भारत में मौजूद अगर सारे मंदिरों की गिनती की जाए तो शायद इनकी संख्या करोड़ों में पहुंच जाएगी. और ऐसा नहीं है की ये मंदिर कोई आम मंदिर हों. भले ही वो किसी छोटे से गाँव या कस्बे का मंदिर ही क्यों न हो, उनकी अपनी एक एतिहासिक कहानी हैं. हर मंदिर अपने आप में कोई न कोई रहस्य समेटे हुए है. ऐसा ही एक मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले में जेजुरी नाम के नगर में है. इसे खंडोबा मंदिर के नाम से जाना जाता है. मराठी में इसे ‘खंडोबाची जेजुरी’ (खंडोबा की जेजुरी) कहकर पुकारा जाता है. मंदिर एक छोटी-सी पहाड़ी पर 718 मीटर (करीब 2,356 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है. यहां तक पहुंचने के लिए दो सौ के करीब सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. इस मंदिर को लेकर कई कहानियां भी प्रचलित हैं, जो आपको हैरान कर देंगी. इस मंदिर में विराजमान देवता को भगवान खंडोबा कहा जाता है. उन्हें मार्तण्ड भैरव और मल्हारी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो भगवान शिव का ही दूसरा रूप है. भगवान खंडोबा की मूर्ति घोड़े की सवारी करते एक योद्धा के रूप में है. उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए कि एक बड़ी सी तलवार (खड्ग) है.
दो भागों में विभाजित है मंदिर परिसर
खंडोबा मंदिर खासतौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है. जिसमे पहला हिस्सा मंडप कहलाता है और दूसरा हिस्सा गर्भग्रह. जिसमे हेमाड़पंथी शैली में बने इस मंदिर में पीतल से बना एक बड़ा सा कछुआ भी है. इसके अलावा मंदिर में एतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई हथियार भी रखे गए हैं. दशहरे के दिन यहां भारी भरकम तलवार को दांत के सहारे अधिक समय तक उठाए रखने की एक प्रतियोगिता भी होती है, जो बहुत प्रसिद्ध है.
ALSOREAD: भारत के 10 सबसे पुराने शहरों की सूची, कहीं इसमें आपके शहर का नाम तो नहीं?.
मंदिर को लेकर ये है मान्यता
ऐसा माना जाता है की एक वक़्त था जब धरती पर मल्ल और मणि नाम के दो राक्षसों ने अपने अत्याचारों से आतंक मचा रखा था. तब भगवान शिव ने इन्हें मारने के लिए मार्तंड भैरव का अवतार लिया था. कहते हैं कि भगवान ने मल्ला का सिर काट कर मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था जबकि मणि ने मानव जाति की भलाई का वरदान भगवान से मांगा था, इसलिए उसे उन्होंने छोड़ दिया. इस पौराणिक कथा का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है.
बेहद कड़े नियम
पुरानों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवन शिव जी की ही तरह भगवान खंडोबा भी स्वाभाव से काफी रूद्र हैं. और इसीलिए इनके पूजा के नियम भी काफी कड़े हैं. किसी साधारण पूजा की तरह उन्हें हल्दी और फूल तो चढ़ाया ही जाता है, लेकिन कभी-कभी बकरी का मांस भी मंदिर के बाहर भगवान को चढ़ाया जाता है.
ALSO READ: वृंदावन से जुड़े इन रहस्यों के बारे में नहीं जानते होंगे आप…
‘येलकोट येलकोट’ और ‘जय मल्हार’ के मंत्रों की गूँज
त्योहारों के दौरान, ‘येलकोट येलकोट’ और ‘जय मल्हार’ के मंत्रों की गूँज हवा में छा जाती है क्योंकि भक्त हवा में हल्दी फेंककर मनाते हैं. इस प्रथा का एक सिद्धांत यह है कि हल्दी सोने का प्रतीक है और इस प्रकार, हल्दी को हवा में फेंक कर, भक्त भगवान से उन्हें भाग्य और धन का आशीर्वाद देने के लिए कह रहे हैं. हालांकि, दूसरों का मानना है कि यह भगवान खंडोबा और उनकी पत्नी मालशा के मिलन का जश्न मनाने के लिए किया जाता है. पूरा अनुभव रोमांचित करने वाला है और देखने लायक है!