सिख धर्म की संस्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी से संबंधित एक से एक कथाएं हैं, जो उनके चमत्कार को बताती हैं। जो गुरु जी के सद्कर्मों को बयां करती हैं। ऐसी ही एक कथा है जिसमें कुष्ठ रोग का भी जिक्र है।
गुरु नानक देव जी 500 साल पहले देश भ्रमण के लिए निकले और इसी दौरान वो भोपाल गए। वो ईदगाह हिल्स पर एक झोपड़े में रुके जहां पर अब के वक्त में गुरुद्वारा है। गणपत लाल नाम का एक शख्स इस झोपड़े में रहता था, जिसे कुष्ठ रोग यानी कि कोढ़ की बीमारी थी। एक बार वो पीर जलालउद्दीन के पास चला गया जहां उसको सलाह दी गई कि वो गुरु नानक देव जी के पास जाए। ऐसे में वो गुरु नानकजी से मिला।
अपने साथियों से गुरु जी ने पानी लाने को कहा। काफी तलाश के बाद साथी पहाड़ से फूटते झरने से पानी लेकर आए और गणपत लाल पर गुरु नानक देवजी ने उस पानी को छिड़का। कहते हैं कि इसके बाद गणपत लाल बेहोश हो गया और जब होश आया तो गुरु नानक देवजी वहां थे ही नहीं, लेकिन उनके पांवों के निशान वहीं थे। और तो और जो सबसे हैरान करने वाली बात थी वो ये कि गणपत लाल का कोढ़ ठीक हो चुका था।
वो जनेऊ वाली कथा तो आपको याद ही होगी जब गुरु नानक देव जी 11 साल के थे और जनेऊ पहनने से उन्होंने इनकार कर दिया था। तब के उम्र में कुछ हिन्दू लड़कों को पवित्र जनेऊ पहनना होता था। लेकिन गुरु जी ने इस तरह की परंपराओं को मानने से माना किया और अपने ज्ञान और गुणों को बढ़ाने के बारे में कहा। नानक जी अंधविश्वास और दिखावे से दूर रहते थे और इसका खुलकर विरोध भी किया करते थे।
गुरु नानक देव जी लोगों के अंतर्मन को बदलने की कोशिश में लगे रहते और उन्होंने लोगों को आजीवन समझाते रहे कि लोभ हो या लालच हो ये सब बुरी बलाएं हैं। वो लोगों को प्रेम, एकता, समानता इसके अलावा भाई-चारा बनाए रखेन का संदेश देते थे।