बेदी कुल में जन्मे श्री गुरू नानक देव जी जब महज नौ साल के हुआ करते थे, जब उनको जनेऊ पहनने की रस्म निभानी थी। उसी दौरान कुछ ऐसा हुआ कि उस घटना को आज भी याद किया जाता है। क्या थी वो घटना आज के हम यही जानेंगे पूरे डीटेल में।
गुरु नानक देव जी के दौर में ब्राह्मण, क्षत्रीय और वैश्य हिंदुओं में जनेऊ का रस्म हुआ करता था और आज भी भारत में कई जगह ये रस्म निभाई जाती हैं। तो तब के वक्त में हुआ ये कि जनेऊ पहनाने की रस्म के लिए गुरु नानक देव जी के घर सभी रिश्तेदार पहुंच गए। जब रस्म अदा होने ही वाली थी कि गुरू जी ने इसे रोक दिया और कुछ ऐसे तर्क दिया कि उन्होंने जनेऊ पहनने से साफ साफ मना कर दिया।
गुरु जी ने जो सवाल उठाया इस रस्म को लेकर वो कुछ ऐसा था कि ये धागा क्यों पहनना। उन्होंने जब सवाल किया तो पंडित ने उनको बताया कि परलोक तक ये उनके साथ जाएगा। गुरु साहिब ने फिर कहा कि जब ये शरीर यहीं पर जलकर खत्म हो जाएगा, तो ये धागा उनके साथ कैसे जाएगा। परलोक तक तो आत्मा के साथ ही आत्मा द्वारा धरती पर किए कर्म ही जाते हैं।
गुरु साहिब ने सवाल किया कि उनकी बहन बेबे नानकी जी और मां तृप्ता देवी जी ने इसे क्यों आखिर क्यों नहीं पहना। इसका जवाब ये दिया गया कि ये औरतों को नहीं पहनना होता है। यहीं से सिख धर्म में महिलाओं की बराबरी दिए जाने के बारे में माना जाता है। सिख धर्म में अमृत धारण करने की एक रस्म जरूर होती है या फिर सिखों में भी पूजा पाठ करने की प्रथा है लेकिन महिलाओं से भेदभाव सिखों में नहीं होता है।
महिलाओं को सिख गुरुओं ने बराबर माना है। ऐसे ही उन्होंने सूर्य को जल देने की रस्म का भी खुलकर विरोध किया। गुरु साहिब ने किया ये कि जब लोग चढ़ते सूरज को जल दे रहे थे उसी वक्त गुरु जी ने उलटी दिशा में जल देने लगे जिस पर लोग उन पर हंसने लगे। गुरु जी ने कहा कि अगर आपका जल सूरज तक पहुंच सकता है तो खेतों तक मेरा जल क्यों नहीं पहुंच सकता। ऐसे कई आडंबरों पर गुरु जी ने सख्त तरीके से चोट किया और लोगों को समझाया कि श्राद्ध के वक्त जो भोजन और कपड़ा दिया जाता है उनके बुजुर्गों को वो उन तक पहुंचता ही नहीं।