सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी से जुड़ी एक कथा है उड़ती चटाई की। क्या आप इस कथा को जानते हैं? अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में आपको बताने जा रहे हैं…
गुरु नानक देव जी अपने दोनों चेलों के साथ यात्रा पर निकले थे और इसी यात्रा के दौरान श्रीनगर- कश्मीर पहुंचे। वहां लोग गुरु नानक देव जी से काफी प्रभावित थे और एक ऐसा दिन भी आया जब गुरु जी से भेंट करने के लिए वहां के लोग उनके पास पहुंचे। गुरु जी के सामने काफी भीड़ इकट्ठी हो गई।
श्रीनगर में तब एक पंडित हुआ करते थे। उन पंडित जी का नाम ब्रह्मदास था, जो कि खूब देवी उपासना किया करते और आराधना भी किया करते थे। इस तरह से उन्होंने कई सिद्धियां भी पा ली थी। अपना कौशल दिखाने ब्रह्मदास गुरु जी के सामने तो आए, लेकिन उड़ती चटाई पर सवार होकर आए। गुरु जी के सामने लोगों का जमावड़ा था, लेकिन गुरु नानक देव कहीं दिखे ही नहीं।
जब पंडित ब्रह्मदास नें लोगों से गुरु नानक देव के बारे में पूछा कि वो कहां हैं? तो लोगों ने उनसे कहा कि यहीं आपके सामने तो हैं। उड़ती चटाई पर सवार पंडित ब्रह्मदास ने सोचा कीये क्या कह रहे हैं लोग। लगता है सब उनका मज़ाक बना रहे हैं। वहां तो उनको गुरु नानक देव जी दिख ही नहीं रहे।
इसके बाद पंडित लौटने को हुए, लेकिन तब इतने में उनकी चटाई जमीन पर आ गई और पंडित जी भी नीचे आ गिरे। ऐसा होने पर उनका खूब मजाक बना। फिर पंडित जी को चटाई कंधे पर रखकर ले जानी पड़ी। घर पहुंचकर पंडित ने अपने नौकर से पूरी बात बताई और पूछा किमुझे गुरु नानक क्यों नहीं दिखे? तब नौकर बोला, लगता है आपकी आंखों पर अहम की पट्टी बंधी थी।
फिर क्या हुआ क्या पंडित जी को गुरू नानक देव जी दिखे? तो हुआ ये कि अगले दिन पंडित ब्रह्मदास जी गुरु जी के पास विनम्र तरीके से चलकर गए और उनको गुरु नानक देव जी वहीं विराजमान दिखे जहां कल वो नहीं दिख रहे थे। गुरु नानक से पंडित ने पूछा कल मैं चटाई पर उड़कर आया, लेकिन आप नहीं दिखे आखिर क्यों? इस पर गुरु साहिब ने कहा कि इतने अंधकार में भला मैं तुमको कैसे दिखता। इस पर पंडित ने कहा मैं तो दिन के उजाले में आया था। फिर गुरु नानक जी ने कहा कि- कोई अंधकार अहंकार से बड़ा है क्या?
गुरु जी ने आगे कहा कि अपने ज्ञान साथ ही आकाश में उड़ने की सिद्धि की वजह से तुम खुद को बाकियों से ऊंचा समझने लगे। चारों ओर देखो कीट-पतंगे, जंतु, पक्षी भी उड़ रहे हैं। तुन उन्हीं के जैसा बनना चाहते हो क्या? गुरु जी की इन बातों को सुन पंडित ब्रह्मदास को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने गुरु नानक देव जी से मन की शांति और उन्नति का ज्ञान हासिल कर प्रण किया कि कभी भी वो अपनी सिद्धिओं पर सवाल नहीं उठाएंगे।