हम हमेशा ही देखते हैं कि लोग अपना सिर ढकते हैं और खास करके धार्मिक स्थल पर तो अपना सिर ढककर ही पहुंचते हैं। चाहे मंदिर हो, मस्जिद हो या फिर गुरुद्वारा। हर जगह पर ही सिर को ढककर ही भीतर जाते हैं लोग। अब जो सवाल हैं वो ये कि आखिर गुरूद्वारे में जाने से पहले क्यों लोग अपना सिर ढकते हैं? क्या है इसके पीछे की वजह है?
सिर ढकने के पीछे की परंपरा का कॉन्सेप्ट ये है कि जिनको आप खुद से श्रेष्ठ और आदरणीय मानते हैं उनकी इज्जत में अपने सिर को ढककर रखते हैं। हर धर्म में ही परमात्मा को सबसे ऊपर माना गया है और ऐसे ही सिख धर्म में भी है। ऐसे में गुरूद्वारे में भी जब भी जाते हैं सिर ढककर ही जाते हैं। सिख धर्म में ऐसा माना जाता है कि 10 द्वार हमारे शरीर में मौजूद होते हैं। दो आंखें, दो कान, एक मुंह, दो नाक के, दो गुप्तांग और सिर होता है। सिर का स्थान इन 10 द्वारों में सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है।
ऐसा मानते हैं कि इस दसवें द्वार मतलब की सिर के जरिए ही कोई इंसान परमात्मा के दर्शन पा सकता है। इतना ही नहीं इस दसवें द्वार का जो सीधे तौर पर जुड़ाव होता है वो हमारे मन से होता है। मन हमारा चंचल होता है ऐसे में परमात्मा में हम आसानी से केंद्रित हो सकते हैं।कहते हैं कि भगवान के दरबार में जाने से पहले मन पर काबू पाने के लिए सिर को ढकना बेहद जरूरी है।
ऐसा करने के पीछे एक ये भी तर्क दिया जाता है कि इससे ना सिर्फ नकारात्मक उर्जा खत्म होती है बल्कि शरीर में ध्यान से इकट्ठा हुई सकारात्मक ऊर्जा भी बनती है। माना जाता है कि सिर ढककर पूजा करने से होता ये भी है कि हमारे सिर के बीच में जो चक्र होते हैं वे सक्रिय हो जाते हैं।