनको गुरु साहिब ने वेशभूषा धारण करने को कहा, उनमें से एक पगड़ी भी थी।’ अकाल तख्त ने सिखों के लिए कुछ नियम तय किए जिस पर गौर करें तो सभी अमृतधारी सिख पुरुषों साथ ही अमृतधारी सिख महिलाओं को दस्तार पहननी है। सिख ‘क्या करें और क्या नहीं’ करें इसे सिखों की ‘रेहत मर्यादा’ में बताया गया है जिसे पुरुष-महिला दोनों पर एक रूप से तय कर दिया गया।
माना जाता है कि गुरुओं के निर्देश, दर्शन और सिख सिद्धांत के बेस पर सिख रेहत मर्यादा को लिखा गया है। महिलाओं के पगड़ी पहनने को लेकर कहा जाता है कि आदर्श तौर पर हर सिख महिला को पगड़ी के ऊपर एक चुन्नी डालनी चाहिए वैसे पगड़ी की लंबाई और रंग को लेकर ऐसी कोई सीमाएं तय नहीं है। सिखों का पगड़ी पहनना आस्था का प्रतीक है । सम्मान, आत्मसम्मान, हौसला इसके साथ साथ आध्याम को ये पगडी दिखाती है। जिन्होंने अमृत चखा उनके लिए तो पांचों ‘क’ धार करने के बारे में कहा जाता है। ये पांच क हैं केश, कड़ा, कंघा, कच्छा, कृपाण। ये लोग अपने बाल नहीं कटाते और बालों को पगड़ी से ढंकते हैं।
अब जब पगड़ी की बात हो ही रही है तो ये भी लगे हाथ जान लेते हैं कि आखिर पगड़ी या पग है क्या?
पगडी को मुख्य तौर पर दस्तार कहते हैं। शब्द दस्त-ए-यार यानी “भगवान का हाथ” से निकलकर आया है। सिख धर्म से संबंधित संस्कृति का एक हिस्सा है पगड़ी जिसे सर पर पहनी जाती है। फारसी में, दस्तर शब्द एक तरह के पगड़ी के बारे में ही बताता है।